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भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में लोगों ने अपनाया ये अजीबोगरीब तरीका

मतांतर लोकतंत्र की आत्मा है और किसी मत का विरोध इसका चरित्र. भारत में विविधता का अंदाजा लगाना हो तो मोदी सरकार के प्रस्तावित भू-अधिग्रहण बिल का विरोध देख लीजिये. किसी ने इस मसौदे को किसान विरोधी बताकर उसका विरोध किया तो कईयों ने उसे मोदी-पूँजीपति के बीच प्रगाढ़ होते प्रेम के चश्मे से देखा. विरोध करने के तरीक़े भी एक दूसरे से अलग. विरोध की विभिन्न शैलियों को अपनाते हुये किसी ने इस मसौदे को लाल झंडा दिखाया तो किसी ने संसद से राष्ट्रपति भवन तक पैदल चलकर इसका विरोध किया.


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अब विरोध के तरीक़ों में इतना अंतर था तो उसे रोकने के लिये पुलिसिया कार्रवाई में भी विभिन्नता स्वभाविक थी. कहीं विरोध करने वालों पर पानी के धारों की बौछारें की गयी तो कहीं उन्हें दो राज्यों की सीमाओं पर रोक आगे बढ़ने नहीं दिया गया. लेकिन विरोध करने वाले विरोधियों को ठेंगा दिखाते हुये ये तस्वीर उन्हें अपनी गली की सड़क पर बैठे-बैठे विरोध का तरीक़ा सिखा रही है. वो तरीक़ा जिसके कारण भू- अधिग्रहण मसौदे के पन्नों को स्वयं ही शर्म आ जाये. फिर विरोध के तरीक़े से उपजे शर्म रूपी मल का भार इतना बढ़ जाये कि लोकतंत्र-ए-मंदिर के ऊपरी भवन में कर्मचारी और सरकार के मंत्री इसे उठाकर आगे बढ़ाने का साहस ही न बटोर सकें.


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ऐसा लगता भी है कि झारखंड के वन-बंधुओं के इस नायाब विरोध ने सचमुच इस मसौदे के पन्नों का भार बढ़ा दिया है जिसके कारण मंदिर के निचले भवन से अनुमति मिल जाने के बाद भी उसे ऊपरी भवन में लाया नहीं जा सका है.

हुआ यह कि झारखंड के हमारे वन-बंधुओं ने सार्वजनिक रूप से भू-अधिग्रहण के मसौदे की प्रतियों को भूमि पर बिछाकर उस पर मल त्याग दिया. करीब 60 लोग अगर एक साथ किसी ऐसे मसौदे पर मल त्यागें जो कानून का शक्ल लेने वाली हो तो निश्चित रूप से मसौदे की प्रतियों का भार बढ़ना तय है.  किसी चीज़ को बाज़ार में बिकाऊ बनाने में अपनी भूमिका से अंजान कैमरे ने इस तस्वीर को झारखंड की उस सड़क से उठाकर देश के कोने-कोने में पहँचा दिया.


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अब देखना ये है कि क्या मोदी सरकार इस तस्वीर को नजरअंदाज कर अपने फैसले पर अडिग रहेगी अथवा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस मसौदे को इस लायक बनायेगी कि कल फिर इसकी प्रतियों पर मल त्यागने की नौबत नहीं आये! Next…

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