कुबूल है कुबूल है कुबूल है, अफरोज निकाह पढ़वाते हुए ये शब्द सुनना चाहती है लेकिन अफसोस ये मौका उन्हें अभी तक नहीं मिला. हिन्दू धर्म में जैसे पंडित शादी करवाते हैं, उसी तरह मुस्लिम धर्म में काजी निकाह पढ़वाते हैं. कभी आपने गौर किया है फिल्मों या आपके जान-पहचान वालों में कभी भी कोई महिला काजी निकाह नहीं पढ़वाती. ऐसा नहीं है कि काजी सिर्फ पुरूष ही बनते हैं. बल्कि कुरान में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा कि एक पुरूष काजी ही निकाह पढ़वा सकता है.
काजी बनने की दी गई थी ट्रेनिंग
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की पहल पर दारुल-उलूम-निस्वान, मुंबई ने पिछले साल 30 मुस्लिम महिलाओं को काजी की ट्रेनिंग दी थी. ट्रेनिंग के बाद 18 मुस्लिम महिलाओं ने पिछले साल फरवरी में काजी का इम्तिहान पास किया था. इनमें से 15 ने इस साल प्रैक्टिकल भी पास किया.
अभी तक नहीं आई कोई अर्जी
इन 15 महिलाओं में से अभी तक किसी को निकाह पढ़वाने का मौका नहीं मिला है. दरअसल, दारुल-उलूम-निस्वान ने एक मॉडल निकाहनामा भी तैयार किया है जिसमें निकाह के एक महीने पहले अर्जी देने का प्रावधान है, लेकिन महिला काजी से निकाह पढ़वाने के लिए कोई अर्जी नहीं आई है.
दबी सोच और पुरूष काजियों का दबदबा
मुस्लिम समाज में पुरूष काजियों का हमेशा से दबदबा रहा है जबकि महिलाएं अभी भी अपने अस्तित्व और मुस्लिम समाज में फैली रूढ़िवादी परम्पराओं से जूझ रही हैं. ऐसे में लोगों के लिए एक महिला काजी को स्वीकार करना इतना आसान नहीं है जबकि पुरूष काजी अपने दबदबे को कम नहीं करना चाहते. ऐसे में ट्रेनिंग और धार्मिक शिक्षा के बाद भी महिला काजी की राह आसान नजर नहीं आती…Next
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