‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया…हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया’.
हाथ में सिगरेट लिए बेफिक्री से गमों को धुएं में उड़ाकर गुनगुनाते सदाबहार देवानंद. दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसे ये बात पता ना हो कि सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है, फिर भी लोग शान से सिगरेट फूंकते हुए दिखाई दे जाएंगे. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सिगरेट चाहे लड़की पिए या लड़का दोनों के लिए धीमा जहर है. वहीं बात करें लड़कियों की, तो सेहत से ज्यादा लोग उन्हें सिगरेट पीते देखकर करेक्टर सर्टिफिकेट दे देते हैं.
बहरहाल, सिगरेट पीने के पीछे सभी की अपनी ही कहानियां है. इसी तरह लड़कियों ने सिगरेट पीना कब और क्यों शुरू किया इसके पीछे भी इतिहास के पन्नों में एक कहानी छुपी हुई है.
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सिगरेट का बढ़ता कारोबार
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से अमेरिका समेत कई देशों में सिगरेट पीना बहुत आम हो गया था. युद्ध में लड़ रहे सैनिकों को राशन के साथ सिगरेट के पैकेट भी भेजे जाते थे. ऐसा माना जाता था कि खाने की कमी होने पर सिगरेट का सेवन करने से भूख मर जाती है, जिससे सैनिकों को भूख कम लगती है और वो पूरी ताकत से युद्ध लड़ सकते हैं. इस दौरान सिगरेट के कारोबार में बहुत इजाफा हुआ.
1920 के बाद समानता के अधिकार से जोड़ी जाने लगी सिगरेट
प्रथम विश्व युद्ध(1914-1918) ने लिंग भेद के बनाए सिंद्धात को ध्वस्त करने शुरु कर दिए थे. जहां पुरुष युद्ध में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते, वहीं महिलाएं घर से बाहर आकर कमाने के लिए मजबूर थी, लेकिन साथ ही वो कमाई करने वाली महिला के इस रोल को भी बखूबी निभा रही थी. शायद यही वजह थी कि 1920 के दशक में कई ऐसे प्रदर्शन हुए जहां महिलाएं अपनी बराबरी के हक के लिए प्रदर्शन करती रहीं. चाहे वो वोट डालने का अधिकार हो, बराबर मेहनताने की मांग हो या फिर सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को सिगरेट पीने का अधिकार, महिलाएं अब पहले से ज्यादा जागरूक हो चुकी थींं. इससे पहले अमेरिका जैसे देश में भी महिलाओं के सिगरेट पीने को एक टैबू माना जाता था.
सामाजिक व्यवस्था से इस तरह जोड़ा गया कारोबार
1928 वो साल था जब अमेरिका की तंबाकू कंपनी के अध्यक्ष जॉर्ज वाशिंगटन हिल के माथे पर बल पड़े हुए थे. उनका सिगरेट का कारोबार पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुका था लेकिन उनका मानना था कि अगर ‘स्टीरियोटाइप’ को तोड़ते हुए महिलाएं भी सिगरेट पीने लग जाएं तो कारोबार में और भी ज्यादा इजाफा होगा इसके लिए एक नई जंग शुरू हो गई.
हिल ने हाथ मिलाया साइकोलॉजिस्ट फ्रॉयड से
जैसा कि सभी जानते है कि किसी उत्पाद का प्रोमोशन करने का सबसे अच्छा तरीका है उसे लोगों की भावनाओं से जोड़ा जाए. कुछ ऐसा ही किया कारोबारी हिल ने, उन्होंने जॉर्ज ने एडवर्ड बर्नेंस की मदद लेनी चाही. एडवर्ड, दुनिया के सबसे प्रभावशाली साइकोलॉजिस्ट और साइकोएनालिसिस के गॉडफादर सिगमेंड फ्रॉयड के भतीजे थे. जार्ज ने एडवर्ड की सर्विस के लिए 25 हजार डॉलर की भारी भरकम कीमत भी चुकाई थी. यहीं से दोनों का मिशन शुरू हो गया. दोनों ने मिलकर सामाजिक समानता पर बात करते हुए सिगरेट पीने को महिला स्वतंत्रता और अधिकारों से जोड़कर पेश किया.
महिलाओं के लिए शुरू किया गया एक कैंपेन
31 मार्च 1929 भले ही ज्यादातर लोगों के लिए खास न हो लेकिन इस दिन एडवर्ड ने अपनी मार्केटिंग और लोगों के साथ जुड़ाव का नायाब नमूना पेश किया था. ‘टॉर्चेस ऑफ फ्रीडम’ नाम के अपने कैंपेन के सहारे वह एक स्टीरियोटाइप और बनी बनाई धारणा को तोड़ रहे थे. इस कैंपेन से अमेरिका ही नहीं कई देशों की महिलाएं जुड़ गईं.
चरित्रहीनता से समानता और फिर स्टेटस सिंबल बनी सिगरेट
20 सदी से पहले जहां महिलाओं को सिगरेट पीते देखकर उन्हें चरित्रहीन समझा जाता था. अब इस आंदोलन के बाद महिलाओं के सिगरेट पीने को समानता से जोड़कर देखा जाने लगा. इसके बाद कुछ दशकों में ऊंचे घरानों की महिलाएं शान से सिगरेट पीती थीं. अब सिगरेट पीना स्टेटस सिंबल बन गया था.
तो देखा आपने, भावनाओं और सामाजिक जाल में फंसाकर किस तरह सिगरेट के कारोबार को बढ़ाया गया…Next
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