वह कॉलेज में पढ़ती है. उसके सपने बड़े हैं. वह और पढ़ना चाहती है, पढ़कर कुछ बनना चाहती है. वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है और इतना सक्षम बनना चाहती है कि अपनी जिंदगी के फैसले खुद ले सके. लेकिन वह तब हैरान रह गई जब उसे पता चला कि उसकी जिंदगी का एक सबसे बड़ा फैसला बहुत पहले लिया जा चुका है. तभी जब उसे धरती पर आए कुछ ही महीने हुए थे. यह फैसला था उसकी शादी का. उसे यह फैसला मंजूर नहीं है लेकिन समाज उसके इस विरोध का भारी कीमत चाहता है.
राजस्थान के लुनी तहसील की शांतादेवी मेघवाल का विवाह तभी कर दिया गया था जब वह महज 11 महीने की थीं. शांतादेवी के गांव का नाम रोहीचंद खुर्द है. तीन साल पहले जब उन्हें अपने बाल विवाह के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया. शांतादेवी ने यह शादी तोड़ने का फैसला किया लेकिन ग्राम पंचायत को उनका यह फैसला मंजूर नहीं है. ग्राम पंचायत ने शांतादेवी द्वारा शादी तोड़ने की सजा के तौर पर 16 लाख रुपए का जुर्माना चुकाने का फरमान सुनाया है.
शांतादेवी का कहना है कि, “जब मेरे ससुराल वाले को मेरे फैसले के बारे में पता चला तो वे आग-बबूला हो गए. वे मुझपर फैसला बदलने के लिए तरह-तरह के दबाव डालने लगे और जब उनका कोई जोर न चला तो पंचायत पहुंच गए.”
पंचायत ने शांतादेवी के परिवार पर न सिर्फ 16 लाख रुपए का जुर्माना लगाया बल्कि उन्हें समाज से बेदखल भी कर दिया. एक समाजसेवी संस्था सारथी ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी कीर्ति भारती ने बताया कि वे पंचायत के उपर कानूनी कार्यवाही करने की सोच रहे हैं साथ ही उनकी कोशिश है कि शांतादेवी के ससुराल वालों को इस शादी को तोड़ने के लिए रजामंद कर लें.
शांतादेवी के पिता एक मिस्त्री हैं उनका कहना है कि वे अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि बाल विवाह की प्रथा के खिलाफ लड़कर समाज में एक उदाहरण स्थापित करना चाहते हैं. Next…
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