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बाल विवाह का दंश, बच्चियां बन रही हैं बच्चों की मां

हाथों में लाल-लाल चूड़ियां, गले में मंगलसूत्र और लाल जोड़े में सजी इस दुल्हन की उम्र महज 13 साल. शहरों और महानगरों में रहने वाले लोगों के लिए यह खबर चौकानें वाली हो सकती है लेकिन गांवों और पिछड़े हुए इलाकों में ये बात आम हो चुकी है. यही नहीं देश के कुछ राज्य तो ऐसे हैं जहां बाल विवाह एक पारम्परिक रीति -रिवाज की तरह बहुत धूम-धाम से निभाया जाता है.

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बाल विवाह की कुप्रथा इंडो नेपाल सीमा और बरेली से लगे उत्तराखंड के गांवों में प्राचीन समय से चली आ रही है. यहां पर अक्षय तृतीया के दिन सामूहिक रूप से बाल विवाह करवाया जाता है. बाल विवाह का दंश झेल रही रजनी की शादी 14 बरस में अपने से बड़ी उम्र के लड़के के साथ हो गई थी. आज वो एक बच्चे की मां है. उसने कभी दूसरी लड़कियों की तरह खेलना-कूदने का सपना नहीं देखा उसे तो बस आज अपनी जिम्मेदारियां ही याद रह गई है लेकिन उत्तराखंड के गांव में वो अकेली ऐसी लड़की नहीं है. उसके अलावा भी न जाने ऐसी कितनी ही कहानियां है जो उम्र से पहले ही बड़ी हो चुकी हैं.


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पीलीभीत, बरेली, बदांयू और शाहजहांपुर में बाल विवाह का शिकंजा इतना कस गया था कि बीते अप्रैल माह में जिले के उच्च अधिकारियों को अक्षय तृतीया के दिन बाल विवाह को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने के लिए निर्देश दिए गए थे. साथ ही कई पुलिस अधिकारियों को गांव में घूम-घूम करकर मॉनिटरिंग करने के आदेश भी जारी किए गए थे. ऐसे में बाल विवाह के मामलों में कमी तो देखी गई लेकिन चोरी-छुपे विवाह की इस कुरीति को अंजाम दिया गया.


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वहीं त्यौहार खत्म हो जाने पर प्रशासन का लचर रवैया फिर से जारी हो गया. इस पर राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले कई सारे सामाजिक संस्थाओं ने आवाज बुलंद करते हुए केवल अक्षय तृतीया के दिन ही पुलिस की सक्रिय भूमिका पर सवाल उठाए. उनका मानना था कि बाल विवाह पर पुलिस की कार्यशैली अगर हर दिन ऐसी ही रहे तो शायद आज तक बाल विवाह पर लगाम लग चुकी होती. भारत के कानून में 18 साल से कम उम्र में लड़की की शादी करना गैर-कानूनी है. ऐसे में गांव में ये अलग किस्म का रिवाज किसी की भी समझ से परे है. आखिर गांव भी तो देश का ही हिस्सा है ऐसे में वहां पर अलग कानून कैसे चल सकता है.


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बाल विवाह पर प्रहार करती ऐसी ही एक कहानी है झारखण्ड की, जहां एक किशोरी अपनी शादी रुकवाने के लिए खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास पहुंच गई. लड़की की शिकायत थी कि उसके माता-पिता जबर्दस्ती उसकी शादी करवाना चाहते हैं जबकि वो आगे पढ़ाई करना चाहती है. उसकी बातों को मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लिया और तुरंत उसके पिता को अपने मोबाइल से फोन लगाकर बात की. मुख्यमंत्री की आवाज सुनते ही लड़की के पिता हैरान हो गए और बहुत समझने बुझाने पर, अपनी बेटी को आगे पढ़ाने को राजी हो गए. हैरानी की बात यह है कि लड़की के पिता शिक्षक थे और राज्य के एक नामी स्कूल में पढ़ाते थे. आधुनिक समाज में पढ़े-लिखे लोगों की ऐसी सोच ही बाल विवाह जैसी कुप्रथा को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है…Next


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