बच्चों को समाज और देश का भविष्य समझा जाता है. उन्हें जिम्मेदार और परिपक्व बनाने में उनके अपने परिवार की भूमिका बेहद अहम होती है. बच्चे के मानसिक और चारित्रिक विकास के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसे अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए एक स्वस्थ वातावरण मिले और साथ ही परिवार भी हर कदम पर उसकी सहायता करने के लिए तैयार रहे. संतान के जीवन में परिवार की इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए ही बच्चे के लिए परिवार को ही आरंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है.
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आमतौर पर यह माना जाता है कि अगर अभिभावक बच्चे का सही और परिपक्व ढंग से पालन-पोषण करें तभी बच्चे के भविष्य को एक सकारात्मक मोड़ दिया जा सकता है, अन्यथा उन्हें सही मार्ग पर स्थिर रखना बहुत मुश्किल हो सकता है. इसीलिए आपने देखा होगा कि कई माता-पिता अपने बच्चों के साथ बहुत सख्त व्यवहार करते हैं. इसके पीछे उनका मानना है कि अगर बच्चों के साथ बहुत ज्यादा ढील बरती जाएगी तो वे एक आदर्श व्यक्तित्व ग्रहण नहीं कर पाएंगे.
एक समय पहले तक वैज्ञानिकों का भी कुछ ऐसा ही कहना था. अपने सर्वेक्षणों में वे पहले ही यह बात साबित कर चुके हैं कि अभिभावकों का बच्चों पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है. बच्चों की हर बात मान लेना या उन्हें हमेशा प्यार से समझाना सही नहीं है. कभी कभार बच्चों के साथ कठोरता बरतना भी बहुत जरूरी है.
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लेकिन एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि माता-पिता का सख्त व्यवहार बच्चों को कुंठित और तनावग्रस्त बना देता है. विशेषकर वे माताएं जो अपने बच्चों के साथ सख्त व्यवहार करती हैं और उन्हें हर बात पर टोकती हैं, उनके बच्चों में आत्मविश्वास कम होने लगता है और वे मानसिक रूप से भी परेशान होने लगते हैं.
एक ओर जहां चीनी लेखक एमी चुआ ने अपनी किताब में यह लिखा है कि एशियाई देशों में अभिभावको द्वारा बच्चे के साथ किया जाने वाला सख्त व्यवहार उन्हें काबिल और अच्छा प्रतियोगी बनाता है, माता-पिता जब बच्चे के ऊपर दबाव डालते हैं तो बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं. वहीं दूसरी तरफ मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डेसिरी क्वीन का कहना है कि वे बच्चे जो माता-पिता के दबाव में आकर उपलब्धियां पा लेते हैं, वे भले ही सफल हो जाएं लेकिन मानसिक तौर पर वे परेशान और कुंठित हो जाते हैं. अन्य छात्रों की तुलना में वे ज्यादा तनाव में रहते हैं.
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डेसिरी क्वीन ने चीन और अमेरिका के प्रतिष्ठित स्कूलों के बच्चों को अपने इस शोध का केन्द्र बनाया जिसके बाद उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि बच्चों पर अधिक सख्ती करना उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बनाता है.
डेली न्यूज में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार क्वीन का कहना है कि एमी ने भले ही यह लिखा हो कि पश्चिम में बच्चे चीनी या एशियाई बच्चों से ज्यादा खुश हैं लेकिन वे बच्चे वास्तविक रूप से खुश नहीं रहते.
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अगर इस शोध और उसकी स्थापनाओं को भारतीय परिवेश के अनुसार देखें तो अभिभावकों का बच्चों के साथ सख्ती या कठोरता करना उन्हें सही मार्ग पर अग्रसर रखने के लिए काफी हद तक सहायक होता है. लेकिन यह कितना और किस हद तक होना चाहिए इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.
कई बार देखा जाता है कि अगर अभिभावक बच्चों को हर बात पर डांटते या उन पर दबाव बनाते हैं तो उनके बच्चे परेशान रहने लगते हैं और वे अवसाद ग्रसित हो जाते हैं. वहीं अगर माता-पिता सख्ती ना बरतें तो बच्चों को सही मार्ग पर चलाना दूभर हो जाता है. अभिभावकों की अनदेखी बच्चों के चारित्रिक विकास को बाधित करती हैं. वे अपनी पढ़ाई को तो नजर अंदाज करने ही लगते हैं इसके अलावा नैतिक और सामाजिक मूल्यों से दूर हो जाते हैं.
प्राय: देखा जाता है कि जिन बच्चों की गलतियां परिवार और समाज हमेशा माफ करता हैं, वे कभी भी सही और गलत में अंतर नहीं कर पाते. वह बहुत ज्यादा जिद्दी हो जाते हैं. उन्हें अपने हितों और इच्छाओं के आगे कुछ भी नजर नहीं आता. सहनुभूति या सहयोग जैसे शब्द उनके लिए कुछ खास महत्व नहीं रखते. समाज और परिवार की जरूरत और आपसी भावनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं रहता. वह जानते हैं कि उनकी हर भूल माफ कर दी जाएगी इसीलिए उन्हें अपनी बड़ी से बड़ी गलती भी बहुत छोटी लगती है. वह कभी भी जिम्मेदार और परिपक्व व्यक्ति नहीं बन पाते.
इसीलिए जरूरी है कि कठोरता और प्रेम में सामंजस्य बैठा कर ही बच्चों के साथ व्यवहार किया जाए. दोनों की ही अति संतान और परिवार के भविष्य पर प्रश्नचिंह लगा सकती है.
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