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विजय माल्या इन हैरतअंगेज कहानियों को पढ़कर शायद वापस लौट सकते हैं भारत!

‘विजय माल्या माल मारकर भाग गया, राइट ब्रदर्स ने भगाया माल्या को! माल्या के फरार होने के लिए राइट ब्रदर्स जिम्मेदार है क्योंकि न उन्होंने हवाईजहाज बनाया होता और न ही माल्या माल लेकर फरार हो पाते.’ 7000 करोड़ रुपए से ज्यादा का बैंक लॉन न चुका पाने की वजह से डिफॉल्टर घोषित होने के बाद, विजय माल्या के विदेश भागने पर पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ऐसी ही फन्नी लाइनर देखने को खूब मिले. लेकिन जरा, सिक्के के दूसरे पहलू के बारे में भी सोचिए.


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4 साल की उम्र में मिली फेरारी कार

हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके चेहरे पर विजय माल्या के ऐसे जोक्स पढ़ने के बाद और भी मायूसी छा जाती है. ये लोग हैं किंगफिशर में काम करने वाले 7000 से ज्यादा कर्मचारी, जो अब फिलहाल दर-बदर की ठोंकरे खाने के बाद अब घर बैठने पर मजबूर हो चुके हैं. दरअसल, साल 2012 में किंगफिशर एयरलाइन्स बंद होने की घोषणा हुई थी, लेकिन एयरलाइन्स के बंद होने के महीनों पहले ही यहां के कर्मचारियों को सैलेरी मिलनी बदं हो गई थी. विजय माल्या के विदेश भागने के बाद इन 7000 कर्मचारियों की आखिरी उम्मीदें भी खत्म होती दिख रही है. साथ ही इन लोगों की दर्दनाक कहानियां सुनने को मिल रही है.


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एयरलाइन्स बंद होने की घोषणा से पहले ही की खुदकुशी

‘6 महीने से मेरे पति को सैलेरी नहीं मिली है. मुझे डर है कि आपकी कंपनी कहीं बंद न हो जाए. अब घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. मैं अब आत्महत्या करने पर मजबूर हो चुकी हूं.’ किंगफिशर के एक कर्मचारी की पत्नी सुष्मिता चक्रवर्ती के सुसाइड नोट में लिखे ये आखिरी शब्द थे.

12 लाख रुपए बकाया रह गई सैलेरी

करना चाहती. इस दिन मैंने मुंबई में एक अच्छी-खासी नौकरी को छोड़कर किंगफिशर जॉइन कर लिया था. मैंने 21 साल की उम्र से नौकरी करना शुरू कर दिया था जिससे मैं अपने सपनों को अपनी मेहनत से पूरा कर संकू, लेकिन किंगफिशर पर मेरी 17 महीने की सैलेरी यानि 12 लाख रुपए बकाया है. मैं उम्मीद खो चुकी हूं’. 38 साल की लेस्ली डिसूजा न्याय की उम्मीद लिए हर तरफ गुहार लगा रही है.


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अस्सिटेंट मैनेजर था लेकिन आज सड़क पर हूं

‘मैं घर में अकेले कमाने वाला था. मेरी पत्नी, बेटी और माता-पिता साथ ही रहते थे. आखिरी बार मुझे 2011 या 2012 में सैलेरी मिली थी, वक्त के साथ मैं ये भी भूल चुका हूं. याद है तो सिर्फ अपनी जरूरतें. मैंने नौकरी ढूढंने की कोशिश की थी. लेकिन फिर हार मानकर अपना रेस्टोरेंट शुरू किया. जो कि घाटे का सौदा रहा. मैं फ्लाइट ऑपरेशन का अस्सिटेंट मैनेजर था, लेकिन आज सड़क पर हूं. मेरे पिता इलाज न होने की वजह से मर गए. मेरे पास उनकी बरसी मनाने के भी पैसे नहीं थे. सुदीप चौधरी की कहानी सुनकर किसी की भी आंखें छलक पड़ेगी.

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1.2 लाख सैलेरी से आया 5000 पर

‘राजा से रंक होने की कहानी अक्सर फिल्मों और कहानियों में ही देखी-पढ़ी थी लेकिन 2011 के बाद मैं एक रंक था जो पहले कभी राजा हुआ करता था. मैं किंगफिशर में गेस्ट सर्विस डिपार्टमेंट में था जहां मुझे 1.2 लाख रुपए की सैलेरी महीने मिलती थी. जबकि कंपनी बंद होने पर मुझे एक कंपनी में 5000 की नौकरी करनी पड़ी.’  मंगेश कोचड़े की कहानी सुनकर कोई भी स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगा सकता है…Next


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