अपने कड़वे प्रवचनों के लिए मशहूर जैन मुनि तरूण सागर 51 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए। पिछले कुछ दिनों से वो पीलिया से ग्रस्त थे। जैन मुनि का एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था और उन्होंने दिल्ली के शाहदरा के कृष्णानगर में शनिवार सुबह 3:18 बजे अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है उन पर दवाओं का असर होना बंद हो गया था। कहा यह भी जा रहा है कि जैन मुनि ने इलाज से इनकार कर दिया था, जिससे बीमारी बढ़ गई।
उनकी अंतिम यात्रा को लेकर पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। खासकर जैन मुनि की देह को लकड़ी की डोली पर बिठाकर अंतिम यात्रा निकाले जाने पर विमर्श चल रहा है। ऐसे में जैन समुदाय से जुड़े लोगों का कहना है कि ये पहला मौका नहीं है, जब किसी जैन मुनि की अंतिम यात्रा ऐसे निकाली गई है।
क्या है मान्यता
जैन संतों का दाह-संस्कार इसी प्रक्रिया से संपन्न किया जाता है। जैन परंपरा के मुताबिक अगर कोई संत समाधि या संथारा लेता है तो देह त्याग करने के बाद उसकी अंतिम यात्रा में भी देह को समाधि की मुद्रा में ही बैठाया जाता है। इसको डोला निकालना भी कहते हैं।
जैन धर्म में मान्यता है कि यदि किसी संत ने समाधि की मुद्रा में देह त्याग की है तो उसे मोक्ष भी उसी मुद्रा में ही मिलती है। जैन मुनि तरुण सागर की अंतिम यात्रा भी ठीक इसी तरह निकाली गई।
बताया जा रहा है कि उन्हें पीलिया हो गया था और उन्होंने दवाइयां लेनी बंद कर दी थी। इसके बाद उनके शिष्य उन्हें दिल्ली स्थित चातुर्मास स्थल पर ले गए। यहां जैन मुनि ने समाधि यानी संथारा लेने का निर्णय लिया और अन्न-जल त्याग दिया। इसके बाद 1 सितंबर को उनका निधन हो गया।
अंतिम यात्रा में उमड़े हजारों लोग
जैन मुनि की अंतिम यात्रा में देश भर से हजारों लोग शामिल हुए थे। उनके मृत शरीर की डोला यात्रा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी। उसपर लोग अलग-अलग विचार रख रहे थे…Next
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