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1840 से चलती आ रही ‘फर्जी सुंदरता’ की वो मानसिकता जिसने महिलाओं की शर्ट में जेब नहीं बनने दी थी!

आज कपड़ों को लेकर महिलाओं के पास इतने विकल्प है, जिसे गिन पाना आसान बात नहीं है। ऐसे में इन कपड़ों के बीच अगर बात की जाए, ज्यादातर शर्ट या टीशर्ट की, तो उनमें जेब नहीं होती। हालांकि, कई फैशन ब्रांड्स ने महिलाओं के लिए भी शर्ट वाली ड्रेसेस बनानी शुरू कर दी है लेकिन क्या आप जानते हैं शुरुआती चरण में महिलाओं के फैशनेबल कपड़ों में जेब नहीं होती थी। इसे सीधे तौर पर पश्चिमी देशों की सुंदरता की मानसिकता से जोड़कर देखा जाता था। आइए, जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें-

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal27 Aug, 2019

 

 

 

महिलाओं का काम होता था सिर्फ सुंदर दिखना

1840 को फैशन के लिहाज से एक क्रांतिकारी दशक समझा जाता है। उस समय फैशन डिजाइनर महिलाओं के लिए बड़े गले, पतली कमर और नीचे से घेरदार स्कर्टनुमा ड्रेस डिजाइन करने लगे थे। यह चलन धीरे-धीरे महिलाओं की ड्रेसों से जुड़े फैशन की बुनियाद बन गया। साथ ही ऐसा माना जाता था कि अगर महिलाओं के कपड़ों में जेबें बनाई जाएगी तो इससे महिलाएं अपनी जेब में कुछ न कुछ रखेंगी, जिससे उनके शरीर की बनावट कुछ उभरी-सी दिखाई देगी। आपको सुनकर हैरानी होगी कि उन दिनों महिलाओं का काम सिर्फ सुंदर लगना ही समझा जाता था।

 

 

 

जेब के लिए चलाया गया था आंदोलन

‘Give us Pocket’ (गिव अस पॉकेट) एक ऐसा अभियान, जिसमें महिलाओं ने अपने सभी कपड़ों में पॉकेट की मांग करते हुए आंदोलन चलाया था. बीते कुछ समय से कुछ यूरोपीय देशों में महिलाओं ने अपनी पोशाकों में जेब पाने के लिए ‘गिव अस पॉकेट’ अभियान ने काफी जोर पकड़ा है लेकिन फैशन जगत को ये अभियान बहुत ही हास्याप्रद लगता है।

 

 

 

मानसिकता का फायदा उठाया बाजारवाद ने

पुरूषवादी मानसिकता के चलते महिलाओं के कपड़ों में जेब तो नहीं आई लेकिन बाजार में नए तरह के फैशनेबल पर्स, पोटली, बैग जरूर आ गए। महिलाओं को लुभावने के लिए पिछले काफी सालों से महिलाओं के लिए कई तरह के पर्स मार्केट में आए हैं। हालांकि, इसे अभियान का नतीजा कहिए या आधुनिक लोगों की खुली  सोच, जींस, शर्ट के अलावा ऐसी कई कैचुअल ड्रेस बनाई जा रही हैं, जिनमें जेब होती हैं। ऐसे में सदियों पुरानी मानसिकता को देखते हुए आज कहा जा सकता है कि हम इन फर्जी धारणाओं से एक कदम आगे बढ़े हैं…Next

 

 

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