
Posted On: 5 Aug, 2012 Common Man Issues में
1006 Posts
830 Comments
‘वो ब्रेंकिग न्यूज जो ना जाने कितने लोगों के जख्म को फिर से ताजा कर दे’
महाराष्ट्र का पुणे शहर एक बार फिर धमाकों से दहल उठा. बुधवार शाम पुणे की व्यस्त जंगली महाराज रोड पर एक के बाद एक चार धमाके हुए. पुलिस के मुताबिक धमाके हल्की तीव्रता के थे, धमाकों से महाराष्ट्र ही नहीं देशभर में दहशत फैल गई. सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गईं. इसी के साथ दिल्ली समेत पूरे देश में एलर्ट घोषित कर दिया गया. यह खबर बार-बार ब्रेकिंग न्यूज में चलाई जा रही थी पर……..‘इस खबर को सुनते ही आपको कुछ कहानियां जरूर याद आएंगी वो भी ऐसी कहानियां जिनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया पर कुछ लोगों के लिए आज भी वो कहानियां नहीं वल्कि उनकी जिन्दगी का हिस्सा बन चुकी हैं और ऐसी यादें बन चुकी हैं जिन्हें वो चाहकर भी अपनी जिन्दगी में बार-बार दखल देने से मना नहीं कर सकते हैं’.
Read: ‘मां का प्यार दिखता है पर पिता का प्यार महसूस होता है’
“एक छोटी सी प्यारी सी बच्ची जिसकी उम्र आठ साल की रही होगी और जिसने मुंबई के लोकल ट्रेन के ब्लास्ट में अपने पिता को खो दिया था और फिर अचानक 26 नंवबर के मुंबई ब्लास्ट में उसने अपनी मां को खो दिया. क्या गलती थी उस मासूम की जिसकी आंखों में आंसूओं का सागर हमेशा भरता ही रहा.”
कुछ तारीखों ने दुनिया का इतिहास बदल दिया, यह वो तारीखें बन चुकी हैं जिन्हें याद करके कभी सिहरन होती है तो कभी अपनी अक्षमता पर शर्म और गुस्सा आता है तो कभी विपरीत परिस्थितियों में जी-जान से जूझते इंसानों के जज्बे पर सीना चौडा हो जाता है. 26 नवंबर, 2008 भी उन तारीखों में से एक बन चुकी है जो भारत के इतिहास में अपनी जगह खून से लाल और धुएं से काले पड़ चुके अक्षरों में दर्ज हो चुकी है. इस दिन दुनिया गवाह बनी खून से सने फर्श पर बिखरे कांच और मासूम लोगों की लाशों के बीच होती गोलियों के बौछारों की.
मुआवजा रिश्तों का नहीं दिया जाता है कोई समझाए इन राजनेताओं को, क्या मुआवजे की राशि लौटा सकती है कई मासूमों की मां को? क्या मुआवजे की राशि दिला सकती है फिर से खेलता हुआ परिवार? शायद नहीं !!.
एक कहानी खत्म नहीं होती कि अचानक नई कहानियां साथ में जुड़ जाती हैं. और वो लोग जिनके घर वाले ब्लास्ट में मारे गए नहीं होते हैं वो इन ब्लास्ट की घटनाओं को रोजमर्रा का हादसा मानकर चलते हैं और जिस दिन उनके किसी अपने के साथ यह हादसा हो जाता है फिर वो ही लोग शोर-शराबा करते हैं और सरकारें सिर्फ यह दिलासा देती हैं कि सुरक्षा बढ़ा दी गई है अब आगे से नहीं होगा. पर सच तो यह है कि किसी को भी नहीं पता कि वो शाम को अपने काम से घर पर लौट सकेगा या किसी बम ब्लास्ट में मारा जाएगा. बहुत अजीब लगता है कि एक मां जिसके बेटे ने ना जाने कितने बेटों को मार डाला आज वो भी अपने बेटे को बचाने के लिए दुआएं करती है.
Read: हार गया या हरा दिया जिन्दगी ने……
Rate this Article: