चीन के बाद भारत एशिया का दूसरा बड़ा देश है. एशिया के ये दोनों ही देश विश्व की बड़ी शक्ति बनने की होड़ में लगे हैं. इसके लिए सरकारी, गैर सरकारी स्तर पर तमाम उपाय किए जा रहे हैं. हम बड़े शान से कहते हैं कि भारत अब बड़ी तेजी से विकास कर रहा है. पर हम विकास कहां कर रहे हैं? उद्योगों में? क्या उद्योग विकसित करना ही विकास का अर्थ होता है? अभी-अभी कनाडा के एक गैर सरकारी संगठन ‘माइक्रोन्यूट्रिएंट इनिशिएटिव’ की ओर से आई एक रिपोर्ट आजकल मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है. रिपोर्ट कहती है कि विश्व भर में कुल कुपोषित लोगों में 40 प्रतिशत आबादी भारत में है. गौर करने वाली बात है ‘कुल कुपोषित लोगों का 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में बसता है’. इस आंकड़े के बाद आप जरूर सोचेंगे कि यह बुरा है. हां, बुरा तो है, पर उससे भी बुरा और शर्मनाक रिपोर्ट का वह हिस्सा है जो कहता है कि भारत के पास इसे दूर करने के सभी जरूरी उपाय हैं, पर उसे सही तरीके से लागू न करने के कारण यह कुपोषण इस आंकड़े तक पहुंच गया है. माइक्रोन्यूट्रिएंट इनीशिएटिव के अध्यक्ष और वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञ एमजी वेंकटेश मन्नार कहते हैं कि भारत के पास इन्हें सुधारने के सरकारी उपाय किए गए हैं. पर समस्या यह है कि यह उपाय सुधार कार्यक्रमों के रूप में कई मंत्रालयों जैसे महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास आदि में बंटा हुआ है. अगर हम गहराई से सोचें, तो समझ आता है कि समस्या सच में हमारी नीतियों में ही है. पर क्यों? आखिर हमें तो विकास चाहिए, फिर ये लापरवाही क्यों?
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