Menu
blogid : 2445 postid : 1313839

अब तो पीर परबत सी हो गई हैं !!

पाठक नामा -
पाठक नामा -
  • 206 Posts
  • 722 Comments

अब तो पीर परबत सी हो गई हैं !!!

नों इस लिए नहीं की हम उस नसीब वाले की तरह कम पढ़े लिखे नहीं है , हमारे पास डिग्री सुरक्षित है जो मांगने पर दिखाई जा सकती है , इस लिए हम इस चकल्लस में महिलाओं को शामिल ही नहीं करते!) और मित्रों एक जुमला है खोदा पहाड़ निकल चूहा ? लेकिन हमने देखा है कि खोदा चूहा निकला पहाड़ ? कहो कैसे वो ऐसे कि जब हुआ demonitisation हमने सोंचा की चलो सही पकड़ें हैं , अब तो गई भैंस पानी में क्योंकि थोड़े से काले धन को निकलने के लिए 87 पर्तिशत मुद्रा का विमुद्रीकरण कर दिया चूहा फिर भी हस्तगत नहीं हुआ होता भीं कैसे वो तो खरगोश जी से भी बड़ा हो गया हैं और मुहँ चिढ़ाता फिर रहा है किसी में हिम्मत है तो पकड़ो ? पकड़ें तो कैसे पकडे , जैसे किसी रामलाल के यहाँ चूहा पैदा हुआ उसने सौ चूहों के बदले किशन लाल से एक खरगोश ख़रीदा जब उसके यहाँ सौ से अधिक खरगोश पैदा हो गए तो उसने उन्हें बिशन लाल से सौ खरगोशों के बदले एक बकरा और बकरी खरीदी जब उसके यहाँ भी सौ बकरे बकरी हो गए तो उसने उन्हें चुन्नी लाल को बेच कर एक भैंस खरीदी भैस का दूध पिया भी बेचा भी और जब भैंसो की संख्या बढ़ी तोे चुन्नी लाल ने सभी भैसें तुलसी दास को बेच दी और जमींन खरीद ली फिर बैंक से पैसा लेकर उस पर गगन चुम्बी ईमारत यानि फ्लैट्स बना कर तुलसी दास से अनगिनित लोगों को बेच दिए , अब बेचारे नोट बंदी करने वाले करें तो क्या करे चूहा पैदा हुआ तो राम लाल के यहाँ , तो कही दिख ही नहीं रहा है चूहा तो बरगद का पेड़ बन गया है ? अब केतली कहते है पेपर लेस ट्रांजेक्शन करो या paytm करो चूहा न बेचो न खरीदों ? अरे भाई साहेब बदले में बदला हमारी पुराणी सभ्यता भी है और विरासत भी है ? गावँ के मेरे भाई बंधू आज भी अनाज के बदले सेवा और सेवा के बदले अनाज से लेनदेन होता है , हमे ऐसा क्यों लगा किजिस प्रकार से अंग्रेज बिदा होते समय और सत्ता छोड़ते छोड़ते हमारे भैया के सर कर्ज के आलावा, orop , gst, manrega, और demonitisation , lokpal, जैसे सरल से दिखने वालें कामों को अधूरा क्यों छोड़ा है आखिर उनको भी तो कुछ तजुर्बा होगा 130 वर्ष के तजुर्बे के साथ साथ उनका जन्म भी तो अंग्रेजो के द्वारा ही हुआ था ! इस लिए चूहा (काला धन ) पकड़ने से किसी को कोई एतराज नहीं है पकड़ो खूब पकडो पर छोटे छोटे कीड़े मकौड़ों को तो छोड़ दो ? उस बर गए चूहे से कैसे पार पाओगे जिसकी ठंडी छाँव में तुम भी पैर पसार कर सोते हो ? केतली जी काटो छांटो इस बरगद को हमे भी उसकी छाल चाहिए , पर नहीं जरा देख लेना कहीं उसकी डालों के बीच में कुछ रात के राही उलटे लटके हुए भी हो सकते है ? अब तो ये पीर परबत सी हो गई हैं!!!

एस.पी.सिंह,मेरठ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh