‘एक ही पत्थर लगे हैं हर इबादत गाह में, गढ़ लिए एक बुत के सबने अफसाने कई’
नाजीर बनारसी साहब की लिखी हुई ये गजल, मजहब के नाम पर लड़ने वाले लोगों को एक आईना दिखाती है. जिसे देखकर अगर वो दुनिया के इस सच को समझ जाए तो शायद धर्म या मजहब के नाम पर कभी कोई दंगा-फसाद ही न हो. आप खुद सोचिए, दुनिया में ऐसा कौन-सा इंसान है जिसने कभी ‘सब रब दे बंदे’, ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ ये बातें न सुनी हो, लेकिन परेशानी ये है कि ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है जो हकीकत में इस पर अमल करते हैं. दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें दुनिया की बनी-बनाई बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि वो कुछ ऐसा करते हैं जिससे वो पूरी दुनिया की सोच एक पल में बदल सकते हैं. ऐसा ही एक नाम है के. के. मुहम्मद का. शायद हम में से ऐसे कई लोग हैं जिन्हें मुहम्मद साहब के नाम की ज्यादा जानकारी नहीं होगी लेकिन इनके किए गए काम को सुनकर हर कोई इनके हौंसले का कायल हो जाएगा.
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दरअसल, भारतीय पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर ‘के. के. मुहम्मद’ ने मध्यप्रदेश में बटेश्वर स्थित उन मंदिरों को पुनर्स्थापित करने की ठानी, जो कभी डाकुओं के आंतक का शिकार रहे और सही देखरेख न होने की वजह से लगभग गिर चुके थे. बटेश्वर के मंदिरों की कहानी पर बात करें तो मध्य प्रदेश के मुरैना से लगभग पचीस किलोमीटर दूर चम्बल के बीहड़ों में ‘बटेश्वर’ स्थित है. जहां आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच गुर्जारा-प्रतिहारा वंशों द्वारा करीब एक ही जगह पर दो सौ मंदिरों का निर्माण किया गया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि भगवान शिव और विष्णु को समर्पित ये मंदिर खजुराहो से भी तीन सौ वर्ष पूर्व बने थे. बटेश्वर के आसपास के इलाके हमेशा से डाकुओं के आतंक की वजह से चर्चाओं में रहते थे.
भारतीय पुरातत्व विभाग की अहम जिम्मेदारी संभाल रहे मुहम्मद साहब को देश की धराशायी हो रही धरोहर को देखकर बहुत दुख होता था. इस दौरान उन्होंने यहां के मंदिरों को पुनर्जीवित करने का पक्का मन बना लिया. इस दौरान एक रोज उनके साथ एक घटना हुई. के. के. मुहम्मद के मुताबिक जब पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा था तो पहाड़ी के ऊपर के एक मंदिर में एक व्यक्ति उन्हें मिला, जो वहां बैठकर बीड़ी पी रहा था. ये देखकर के. के. साहब को गुस्सा आया और उन्होंने उस व्यक्ति से कहा कि ‘तुम्हें पता है कि ये मंदिर है और तुम यहां बैठकर बीड़ी पी रहे हो?’ वो उस व्यक्ति को वहां से निकालने का इरादा करके उसकी तरफ बढ़ ही रहे थे तभी उनके विभाग के एक अधिकारी ने पीछे से आकर उनको पकड़ लिया और बीड़ी पीने वाले व्यक्ति की तरफ इशारा करके बोला ‘अरे! आप इन सर को नहीं जानते हैं, इन्हें पीने दीजिये’.
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अधिकारी की बात सुनकर के. के. मुहम्मद को ये समझते हुए देर नहीं लगी कि ये निर्भय सिंह गुर्जर है, जिसका आंतक आसपास के इलाकों में फैला हुआ है. वे बताते हैं कि ‘मैं उसके चरणों में बैठ गया और उसे समझाने लगा कि एक समय था जब आपके ही वंशजों ने इन मंदिरों को बनवाया था और अगर आज आपके ही पूर्वजों की इन अनमोल धरोहर और मूर्तियों को अभी भी न बचाया गया तो समय के साथ इनका वजूद मिट जाएगा, क्या आप इनके पुनर्निर्माण में हमारी मदद नहीं करेंगे?’
निर्भय गुर्जर, के. के. मुहम्मद की बातों से बेहद प्रभावित हुआ. उसे उनकी बात समझ में आ गई और उसने इन मंदिरों के पुनर्निर्माण में अपना पूरा सहयोग दिया. जिससे बटेश्वर के मंदिरों को नया जीवन मिला और देश की धरोहर को वक्त रहते संजो लिया गया. इस घटना को बहुत कम लोग जानते हैं. लेकिन केके मुहम्मद बिना किसी लोक-प्रसिद्धि के इस मकसद में लगे रहे.
ऐसे में मन में एक सवाल उठना लाजिमी है कि बाबर और गजनवी द्वारा मंदिरों को गिरवाने और नफरत फैलाने वाले न जाने कितने ही किस्सों को याद किया जाता है लेकिन क्या देश के. के. मुहम्मद जैसे लोगों को भी याद रखेगा? क्या मजहबी दीवारों को तोड़ने वाले ऐसे लोगों की कहानियां भी आने वाली पीढ़ियों को सुनाई जाएगी? आप ही सोचिए, एक तरफ अयोध्या में विवादित ढांचे पर आए दिन सियासी दांवपेंच देखने को मिलते हैं और दूसरी तरफ बटेश्वर की धरोहर को समेटने की घटना को कोई जानता भी नहीं है….Next
(महत्वपूर्ण जानकारी सांझा करने के लिए विशेष सहयोग : ताबिश सिद्दीकी )
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