गुजरा जमाना कभी न कभी सबको याद आता है। सकारात्मक स्मृतियां व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होती हैं जबकि कुछ यादें परेशान कर देती हैं। मन के स्टोर रूम में सिर्फ ऐसी यादों को जगह देनी चाहिए, जो चेहरे पर मुस्कुराहट लाएं। कड़वी स्मृतियों को बाहर निकाल देना चाहिए।
पुरानी किताब के पन्नों को पलटते हुए सूखा सा कोई फूल कॉलेज के दिनों में वापस ले जाता है, शादी की अलबम में सकुचाई सी दुलहन प्यार, शर्म और हिचक से भरी यादों में भटका देती है, पुराने ट्रंक से निकल आई मां की साड़ी में बसी खुशबू उनके यहीं कहीं होने का भ्रम पैदा करती है, बरसों तलक छुपा कर रखा गया कच्चा सा प्रेमपत्र उम्र के कई पड़ाव पार करने के बावजूद मुस्कुराने को बाध्य कर देता है…। यादें टाइम मशीन की तरह हैं, जो चंद सेकंड्स में ही गुजरे जमाने की सैर करा देती हैं। कभी खिलखिलाती हैं तो कभी आंखों को नम कर देती हैं।
अतीत, पास्ट, माफ… यानी नॉस्टैल्जिया…। हम सब कभी न कभी यादों के उन सीपिया टोन्स में गोते लगाते हैं।
घर से शुरू नॉस्टैल्जिया
नॉस्टैल्जिया…इस शब्द में दुख, खुशी या उदासी का मिला-जुला भाव है। यह ग्रीक शब्दों नॉस्टोस (घर लौटना) और अलगोस (पीड़ा) से मिल कर बना है। 17वीं सदी के अंत में पहली बार एक स्विस फिजिशियन ने इस शब्द का प्रयोग युद्धरत सैनिकों को होने वाली होमसिकनेस के अर्थ में किया था। शुरुआत में इसे दुख, विषाद या निराशा की तरह देखा जाता था, बाद में इसे रूमानियत की तरह देखा जाने लगा। साउथम्टन यूनिवर्सिटी में हुआ अध्ययन कहता है कि नॉस्टैल्जिया से भविष्य के प्रति आशा पनपती है। मनोवैज्ञानिक कॉन्स्टेंटाइन ने कई कडिय़ों में किए गए शोध में पाया कि नॉस्टैल्जिया स्मृति में सकारात्मक भावनाओं के संग्रहालय की तरह काम करता है।
यादें देती हैं हौसला
वर्ष 2008 में हुआ एक अध्ययन कहता है कि नॉस्टैल्जिया दृष्टिकोण को भी बदलता है। जब कोई अतीत के बारे में सोचता है तो किसी खास घटना, वस्तु और संबंधों के बारे में सोचता है। इससे व्यक्ति को एहसास होता है कि उसके जीवन में कितने ऐसे लोग थे, जो उसके $करीब थे। वर्ष 2013 में हुए एक अन्य अध्ययन में कहा गया कि नॉस्टैल्जिया लोगों को मौजूदा स्थिति के प्रति भी आश्वस्त करता है। इसके जरिये व्यक्ति अतीत और भविष्य को जोड़ता है, उसे महसूस होता है कि उसके जीवन का कोई अर्थ है और उसमें निरंतरता है। यादें बताती हैं कि अतीत कितना समृद्ध था और वक्त जीवन को कैसे बदल देता है। मुश्किल घड़ी में लोगों को कहते सुना है… ‘यह समय भी गुजर जाएगा, कैसा-कैसा वक्त निकल गया…। यानी यादें कई बार नई चुनौतियों या मुश्किलों का सामना करने लायक भी बनाती हैं। व्यक्ति याद करता है कि अतीत में कैसे वह विपरीत स्थितियों से उबारा था और यह बात उसे वर्तमान की चुनौतियों से जूझने की कूवत देती है।
अच्छी-बुरी यादें
कभी-कभी अतीत दुख भी देता है। जैसे- अब्यूसिव रिलेशनशिप की याद परेशान कर सकती है। ऐसे में अपने चिंतन की दिशा को मोड़ा जाना चाहिए। बुरे दौर में भी कुछ लोग ऐसे थे, जिन्होंने मदद की। ‘बुरी स्थिति में मददगार ‘अच्छे लोगों के बारे में सोचें। इस सच्चाई को भी समझना जरूरी है कि अतीत चाहे जैसा भी हो, वह वापस नहीं लौटेगा। इसलिए उन्हीं यादों को दिल में जगह दें, जो आगे बढऩे को प्रेरित करें।…Next
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