Menu
blogid : 316 postid : 1620

दंगों का गोगोईवाद: असम और गुजरात हिंसा में फर्क

chief ministerअसम हिंसा में पीड़ित लोग इंतजार कर रहे थे कि अब तो उनके मुख्यमंत्री तरुण गोगोई कुछ तो बोलेगे पर उनके हाथ निराशा ही लगी. गोगोईने कहा कि गुजरात दंगे राज्य द्वारा प्रायोजित थे जबकि उन्होंने कुछहफ्तों के अंदर ही ‌असम हिंसा पर काबू पा लिया.गुजरात में सैकड़ों लोगों कीजान गई थी वहीं असम में महज हमने एक सप्ताह के भीतर ही स्थिति पर काबू पा लिया. तरुण गोगोई को यह बात याद दिलाने की जरूरत है कि असम हिंसा पर काबू पा लिया गया नहीं है अभी भी काबू पाने की कोशिशें ही हो रही हैं वो भी ऐसी कोशिशें जो केवल बातों में नजर आ रही हैं और असम हिंसा केवल असम तक ही सीमित नहीं रह गई है आज भारत के अन्य क्षेत्र भी असम हिंसा से प्रभावित हो रहे हैं.



तरुण गोगोई का यह कहना है कि असम दंगा और गुजरात दंगे में अंतर है. तरुण गोगोई की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है पर उनके यह बात बोलने के कारण से सहमत नहीं हुआ जा सकता है कि गुजरात दंगे राज्य द्वारा प्रायोजित थे जबकि असम हिंसा में ऐसा नहीं है. तरुण गोगोई को अपना बोला हुआ भाषण याद करना होगा कि उन्होंने कहा था कि उनका इस्तीफा इस समस्या का समाधान नहीं है. तरुण गोगोई का कहना था कि उन्होंने हालातबिगडने पर फौरन ही केंद्र से सुरक्षा बलों की मांग की थी पर वो किसी भी विवाद में नहीं पडना चाहते हैं, मगर काफी तल्ख लहजे में कहा किक्या सेंट्रल फोर्स एक दिन में ही पहुंच सकती थी. क्या तरुण गोगोई का यह बोलना काफी नहीं यह समझने के लिए कि असम हिंसा में शायद नॉर्थ ईस्ट में इतनी ज्यादा संख्या में पीड़ित ना होते अगर समय पर फोर्स की कार्यवाही शुरू हो जाती.


असम हिंसा की गुजरात दंगे से तुलना नहीं की जा सकती है. वर्ष 2002 में हुए गुजरात दंगे दो सम्प्रदायों के बीच थे पर असम में हुई हिंसा दो सम्प्रदायों के बीच की नहीं थी लेकिन उसे बना दिया गया. असम में हुई हिंसा बांग्लादेशी शरणार्थियों और नॉर्थ ईस्ट के लोगों के बीच है जहां हजारों की संख्या में नॉर्थ ईस्ट के लोग ही मारे जा रहे हैं. असम में करीब दो लाख लोगों के बेघर-बार होने से यह स्वत: स्पष्ट हो जाती है कि राज्य सरकार सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगाने में बुरी तरह नाकाम रही. राज्य सरकार की नाकामी में केंद्र सरकार की भी हिस्सेदारी नजर आती है. यहविचित्र है कि एक सप्ताह तक सांप्रदायिक हिंसा जारी रहने और 40 से अधिकलोगों की मौतों के बाद केंद्र सरकार को दोनों पक्षों को चेतावनी देने कीयाद आई.


आखिर यह काम पहले-दूसरे ही दिन राज्य सरकार की ओर से क्यों नहीं किया जा सका? राज्य और केंद्र सरकार की ओर से किए जा रहे इन दावों पर यकीन करना कठिन है कि हालात तेजी से सुधर रहे हैं. आखिर जब करीब दो लाख लोग शरणार्थियों की तरह रहने को विवश हों तब फिर यह दावा कैसे किया जा सकता है कि स्थिति ठीक हो रही है? दो समुदायों के बीच छिडी जंग में असम के जो इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुएहैं, उनमें कोकराझार, चिरांग, धुबरी, बोंगईगांव और उदलगुडी शामिल हैं पर असम की हिंसा केवल इन्ही इलाकों तक सीमित नहीं रही बल्कि मुम्बई से लेकर चेन्नई तक नॉर्थ ईस्ट के लोग बड़ी संख्या में पीड़ित होने लगे.


अब इन सब तथ्यों को जानने के बाद यह कहना ही सही होगा कि असम में हुई हिंसा गुजरात दंगे की तरह नहीं है पर यह कोशिश जारी है कि वो गुजरात दंगे की तरह बन जाए. फैसला लेने में मुश्किल तब होती है जब दोनों ही ऐसे समुदाय जिनके बीच में हिंसा हुई हो वो भारत के ही नागरिक हों पर जब दो ऐसे समुदाय जिनमें हिंसा हुई हो उनमें से एक देश का नागरिक और दूसरा शरणार्थी हो तो फिर फैसला लेने में देरी कैसी? सच तो यह है कि असम हिंसा को वोट की राजनीति बना कर खेल खेला जा रहा है जिसमें दो गुटों की हिंसा का दो सम्प्रदायों की हिंसा बन जाना अपरिहार्य है.


Read: जलता असम कराहता भारत


Tags: Assam, Assam tribune, Assam riots 2012, Assam violence in Hindi, Assam violence, Assam violence news, Gujarat violence, Tarun gogoi, Assam chief minister, time difference between assam and Gujarat, Tarun gogoi statement, Assam chief minister statement, difference between Assam and Gujarat violence


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh