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कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न के खिलाफ अस्तित्व में आई थी ‘विशाखा गाइडलाइंस’, जानें इसकी खास बातें

#MeToo कैम्पेन को लेकर इन दिनों बहस छिड़ी हुई है। फिल्मी, राजनीति और पत्रकारिता जगत से कई ऐसे नामों पर यौन शोषण के आरोप लगे, जो सच में चौंकाने वाले हैं। वहीं सोशल मीडिया पर भी आम महिलाएं भी अपने साथ हुई घटनाओं को खुलकर लिख रही हैं। ऐसे में मामले की गंभीरता को देखते हुए कई दफ्तरों ने अपने यहां ऐसे मामलों से निपटने के लिए कई गाइडलाइंस जारी कर दी है। अगर आप भी नौकरी करते हैं या आपके घर में कोई महिला नौकरी करती हैं, तो आपको विशाखा गाइडलाइंस के बारे में जरूर जानना चाहिए।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal18 Oct, 2018

 

 

क्या है विशाखा गाइडलांइस
कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों को ही ‘विशाखा गाइडलाइन्स’ के रूप में जाना जाता है। इसे विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार और भारत सरकार मामले के तौर पर भी जाना जाता है।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन-उत्पीड़न, संविधान में निहित मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 15 और 21) का उल्लंघन हैं। इसके साथ ही इसके कुछ मामले स्वतंत्रता के अधिकार (19)(1)(g) के उल्लंघन के तहत भी आते हैं।

 

इस केस के बाद अस्तित्व में आई विशाखा गाइडलांइस
राजस्थान में जयपुर के पास भातेरी गांव में रहने वाली सोशल वर्कर भंवरी देवी इस पूरे मामले की केंद्र-बिंदु रहीं।
भंवरी देवी राज्य सरकार की महिला विकास कार्यक्रम के तहत काम करती थीं। एक बाल-विवाह को रोकने की कोशिश के दौरान उनकी बड़ी जाति के कुछ लोगों से दुश्मनी हो गई। जिसके बाद बड़ी जाति के लोगों ने उनके साथ गैंगरेप किया। इसमें कुछ ऐसे लोग भी थे जो बड़े पदों पर थे।
न्याय पाने के लिए भंवरी देवी ने इन लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराया लेकिन सेशन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया क्योंकि गांव पंचायत से लेकर पुलिस, डॉक्टर सभी ने भंवरी देवी की बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया।  भंवरी देवी के ख़िलाफ हुए इस अन्याय ने बहुत से महिला समूहों और गैर-सरकारी संस्थाओं को आगे आने के लिए विवश कर दिया। कुछ ग़ैर-सरकारी संस्थाओं ने मिलकर साल 1997 में ‘विशाखा’ नाम से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। जिसे विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार और भारत सरकार के नाम से भी जाना जाता है। इस याचिका में भंवरी देवी के लिए न्याय और कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई।

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण को ऐसे किया परिभाषित
किसी भी तरह के गलत इशारे करना
ग़लत व्यवहार या टिप्पणी करना
शारीरिक संबंध बनाने/करने के लिए कहना
1997 से पहले महिलाएं कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न की शिकायत आईपीसी की धारा 354 (महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ या उत्पीड़न के मामले ) और 509 (किसी औरत के सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात या हरकत) के तहत दर्ज करवाती थीं।

 

 

2013 में लागू हुआ ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट’
सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइन्स के तहत कार्यस्थल के मालिक के लिए ये ज़िम्मेदारी सुनिश्चित की थी कि किसी भी महिला को कार्यस्थल पर बंधक जैसा महसूस न हो, उसे कोई धमकाए नहीं। साल 1997 से लेकर 2013 तक दफ़्तरों में विशाखा गाइडलाइन्स के आधार पर ही इन मामलों को देखा जाता रहा लेकिन 2013 में ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट’ आया…Next

 

 

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