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क्या स्त्रियां मानसिक रूप से गुलाम हैं

20वीं सदी के इस दौर में हर तरफ महिला सशक्तिकरण की आवाजें गूंज रही हैं. हर क्षेत्र में नारी अग्रणी होती जा रही है. व्यापार जगत हो या खेल जगत हर जगह स्त्रियों ने दिखा दिया है कि वह अब पुरुषों से किसी भी मामले में पीछे नहीं हैं. लेकिन यह सूरत जो महिला सशक्तिकरण की आप देख रहे हैं वह सिर्फ मुठ्ठी भर महिलाओं की है. बाकी की अधिकतर नारी जाति तो आज भी शोषण और घर की चारदीवारी में घिरी है.

जब भी हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं तो ज्यादा ध्यान महिलाओं के आर्थिक विकास पर ही होता है जबकि महिलाएं इस समय न ही आर्थिक रुप से पिछड़ी हुई हैं बल्कि मानसिक स्तर पर भी हम देखते हैं कि महिलाएं पुरुषों के ही इशारे पर चलती हैं.

महिलाओं को शुरु से ही उनके परिवार वालों के द्वारा दिमाग में एक गठरी बांध दी जाती है कि तुम्हें अपने पति के साथ रहना है, बच्चे पालना है, घर के काम करने हैं आदि आदि. जब ये छोटी रहती हैं तब मां, बाप, भाई की सेवा करती हैं, जब बड़ी हो जाती हैं तब पति की सेवा करती हैं. और फिर अपने बच्चों की सेवा करते-करते संसार छोड़ देती हैं.

लेकिन इतना त्याग और अपने सपनों की बलि देने के बाद भी महिलाओं को उनका सही स्थान और सम्मान नहीं दिया जाता. शादी के बाद जिन अरमानों को लेकर एक भारतीय नारी अपने पति के घर जाती है, दहेज की आग में कई बार वह उन अरमानों के साथ खुद जलकर मर जाती है.

लेकिन महिलाओं की इस मानसिक गुलामी की वजह भी महिलाएं ही हैं. एक लड़की को उसकी मां ही उसके दिमाग में यह सब बातें सबसे ज्यादा डालती है कि उसे परिवार के अलावा कुछ सोचना ही नहीं है. यानि महिलाओं की इस गुलामी के पीछे खुद वह ही हैं. इसके साथ बाजारवाद में लिप्त पुरुष बिलकुल नहीं चाहते कि नारी उनसे आगे बढ़े . और वह अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए मुठ्ठी भर महिलाओं को सशक्तिकरण की राह चलाकर बाकियों को सपनों की दुनिया में घुमा देते हैं ताकि महिलाएं उस भ्रमजाल में फंसकर खुश रहें. आज का पुरुषवादी समाज महिलाओं को खुद से नीचा ही मानता है.

मात्र आरक्षण दे देने से हम महिलाओं के कल्याण की बात नहीं कर सकते. यह आरक्षण उन महिलाओं के लिए कोई मायने नहीं रखता जो रोज रात अपने पति से सिर्फ इसलिए मार खाती है क्योंकि दाल में नमक कम होता है या पति को शराब पीने के बाद किसी की धुलाई का मन होता है. महिलाओं को अब खुद अपना रास्ता बनाना होगा. रास्ता आसान होगा अगर वह शिक्षा के साथ चलें तो. इसके साथ ही नारी को नारी की सखा का रोल निभाना होगा. एक मां अपनी बेटी को प्रगति के लिए तत्पर करे न कि घर की चारदीवारी में पुरुष दिमाग से चलने के लिए. हालांकि घर में भी सही वातावरण बनाकर रखना और सबकी देखभाल करना भी एक तरह की उपलब्धि ही है इसलिए नारी को इस तरफ भी समान ध्यान देना चाहिए.

पुरुषवादी समाज में महिलाओं को अभी और संघर्ष करने की जरुरत है साथ ही शिक्षा का जो स्तर महिलाओं में होना चाहिए था वह अब भी कोसों दूर है. कई बार विकास की लय पाने के लिए नारी अपनी मर्यादा की सीमाओं को छोड़ देती है लेकिन यह सीमाएं भी तो पुरुषों द्वारा ही निर्मित की गई हैं. क्या जब एक पुरुष एक से अधिक महिलाओं के साथ प्रेम प्रसंग कर सकता है तो क्या यहीं अधिकार नारी को नहीं है. अगर पति धोखेबाज और बेवफा है तो क्या अगर पत्नी बेवफाई करे तो यह गलत होगा.

समाज को बनाए रखने के लिए महिलाओं को अब अपने मानसिक बंदिशों को तोड़ समाज में अपना स्थान पाने के लिए अग्रसर होना है तभी जाकर समाज में बलात्कार, रेप, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ आदि पर रोक लग सकती है.

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