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एक बहुत ही प्रसिद्ध कवि या यूँ कहो कि ग्रामीण पृष्ट भूमि के कवि हुए जिनका नाम तो मालूम नहीं पर वह घाघ उपनाम से लिखा करते थे उनकी सब कहावते कृषि और सामाजिक पृष्भूमि पर ही आधारित थी ! एक स्थान पर उन्होंने लिखा है ” उत्तम खेती माध्यम बान निखद चाकरी भीख सामान ” अब जिस समय और सिचुएशन पर यह कहा गया होगा उस समय वास्तव में ही ग्रामीण क्षेत्र में ही नहीं वास्तव में पुरे भारत में सभी कुछ कृषि पर ही आधारित था। यानि की जीवन यापन के तीन ही स्तम्भ थे जिस प्रकार भारतीय संविधान तीन स्तम्भों पर आधारित है विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका लेकिन आधुनिक समय में उसमे एक स्तम्भ और जुड़ गया है पत्रकारिता ठीक उसी प्रकार से सामाजिक जीवन में भी तीन स्तम्भो के स्थान पर चार स्तम्भ हो गये हैं खेती, व्यापार, नौकरी और नेतागीरी। जहां एक ओर कृषि आधारित घाघ की जितनी भी कहावते है वह सत प्रतिशत आज भी सटीक होती है वहीं उत्तम खेती माध्यम बान। ……… वाली कहावत का अगर विशेलषण करे तो। ……। यह निष्कर्ष निकलता है।
खेती : खेती उत्तम आज भी है लेकिन अगर कोई मार्केटिंग/और मैनुफैक्चरिंग का फार्मूला लगाया जाय तो किसान घाटे में ही रहता है और यही कारण कि आज भारत में किसानो के हित की बहतु सी योजनाओं के होते हुए भी किसान के द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। जो चिंता का कारण है ? इस लिए केवल खेती और किसानी का पेशा उत्तम नहीं माना जा सकता?
वाणिज्य : जिस वाणिज्य कार्य को घाघ ने माध्यम माना था आज वह सर्वोपरि पेशा है इस लिए आज उसे मध्यम के स्थान पर उत्तम माना जा सकता है ?
चाकरी (नौकरी) : नौकरी यानि की जीवन सुख पूर्वक जीने की आजादी नौकरी की तीन श्रेणियाँ है ग्रुप ए, ग्रुप बी ग्रुप सी, चाकरी यानिकि भीख अब सरकारी कर्मचारी जितना मांग सकता हो मांगे इसलिए नौकरी सबसे उत्तम!!
नेतागीरी : जिस प्रकार से आजकल पत्रकारिता लोकतंत्र को जीवित रखने का माध्यम है उसी प्रकार राजनीती में नेताओं की बिरादरी भी जरूरी है और जिन लोगो ने राजनीती को एक पेशा माना है उनके मजे ही मजे है उनके देशी विदेशी बैंकों का बैलेंस रातदिन बढ़ता ही रहता इसलिए अगर घाघ की इस कहावत को एक नया आयाम देना हो तो इस प्रकार हो सकती है : ” अति उत्तम नेतागीरी, और उत्तम चाकरी, मध्यम बान (वाणिज्य) खेती भीख समान ? जय हिन्द जय भारत, एस पी सिंह।, मेरठ xxxxxxxx
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