“बड़ा आसान है यह कह देना कि जाति-प्रमाण पत्र से विकास हो सकता है पर यह समझ पाना उतना ही कठिन है कि आखिरकार किस वर्ग को सही अर्थो में जाति प्रमाण पत्रों की जरूरत है.”
हैरान कर देने वाला सवाल है कि ‘क्या आपने भी जाति प्रमाण पत्र बनवाया है’? पर हैरानी के साथ-साथ यह सवाल परेशान कर देने वाला भी है कि अचानक जाति प्रमाण पत्र के बारे में क्यों पूछा जा रहा है. ऐसा क्या हो गया है कि जाति प्रमाण पत्र पर इतना जोर दिया जा रहा है. सच तो यह है अचानक ऐसा अजीब सा सवाल पूछने का जरा भी यह मतलब नहीं है कि जातियों से संबंधित बात की जाएगी बल्कि सिर्फ एक ऐसा नया नजरिया दिखाया जाएगा जिसे जानना बहुत जरूरी है.
बिहार में लागूलोक सेवाके अधिकार कानून के बारे में कहा है कि ‘यह कानून नहीं होता तो वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की नौकरी हासिल नहीं कर पाते, क्योंकि इतनी आसानी से उन्हें जाति और आवासीय प्रमाण पत्र नहीं मिल पाता.
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अमित कहते हैं कि उन्होंने इन दोनों प्रमाणपत्रों के लिए ऑनलाइन आवेदन किया और 21वें दिन प्रखंड कार्यालय से जाकर प्रमाणपत्र ले आए. यह कहानी केवल एक अमित की नहीं है जिन्हें जाति और आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़े और घर बैठे ही ऑनलाइन आवेदन करने पर उनके प्रमाणपत्र बन गए. करीब एक वर्ष पूर्व 15 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोक सेवा अधिकार कानून लागू करने की घोषणा की थी और 16 अगस्त, 2011 से यह लागू हुआ. पिछले एक वर्ष में इस कानून का इस्तेमाल कर दो करोड़ प्रमाणपत्र हासिल किए गए. पर क्या यह प्रमाण पत्र काफी हैं किसी भी वर्ग के विकास के लिए ??
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