कभी आपने अपनी जिन्दगी में ऐसा कोई काम किया है जो आपको अपने ऊपर गर्व करने पर मजबूर कर दे? शायद आप इस प्रश्न को सुनने के बाद सोच में पड़ जाएंगे पर सच तो यह है कि आपने शायद ही ऐसा कोई काम किया होगा जो आपको अपने ऊपर गर्व करने पर मजबूर कर दे. सही अर्थों में हम ऐसे बहुत से काम करते हैं जो हमारे स्वार्थ के लिए होते हैं पर शायद ही हम ऐसे काम करते होंगे जिनमें हमारा कोई भी स्वार्थ ना छिपा हो.
अगर हमारे पास सब कुछ है तो हम शायद ही दूसरों के बारे में सोचेंगे पर किसी बर्मीज़ महिला के लिए, खास तौर पर एक ऐसी महिला के लिए जो कि एक नामचीन फ़िल्मी सितारे की ग्लैमरस पत्नी हो, जिसे अच्छी जिंदगी जीने की आदत हो, वो एक ऐसा पेशा अपनाए जो बहुतों के लिए घृणा का विषय हो, यकीन नहीं होता.
“सच बात तो यह है कि जब मैंने पहली बार एक मुर्दे को छुआ था तो मैं घबराईहुई थी. पर आप ज़रा सोचें कि हम सबको एक दिन इसी रास्ते से जाना है“
आप इस लाइन को पढ़ने के बाद जरूर यह सोच रहे होंगे कि यह महिला क्या बोल रही है और ऐसा क्या कर दिया इसने अपनी जिन्दगी में जो यह अपने ऊपर गर्व कर सकती है……
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साल 2001 में श्वे ज़ी क्वेत ने उन लोगों के लिए अंतिम संस्कार सेवा शुरू की जो इसका ख़र्च नहीं उठा सकते. श्वे ज़ी क्वेत के पति चो तू, एक ज़माने में बर्मा के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक होते थे और एक पैसे वाले परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
बर्मा के शहर रंगून में श्वे ज़ी क्वेत की सहायता संस्था अपने किस्म की पहली संस्था है. श्वे ज़ी क्वेत की संस्था सारे बर्मा में अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने में मदद करती है. सबसे पहले तो शव को तैयार करना होता है, शव के साथ चढ़ावे देने होते हैं, संस्कार करने वालों को भेंट देनी होती है और उसके अलावा बौद्ध भिक्षुओं को भोजन भी कराना होता है. यह संस्कार कई दिनों तक चलते रहते हैं. आरंभ में श्वे ज़ी क्वेत के दोस्तों और परिवार वालों की प्रतिक्रिया कुछ उत्साहित करने वाली नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे उनका रुख बदलने लगा.
अंतिम संस्कार कराने में भी दुनिया को ऐतराज
सामाजिक रूप से परंपरावादी बर्मा में शवों को अंतिम संस्कार के लिए तैयार करने को कोई बहुत अच्छा काम नहीं माना जाता. केवल एक समूह के लोग ही यह काम करते हैं और उन लोगों के बीच भी यह काम पीढ़ियों से चला आ रहा है.
श्वे ज़ी क्वेत याद करती हैं “आरंभ में मेरेरिश्तेदारों को भी लगता था कि मुझे हो क्या गया है. वो मुझसे पूछते थे किमैं यह अप्रिय काम क्यों कर रही हूँ लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि सबसेअधिक ज़रूरतमंदों की मदद करना सबसे अच्छा काम है.” श्वे ज़ी क्वेत का काम उन्हें सरकारी अधिकारियों के बीच बहुत अधिक लोकप्रिय बनाता हो ऐसा नहीं है. साल 2007 में आये चक्रवात के बाद श्वे ज़ी क्वेत और उनके पति को हिरासत में ले लिया गया था और उनसे सात दिन तक पूछताछ की गई थी.
इन सब मुश्किलों के बाद उनके मन में एक बार विचार आया कि क्यों ना इस काम को बंद कर दिया जाए पर जब अचानक एक दिन एक छोटी सी उमर के लड़के ने श्वे जी क्वेत के हाथ पकड़कर अपने माथे से लगाए और बोला कि ‘यदि आप ना होतीं तो मै अपनी मां का अंतिम संस्कार कभी भी नहीं कर पाता क्योंकि मेरा कोई भी रिश्तेदार नहीं है’. कुछ काम ऐसे ही होते हैं जो हमें अपने ऊपर गर्व करने पर मजबूर करते हैं. खासतौर पर तब ऐसा होता है जब कोई हमें याद दिलाता है कि जो हम कर रहे हैं वो दुनिया से अलग और बेहद खास है.
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