योजना तो छोड़िए, असल में इनके हक के पैसों के भी लक्जरी आइटम खरीद लिए जाते हैं.
29 हजार करोड़ में से मजदूरों को नहीं मिला 10% भी
कैग (कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है 29 हजार करोड़ रुपये के फंड, जिसे निर्माण क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों पर खर्च किया जाना था, उसे लैपटॉप और वॉशिंग मशीन खरीदने में खर्च कर दिया गया. इन पैसों का 10% हिस्सा भी मजदूरों के हित में खर्च नहीं किया गया है. इस खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय श्रम सचिव को नोटिस भेजकर 10 नवम्बर तक जवाब तलब किया गया है. साथ ही10 नवंबर से पहले न्यायालय में पेश होने का निर्देश दिया गया है, उन्हें ये बताने को कहा गया है कि यह अधिनियम कैसे लागू किया और क्यों इसका दुरुपयोग हुआ.
एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) है, जिसका नाम है-नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिस्लेशन ऑन कंस्ट्रक्शन लेबर (National Campaign Committee for Central Legislation on Construction Labour), इसने एक जनहित याचिका दायर करके आरोप लगाया था कि मजदूरों के लिए रियल एस्टेट कंपनियों से सेस (अप्रत्यक्ष कर) लगाकर जो पैसा इकट्ठा हुआ है, उसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है. एनजीओ ने मजबूत तर्क देते हुए बताया था कि जिन मजदूरों को फायदा देना है, उनकी पहचान करने का कोई सिस्टम तक नहीं बनाया गया है, ऐसे में उनको मजदूरी कैसे दी जाती होगी या उनपर किसी भी प्रकार का खर्च कैसे किया जाता होगा.
2015 से लटका हुआ है मामला
2015 में कोर्ट ने इस मामले में नाराजगी जताते हुए जांच के आदेश दिए थे. उस वक्त ये फंड 26000 करोड़ रुपय का था. कैग ने अब एफिडेविट के साथ रिपोर्ट पेश की है, जिसके मुताबिक फंड का पैसा राज्य सरकारों और लेबर वेलफेयर बोर्ड्स ने दूसरे कामों में खर्च कर दिया. बड़ी रकम एडमिनिस्ट्रेटिव कामकाज में भी खर्च किया गया, जबकि नियम में सिर्फ 5% खर्च करने की इजाजत थी. रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि लैपटॉप और वॉशिंग मशीनें भी खरीदी गई हैं.
अब आप सोचिए, ऐसे में मजदूरों की स्थिति में किस तरह सुधार हो सकता है? …Next
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