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इन्साफ के लिए और कितना इंतजार…..

Mohammed Ajmal Amir Kasabभारत की लचर कानून व्यवस्था और इसका फायदा उठाते अपराधी. मौत की सजा तो मिलती है परंतु हमारी कानून व्यवस्था में इससे बचाव के भी पेंच हैं. अंत में जब फैसले की घड़ी आती है तो उस वक्त या तो अपराधी वैसे ही सलाखों के पीछे दम तोड़ देते हैं या फिर छूटने के बाद बाहर आकर शेखियां बघारते हैं. कुछ ऐसी ही हकीकतों को बयान करते प्रस्तुत हैं कुछ मामले:





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अफजल गुरु की फांसी की सजा का इंतजार


9 साल पहले 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए हमले के आरोपी आतंकी अफजलगुरु की फांसी की सजा को अब तक बरकरार रखा गया है. 18 दिसंबर, 2002 को अदालत ने अफजल गुरु और दो अन्य आंतकियों को फांसी की सजा सुनाई थी पर आरोपियों ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. 29 अक्टूबर, 2003 को हाई कोर्ट ने मोहम्मद अफजल गुरु व शौकत गुरु की अपील खारिज कर दी थी और इनके लिए फांसी की सजा बरकरार रखी गई थी पर अफजल और शौकत गुरु ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 4 अगस्त, 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में अफजल की फांसी की सजा बरकरार रखी. लेकिन इसके बाद उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर दी जिस पर अभी तक फैसला विचाराधीन है और शौकत की सजा सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी थी.


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देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर

नई दिल्ली में यूथ कांग्रेस के दफ्तर के बाहर 1993 में बम धमाका करने वाले देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर को भी सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. इस ब्लास्ट में 12 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 29 लोग घायल हो गए थे. 25 अगस्त, 2001 को भुल्लर को निचली अदालत ने दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च, 2002 को फांसी की सजा को निश्चित किया और 19 दिसंबर, 2002 को भुल्लर की याचिका खारिज कर दी गई.


आतंकी संगठन बब्बर खालसा से वास्ता रखने वाले देवेंद्र की दया याचिका को राष्ट्रपति भी खारिज कर चुके हैं. उसके परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर फांसी की सजा कम किए जाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने  सुनवाई के दौरान इस मामले में केंद्र व दिल्ली सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था. मामला अभी विचाराधीन है.


बलवंत सिंह राजोआना

31 अगस्त, 1995 को पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की फांसी की सजा भी अब तक लटकी हुई है. अदालत ने 31 जुलाई, 2007 को बलंवत सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ राजोआना ने हाई कोर्ट में कोई अपील दायर नहीं की थी. हाई कोर्ट से सजा की पुष्टि होने के बाद जिला अदालत ने पांच मार्च को पटियाला जेल अधीक्षक को एक्जीक्यूशन वारंट जारी किए थे. जेल अधीक्षक ने कई तरह के तर्क देते हुए राजोआना को फांसी पर चढ़ाने से मना कर दिया था और यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आने का हवाला देते हुए डेथ वारंट वापस कर दिए. लेकिन अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के नियमों का हवाला देते हुए दोबारा से डेथ वारंट जारी कर दिए.


इस मामले में खुद सरकार ही राजोआना की फांसी की सजा को माफ करने को लेकर राष्ट्रपति के पास दया याचिका लेकर पहुंच गई. यह मामला भी अभी विचाराधीन है.


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please post your comments on: क्या आपको लगता है कि फांसी की सजा किसी भी अपराध को कम करने के लिए सही है ?



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