सपने बहुत बड़े होते हैं, आपकी हकीकत से भी बड़े लेकिन कुछ सपने ऐसे होते हैं जो हकीकत के मोहताज हुए बिना एक दिन कड़ी मेहनत और लगन से हकीकत में बदल ही जाते हैं. जैसे आपने जिंदगी में कोई बहुत बड़ा सपना देखा है लेकिन आपकी वर्तमान स्थिति उस सपने पर हावी है, ऐसे में हर सामान्य व्यक्ति अपनी स्थिति का बेहतर होने का इंतजार करेगा लेकिन इन सब बातों से परे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्होंने कभी भी अपनी वर्तमान स्थिति को अपनी रूकावट नहीं बनने दिया.
लक्ष्मण राव एक ऐसा ही नाम है. वे लेखन की दुनिया में एक मिसाल बन चुके हैं. सालों पहले लक्ष्मण दिल्ली के आईटीओ में केवल चाय बेचा करते थे, लेकिन सबसे खास बात ये थी कि लक्ष्मण के इस छोटे-से चाय के स्टॉल में लोग चाय पीने के साथ इसलिए आना पसंंद करते थे क्योंकि लक्ष्मण किसी मुद्दे पर चर्चा के साथ लेखन की दुनिया के बारे में भी बात किया करते थे. उस वक्त चाय बेचने वाले लक्ष्मण राव को देखकर किसी ने भी ये नहीं सोचा होगा कि ये व्यक्ति एक दिन लेखन की दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम बन जाएगा.
62 साल के राव को किताबों का बहुत शौक है और उनकी अब तक 24 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से एक किताब के लिए उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है. इन किताबों में राव के ग्राहकों और उनके आसपास से जुड़े लोगों की कहानियां शामिल हैं. इनका एक फेसबुक पेज भी है और इनकी किताबें अमेजन और फ्लिपकार्ट पर बेची जाती हैं.
‘एक चायवाला क्या लिखेगा’ इसके बाद शुरू हुई जिंदगी
लक्ष्मण राव का महाराष्ट्र के अमरातवती जिले से दिल्ली तक का सफर इतना आसान नहीं था. 1975 में राव की जेब में सिर्फ 40 रूपए थे जो उन्होंने अपने पिता से उधार लिए थे ताकि वह दिल्ली जा सकें. उस वक्त लक्ष्मण सिर्फ 22 साल के थे. पांच साल बाद लक्ष्मण ने विष्णु दिगम्बर मार्ग पर चाय बेचना शुरू कर दिया, जहां उस इलाके के लोगों के बीच वह काफी लोकप्रिय हो गए, लेकिन जब वह अपना पहला उपन्यास लेकर एक प्रकाशक के पास गए, तो उन्हें यह कहकर बाहर निकाल दिया गया कि ‘एक चायवाला क्या लिखेगा?’
इस एक बात ने लक्ष्मण को लिखने के लिए और अपना सपना पूरा करने के लिए इतना प्रेरित किया, राव ने कभी हार नहीं मानी. इसके बाद साल 2003 में राव की किताब ‘रामदास’ ने 2003 में इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती अवार्ड जीता और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें राष्ट्रपति भवन आने का न्यौता भी दिया. इसके बाद तो राव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. राव आज 24 किताबें लिख चुके हैं, लेकिन वो आज भी साईकिल से जाना पसंद करते हैं.
उनका मानना है कि साईकिल से जाने से वो ज्यादा से ज्यादा पैसों की बचत कर सकते हैं, जिससे वो और भी किताबें लिख सकते हैं. गौरतलब है कि दोपहर 2 बजे से रात 9 बजे तक राव चाय बेचते हैं और रात एक बजे तक लिखते हैं. 42 साल की उम्र में उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की है और पिछले साल वे मास्टर्स की डिग्री के लिए परीक्षा देंगे. उनका कहना है कि नतीजे आने के बाद वह हिंदी साहित्य में पीएचडी करना चाहते हैं. राव की कहानी जिंदगी की हकीकत से लड़ते हुए अपने सपनों को पूरा करने की एक मिसाल है…Next
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