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बेटे की खुशी के लिए एक मां ने उसे मरने की आजादी दे दी, पर यह कहानी दुनिया के लिए मिसाल बन गई

कोई भी मां अपने बेटे को मौत के मुंह में कूदते नहीं देख सकती. कुदरत की उस नाइंसाफी से पहले ही टूटी वह मां भी बेटे की खुशी के लिए ही सही, लेकिन उसे अपनी जान की आजादी नहीं दे सकती थी. हालांकि उसके बेटे को उम्मीद थी कि मां उसे ऐसा करने से नहीं रोकेगी. उस दिन को याद करते हुए वह बताती हैं, “मेरे मना करने पर उसने दुखी आवाज में कहा था कि मां, मुझे लगा था मुझे सबसे पहला सपोर्ट आपका ही मिलेगा”. बेटे की इस ख्वाहिश को फिर मना नहीं कर पाई थी बैटी और फिर उनके पति भी मान गए.



Legend Terry Fox



यह कहानी मात्र 18 साल की उम्र में एक रेयर बोन कैंसर से जूझते एक कैनेडियन एथलीट की है. एथलीट कहने से ज्यादा अच्छा उसे एक जांबाज कहना सही होगा क्योंकि पैर न होने के बावजूद उसने 5373 किलोमीटर की दौड़ की.


वर्ष 2000 में ‘मैराथन ऑफ होप’ (कैंसर रिसर्च के लिए दान राशि इकट्ठा करने वाली एक क्रॉस कंट्री दौड़) की 20वीं जयंती पर ‘टेरी फॉक्स फाउंडेशन’ ने 20 मिलियन डॉलर की दान राशि जमा की. टेरी के नाम पर अब तक यह संस्था 600 मिलियन डॉलर इस नेक काम के लिए दे चुकी है. इसी फाउंडेशन के अंतर्गत हर साल आयोजित होने वाली इस दौड़ से 60 से ज्यादा देशों के लोग जुड़ चुके हैं और मरने के बाद भी टेरी के साथ हैं. आज इस संस्थान के पास एक दिन में कैंसर रिसर्च के लिए दी जाने वाली सबसे ज्यादा राशि देने का गौरव प्राप्त है. हां, यह और बात है कि यह सब देखने के लिए टेरी अब यहां नहीं हैं.



terry fox foundation



टेरी फॉक्स को कनाडा के स्टार एथलीट से ज्यादा दुनियाभर के कैंसर पीड़ितों के लिए एक प्रेरणा कहा जाना ज्यादा उचित होगा. उनका सपना था कि जिस बीमारी (रेयर बोन कैंसर) के कारण मात्र 18 साल की छोटी उम्र में उन्हें जिंदगी का सबसे कड़वा स्वाद मिला उससे लोगों को बचाने के लिए मरने से पहले कुछ कर जाएं. वे इसमें सफल भी रहे.



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एक पैर न होने के बावजूद 8530 किलोमीटर (5300 मील) दौड़ने और कैंसर रिसर्च के लिए मिलियन राशि इकट्ठा करने का सपना एक दिलेरी ही कही जा सकती है. फॉक्स इतने मील दौड़ने का सपना पूरा नहीं कर पाए, मात्र 5300 किलोमीटर ही दौड़ पाए पर लोगों ने उनके जज्बे को सलाम किया. हॉस्पिटल में जूझते फॉक्स की प्रेरणा से सभी ने उम्मीद से ज्यादा चंदा जमा करने में सहयोग दिया..और कनाडा में शायद पहली बार 24.17 मिलियन डॉलर चंदा कैंसर रिसर्च के लिए दिया गया.



fundraiser for cancer research


टेरी फॉक्स 1958 में विनपिंग में पैदा हुए लेकिन बाद में उनका परिवार पोर्ट कोकिटलम शिफ्ट हो गया. बचपन से ही फॉक्स को स्पोर्ट्स में इंट्रस्ट था लेकिन वह बॉस्केटबॉल प्लेयर बनना चाहते थे लेकिन वह बास्केट बॉल बहुत बुरा खेला करते थे. क्रॉस-कंट्री दौड़ में जाने का सारा श्रेय उनके स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर को जाता है जिन्होंने फॉक्स को दौड़ में प्रयास करने के लिए उत्साहित किया. फॉक्स को इसमें कोई रुचि नहीं थी इसके बावजूद टीचर की सलाह पर उन्होंने इसमें प्रयास करने शुरू किए. उन्होंने इसमें अच्छा किया और कोच उससे बेहद प्रभावित हुए.


पोर्ट कोकिटलम सेकेंडरी स्कूल के अंतिम साल में फॉक्स और उनके एक मित्र डोग अल्वर्ड (Doug Alward) को अपने उच्च प्रदर्शन के लिए सम्मिलित रूप से एथलीट ऑफ दी ईयर अवार्ड भी मिला. स्कूल के बाद फॉक्स, साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी फिजिकल एडुकेशन की शिक्षा के लिए गए. वे फिजिकल एडुकेशन के शिक्षक बनना चाहते थे लेकिन इससे पहले ही वर्ष 1977 में अचानक उन्हें घुटने में दर्द हुआ और डॉक्टरों ने उन्हें हड्डी के रेयर कैंसर ‘ऑस्टियोजेनिक सार्कोमा होने का खुलासा किया.



athlete of the year award



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उन्हें 16 महीने तक हॉस्पिटल में रहना पड़ा. कीमोथेरेपी और रेडिएशन के साथ वे 16 महीने वे अपनी जिंदगी के सबसे बुरे दिन मानते हैं. ऑपरेशन के बाद उनका दाहिना पैर घुटने से 6 इंच ऊपर हो गया और अब उन्हें इसी तरह जीना था. फिर भी फॉक्स इसे भूलना नहीं चाहते थे क्योंकि उन दिनों ने उन्हें आगे का नया मकसद दिया है. कैंसर हॉस्पिटल में अपना इलाज कराते हुए फॉक्स को पता चला कि कैंसर के लिए लोगों में बहुत कम जानकारी है और इसके रिसर्च आदि में भी बहुत कम धन खर्च किया जाता है. फॉक्स ने लोगों में जागरुकता बढ़ाने और रिसर्च के लिए लोगों को दान करने के लिए प्रेरित करने के मकसद से कुछ करना चाहते थे और अपनी जान पर खेलकर उन्होंने इसे पूरा भी किया.


टेरी चाहते थे कि कैंसर रिसर्च के लिए लोगों में जागरुकता बढ़े और इसपर रिसर्च बढ़ाने में लोग आर्थिक मदद दें. कनाडा में उन्होंने इसी मकसद से क्रॉस-कंट्री मैराथन दौड़ का आयोजन किया. हालांकि यह आसान नहीं था पर इसके माध्यम से वे कनाडा के 24 मिलियन नागरिकों में हर एक को कम एक डॉलर कैंसर रिसर्च के लिए दान करने के लिए प्रेरित करना चाहते थे.



Terry Fox




ऑपरेशन के बाद व्हीलचेयर पर होने के दौरान व्हीलचेयर बास्केटबॉल में भी हिस्सा लिया. इसके बाद ही उन्होंने दौड़ की सारी परिकल्पना तैयार कर इसके लिए खुद को तैयार करना शुरू किया. शुरुआत में जब उन्होंने दुबारा दौड़ की ट्रेनिंग लेनी शुरू की तो उनके परिवार को फॉक्स के आगे के मकसद का कुछ भी पता नहीं थी. फॉक्स ने उन्हें बताया था कि वैनकोवर मैराथन के लिए वे यह ट्रेनिंग ले रहे हैं. बाद  में जब परिवार को बताया तो फॉक्स की मां इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थीं क्योंकि यह दौड़ उनकी जान के लिए खतरा बन सकता था. तब  फॉक्स ने भावुक होकर दुखी भाव आवाज में मां (बैटी) से कहा था कि उन्हें सबसे पहला सपोर्ट मां से ही मिलने की उम्मीद थी. बैटी बेटे की इच्छा के सामने झुक गईं और मैराथन में दौड़ने के लिए मान गईं.



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ट्रेनिंग के शुरुआती दिनों को याद करते हुए फॉक्स बताते हैं यह बेहद मुश्किलों भरा था. कई बार वे जमीन पर गिरे, खड़े हो पाने में भी असमर्थ रहे लेकिन अंतत: एक साल की ट्रेनिंग और 4800 किलोमीटर की दौड़ करने के बाद परिवार को अपने आगे की योजना बताई.



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12 अप्रैल, 1980 को दौड़ शुरू हुई. फॉक्स ने हर दिन 42 किलोमीटर की दौड़ लगाई. लेकिन 143 दिन और 5373 किलोमीटर्स दौड़ के बाद अचानक बीच में ही कैंसर के फेफड़ों तक पहुंचने के कारण इसे बीच में ही रोक देना पड़ा. उनके लंग तक कैंसर फैल चुका था और उन्हें हॉस्पिटलाइज्ड कर दिया गया. फॉक्स की कैंसर की खबर पहले ही कनाडा में फैल चुकी थी और 24.17 डॉलर मिलियन का फंड इकट्ठा हुआ. फॉक्स के लिए यह किसी जीत से कम नहीं था पर इसके बाद भी वे 10 माह से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाए. जून 28, 1981 को फॉक्स की मौत हो गई लेकिन कनाडा में ऑर्डर ऑफ कनाडा का खिताब जीतने वाले वे सबसे कम उम्र के विजेता रहे हैं.




canada



फॉक्स की मौत के डेढ़ माह बाद एक बार फिर दौड़ आयोजित हुई और मिलियन की राशि इकट्ठी हुई. 1988 में कैंसर रिसर्च के प्रोत्साहन के मकसद से टेरी फॉक्स फाउंडेशन की स्थापना हुई. हर साल इसके माध्यम से फंड रेजिंग के लिए दौड़ आयोजित की जाती है. अब तक इसकी मदद से कनाडा में 1100 कैंसर प्रोजेक्ट्स को मदद मिल चुकी है.


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