Menu
blogid : 316 postid : 1390572

समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता से शिकायत है! तो अपने बच्चों को ये बातें जरूर सिखाएं

समाज इतना अमानवीय क्यों होता जा रहा है या आज के लोग इतने तनावग्रस्त या असंवेदनशील क्यों हो गए हैं? अक्सर आपके मन में भी ऐसे ही सवाल उठते होंगे लेकिन गौर करेंगे तो इन सवालों का जवाब भी खुद आपके पास ही होगा. समाज हमसे मिलकर बना है यानी लोगों से. अगर हमारा व्यक्तित्व कमजोर होगा तो जाहिर है हमारा समाज भी कमजोर होगा. ऐसे में अगर आप अपने समाज को मजबूत बनाना चाहते हैं या बदलाव लाना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको हमारे आने वाला कल यानी हमारे बच्चों को कुछ बुनियादी बातें सिखानी होगी, जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास हो सके.

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal2 Mar, 2019

 

 

 

हारने की हिम्मत-

कुछ लोगों को ये बात अटपटी लग सकती है. भला इस गला-काट प्रतियोगिता के दौर में कोई अपने बच्चे को हारने की सीख क्यों देगा. हर मां-बाप अपने बच्चे को परफेक्ट होने के लिए प्रेरित करते हैं. पर यह कोशिश कई बार बच्चों पर बैहद नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. बच्चा परफेक्ट बनने के चक्कर में बेहद घबराया और तनावग्रस्त रहने लगता है. कई बार छोटी सी भी असफलता सहने की ताकत उसमें नहीं बचती और अपने सपनों को सच करने के लिए संघर्ष करने से पहले ही वह हथियार डाल देता है. याद रखें जितने भी महान अविष्कारक हुए हैं उनमें एक चीज समान रही है- सफलता हासिल करने से पहले वे कई बार असफल हुए हैं और अंत में उन्होंने अपना रास्ता खुद तलाशा.

 

 

जानवरों से प्यार करना सिखाएं

शोर्ध में ये बात सामने आई है कि जानवरों के प्रति प्रेम रखने वाले बच्चे बेहतर तरीके से विकास कर सकते हैं. साथ ही समाज के प्रति वो काफी संवेदनशील होते हैं इसलिए अपने बच्चों को जानवरों से हिंसा करना नहीं बल्कि उनसे प्रेम करना सिखाएं.

 

 

क्रिएटिविटी का विकास-

बच्चा के जन्म के साथ ही माता-पिता उसे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएस ऑफिसर वगैरा-वगैरा बनाने के सपने देखने लगते हैं. दुनियादारी सीख रहे बच्चों को सपनों पर उसके मां-बाप के सपने इतने हावी हो जाते हैं कि वह भी जान नहीं पाता कि उसने खुद सपने देखने कब छोड़ दिए. रचनात्मकता का मतलब होता है कुछ ऐसा रचना जो पहले मौजूद नहीं था. यह रचना किसी भी क्षेत्र में हो सकती है, मसलन कला, साहित्य, विज्ञान, खेल कुछ भी. पर रचनात्मकता की पहली शर्त है आजाद कल्पना. पैरेंट्स को अपने बच्चों को सवाल पूछने, मुक्त चिंतन करने और खोज की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए. वैसे भी 21वीं शताब्दी की चुनौतियों का सामना लीक से हटकर सोचने वाला ही कर सकता है.

 

 

असमानताओं का सम्मान

छोटे बच्चों को खेलते हुए देखें, वे कैसे आपस में आसानी से घुल-मिल जाते हैं. उनके लिए धर्म, संस्कृति, नस्ल, जाति, अमीर-गरीब होने आदि की असमानताएं मायने नहीं रखती पर धीरे-धीरे उन्हें हम आदमी-आदमी में फर्क करना सिखा देते हैं. जबकि वैज्ञानिकों का भी कहना है कि हमारे 99 प्रतिशत डीएनए समान होते हैं. अगर हम अपने बच्चों को इस 1 प्रतिशत असमानता को सम्मान करना सीखा दें, तो यह दुनिया जीने के लिए एक बेहतरीन जगह बन सकती है. क्योंकि यह असमानताएं ही है युद्ध, दंगे आदि मानवीय त्रासदियों को जन्म देती हैं.

 

 

हम धरती से अलग नहीं हैं

हम धरती से बने हैं और धरती हमसे है- अगर यह सीख हम अपने बच्चों को दें पाए तो इस ग्रह पर सुकून लौटने की उम्मीद कर सकते हैं. धरती को अपना समझने का अर्थ है इससे जुड़ी हर एक चीज को अपना समझना. जंगल, पहाड़, रेगिस्तान, पेंड़-पौधे, पशु-पक्षी हर किसी को इस धरती का उतना ही मालिक समझना जितना हम खुद को समझते हैं. इस सीख को हम अपना सकें तो शायद आने वाली पीढ़ियों को जलवायु परिवर्तन और गोल्बल वार्मिंग जैसी समस्याओं की चिंता नहीं करनी पड़ेगी.

 

 

दुनिया के सारे तनावों से भागा नहीं जा सकता, बेहतर है इनसे लड़ना सीख लो

जिंदगी में जरूरी तनाव हमें आगे बढ़ने में मदद करते हैं पर कोई तनाव हमारी जिंदगी पर हावी होने लगे तो वह रुकावट बन जाता है. हम चाहें या न चाहें, तनावों का सामना हमे करना ही पड़ता है इसलिए बेहतर है कि हम उनका हंस कर सामना करना सीखें और यह सीख अपने बच्चों को भी दें….Next 

 

 

Read More :

क्या है स्मॉग, इन तरीकों से कर सकते हैं इससे बचाव

#MeToo कैंपेन के तहत इन मशहूर लोगों पर लगे यौन शोषण के आरोप, जानें क्या है ये मुहिम

सर्दी-जुकाम के बार-बार बनते हैं शिकार! ये हैं असली वजहें

 

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh