प्राचीन समय में संदेश पहुंचाने के लिए आम लोगों के लिए व्यवस्था नहीं थी। संदेश सिर्फ राजा महाराजाओं के द्वारा एक से दूसरे तक पहुंचाए जाते थे। तब संदेश किसी पेड़ के पत्ते पर या फिर कपड़े पर लिखा जाता था और एक से दो व्यक्ति इसे लेकर सही पते पर पहुंचते थे। यह संदेश हर रोज नहीं भेजे जाते थे, बल्कि कभी कभार विशेष आयोजन के दौरान ही भेजे जाते थे। कई बार संदेश वाहकों की संख्या संदेश की महत्ता के अनुसार कम या ज्यादा रहती थी। उस समय हर दिन और आम लोगों के लिए संदेश की व्यवस्था भी नहीं थी। बाद में आधुनिक काल के दौरान संदेश भेजने की व्यवस्था को मजबूत करने का काम किया गया। भारत में अंग्रेजों ने डाकघरों की स्थापना की और डाक व्यवस्था को सुदृढ़ किया। डाकसेवा की शुरुआत में चिट्ठी भेजने के लिए लोगों को कई दिन तक लाइन में लगे रहना पड़ता था तब उनकी चिट्ठी जमा हो पाती थीं।
17वीं सदी में डाकसेवा शुरू
जानकारों के मुताबिक भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से अंग्रेजों को सबसे ज्यादा संदेश इधर से उधर भेजने की जरूरत पड़ती थी। वह लोग भारत में फैली अपनी कंपनी के अलग अलग शहरों के कार्यालयों में संदेश पहुंचाते थे। इसमें उन्हें काफी समय लग जाता था। ऐसे में अंग्रेज अफसरों ने भारत में संदेश भेजने की व्यवस्था को सरल और आसान बनाते हुए डाकघरों की स्थापना की। 18वीं सदी से पहले ही भारत में डाक व्यवस्था का संचार शुरू हो गया था। अंग्रेज अधिकारी लॉर्ड क्लाइव ने 1766 में भारत के पहले डाकघर की स्थापना की। बाद में इस व्यवस्था को विस्तार दिया गया।
वैश्विक स्तर पर बना संगठन
17वीं सदी में ही दुनियाभर के कई देशों ने वैश्विक संचार व्यवस्था को लेकर मंथन शुरू कर दिया था। इस दौरान कई देशों ने डाक व्यवस्था को भी शुरू कर दिया था। 1874 में विश्व समुदाय ने संदेश भेजने के इंतजामों को वैश्विक तौर पर और सरल बनाने के उद्देश्य से यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का निर्माण किया। इस व्यवस्था में अन्य देशों को भी शामिल करने के लिए स्विट्जरलैंड में बड़े स्तर पर एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें दुनियाभर के तमाम देशों ने हिस्सा लिया। 1969 में डाक व्यवस्था के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से जापान की राजधानी में हुए सम्मेलन में फैसला लिया गया कि प्रत्येक वर्ष 9 अक्टूबर के दिन को डाक दिवस के रूप में सेलीब्रेट किया जाएगा।
कोलकाता में बना पहला डाकघर
आंकड़ों के तहत भारत में सबसे पहला डाकघर कोलकाता में स्थापित किया गया था। अंग्रेजों ने कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्यालय की स्थापना की थी और उनके सभी संचार कार्य यहीं से संचालित होते थे। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारत में अंग्रेज अधिकारी लॉर्ड क्लाइव ने 1766 में डाक व्यवस्था बनाई और इसके लिए यहीं पर कार्यालय भी बना जो पहला डाकघर कहलाया। 1774 में इस व्यवस्था को और बेहतर बनाते हुए अंग्रेज अधिकारी वॉरेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता डाकघर को विकसित किया। कोलकाता डाकघर की स्थापना के बाद मद्रास में 1786 में डाकघर बनाया गया। इसके बाद बाद 1793 में मुंबई में डाक कार्यालय को स्थापित किया गया। 1854 में इन डाकघरों को राष्ट्रीय महत्व की प्रक्रिया मानकर संचार प्रणाली का मुख्य हिस्सा बना दिया गया।
मनीऑर्डर सेवा ने क्रांति ला दी
भारत में डाक सेवा को राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य संचार प्रणाली बनाए जाने के बाद 1863 पहली रेल डाक सेवा की शुरूआत की गई। डाक सेवा को बेहतर बनाते हुए चिट्ठियों को बंद करने के लिए खूबसूरत और नक्काशीदार लिफाफों की शुरुआत 1873 में कर दी गई। 1880 में डाकसेवा के माध्यम से रुपयों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए मनीआर्डर सेवा की शुरुआत हुई। यह सेवा अपनी शुरुआत से ही डाकघर की सबसे ज्यादा प्रचलित सेवाओं में शुमार हो गई। इसके बाद पोस्टल ऑडर, पिनकोड व्यवस्था, डाक जीवन बीमा, स्पीड पोस्ट समेत कई तरह की सेवाओं की शुरुआत की गई।…Next
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