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तलाक लिया है, किसी को उपभोग की नजर से देखने का हक नहीं दिया

divorce‘तलाक’ ऐसा शब्द है जिसमें किसी रिश्ते के टूटने का दर्द छुपा है पर सवाल यह नहीं है कि तलाक शब्द में कितना दर्द है बल्कि सवाल यह है कि क्या किसी रिश्ते के टूटने का कारण सिर्फ महिलाएं होती हैं या महिलाओं को दोषी बना दिया जाता है. कभी भी किसी भी शादी के टूटने का कारण पति और पत्नी दोनों होते हैं पर समाज में सिर्फ महिलाओं को ही दोषी की नजर से देखा जाता है. शायद इसलिए ऐसी हजारों महिलाएं हैं जो तलाक शब्द का प्रयोग करने से डरती हैं कि कहीं उन्हें भी समाज दोषी की नजर से ना देखने लगे.


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जब एक महिला बदलाव चाहती है

हमेशा से समाज में ऐसा ही होता आया है कि जब भी कोई महिला बदलाव की मांग करने लगती है तो पुरुष प्रधान समाज महिला को दोषी करार दे देता है और जीवन भर उसे दोषी की नजर से ही देखता रहता है. क्यों एक महिला बिना दोषी बने अपने जीवन में बदलाव नहीं कर सकती है? कभी-कभी तो एक महिला के लिए बदलाव का नतीजा यह होता है कि अपने रिश्ते जिन्हें वह अपने जिन्दगी के बहुत करीब मानती है, वो रिश्ते भी टूट जाते हैं. कितना दर्द होता होगा जब अपने रिश्ते यह कहकर साथ छोड़ दें कि तुमने तलाक लेकर अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की है. बहुत बार तो बहुत सी महिलाएं इन रिश्तों को खो देने के डर से ही अपनी शादी-शुदा जिन्दगी में ना जाने कितने दर्द सहती रहती हैं.


समाज का नजरिया ऐसा क्यों?

समाज का नजरिया एक महिला को ही दोषी मानने वाला क्यों होता है जबकि जितनी गलती एक महिला की होती है उतनी ही गलती पुरुष की भी होती है और ज्यादातर देखा गया है कि जब दर्द सहन करने की हद पार हो जाती है तब एक महिला तलाक का कदम उठाती है.

तलाक-शुदा महिला जब अपनी जिन्दगी में फिर से शादी का रंग भरने की सोचती है तो समाज उसे केवल उपभोग की नजर से देखता है, जैसे तलाक से पहले भी उसे उपभोग किया गया हो और अब हमेशा उसे उपभोग ही किया जाएगा. जब तलाक-शुदा महिला तलाक जैसे शब्द के दर्द को अपनी जिन्दगी से निकालने के लिए घर से बाहर निकल कर काम करना शुरू करती है तो समाज उसे दोषी नजर के साथ-साथ उपभोग की नजर से भी देखने लगता है कि घर में जिस्म की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही थी इसलिए घर से बाहर निकल कर अपनी जरूरतें पूरी कर रही है.


यह कहानी सिर्फ महिला की क्यों है. महिला को ही तलाक के बाद कभी दोषी तो कभी उपभोग की नजर क्यों देखा जाता है. क्या तलाक सिर्फ महिला का होता है पुरुष का नहीं तो फिर पुरुष दोषी क्यों नहीं या पुरुष के लिए उपभोग की नजर क्यों नहीं?


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