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कारवां गुजर गया हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे !!

पाठक नामा -
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कारंवा गुजर गया हम ( कांग्रेसी ) खड़े खड़े गुबार देखते रहे :?
हमारे देश में अभी अभी २०१४ के आम चुनाव को सम्पन्न हुए अधिक दिन नहीं हुए है ? लेकिन ऐसा लगता है कि एक युग परिवर्तन हो गया है : जो लोग सत्ता की हनक में जमीन पर चलते नहीं बल्कि तैरते थे आज वे लोग पैदल चलते है और जो लोग पैदल चलते थे वे लोग अब आकाश में विचरते है और हवा महल में रहते है ? उनके तो पाँव भी जमीन पर नहीं ठहरते है ? क्योंकि अभी लोकतान्त्रिक चुनाव की जिस गंगा में मतपत्रों की वैतरणी पर बैठ कर जो नेतृत्व सत्ता पर विराजमान हुआ है उसमे लोकतान्त्रिक मूल्यों के स्थान पर उसके कार्यों में अधिनायक वादी असर कुछ अधिक ही परिलक्षित होता है जब वयोवृद्ध नायकों को (श्री आडवाणी एंड जोशी ) को खुड्डे लाइन लगा दिया गया हो ! हवा महल में रहने वाले अधिनायकों का शायद न तो अपना इतिहास है और न कुछ विरासत बाकी है इसलिए बड़ी चतुराई से अपने विरोधियों की विरासत का ही अपहरण कर लिया : जब भारत के नवनिर्माण और गठन के नायक रहे लौह पुरुष के नाम से विख्यात सरदार वल्लभ भाई पटेल की भव्य प्रतिमा को नर्वदा के तट पर बनाने का ऐलान करके पटेल की विरासत को कांग्रेसियों से छीन लिया ? नेपाल, भूटान, जापान और अमेरिका की यात्रा और चीनी प्रेजिडेंट की भारत यात्रा के आपेक्षित परिणाम नहीं निकलने के कारण पहला तो चीन द्वारा १०० बिलियन डॉलर के स्थान पर केवल २० बिलियन डॉलर का निवेश की हामी भरना वह भी अगले पांच वर्ष के समय में जबकि हमारा चीन के साथ पिछले एक दसक का व्यापार घाटा ही ४० बिलियन डॉलर का है यह कौन सा अर्थ शास्त्र है समझ से बाहर ? सत्ता सँभालने के चार माह बाद भी महंगाई काबू में नहीं आने के कारण और चीन तथा पाकिस्तान के द्वारा रोज रोज सीमा का अतिक्रमण एवं गोली बरी की घटनाओं से परेशान,अभी २ अक्टूबर गाँधी जयंती को स्वछता दिवस के रूप में मनाने का अभियान छेड़ कर अब कांग्रेसियों की एक मात्र विरासत गांधी पर ही डाका डाल दिया है ? कांग्रेसी हतप्रभ है करे तो क्या करे ? क्योंकि कांग्रेसी तो अब तक यह मान बैठे थे कि गाँधी उनकी एकमात्र विरासत है और गांधी की हत्या के जिन पर आरोप लगे हो वह लोग गांधी को अपना आदर्श कैसे मान सकते है ? यह सत्य है की आर एस एस के अनुषांगिक संघठन हिन्दू महा सभा के सदस्यों नाथू राम गोडसे और अन्य ने मिल कर ३० जनवरी १९४८ को दिल्ली में दिन दहाड़े गांधी की ह्त्या को अंजाम दिया था जिस कारण से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी प्रतिबंधित कर दिया गया था तथा ह्त्या के आरोप में नाथू राम गोडसे और आप्टे को फांसी दी गई थी सम्भवत स्वतंत्र भारत में यह फांसी पहली फांसी हो। अब यह भारत में ही संभव है की जीवन भर गांधी और गांधी के विचारों का विरोध करने वाले और ३० जनवरी १९४८ को उनकी हत्या में आरोपी संघठन अब २ अक्टूबर २०१४ यानिकि ६६ वर्षो और ८ माह के बाद अगर प्रयाश्चित के रूप में गांधी को महिमा मंडित कर रहा है तो इसमें बुराई क्या है। और अगर यह सब प्रयाश्चित स्वरूप किया जा रहा है तो इसमें कांग्रेसियों के द्वारा विरोध करना उचित नहीं कहा जा सकता ? लेकिन हम एक स्वतन्त्र नागरिक होने के नाते राजनीती से अलग हट कर जरूर यह सवाल उठा सकते है की जब भारतीय जनता पार्टी के पास भले कोई दिवंगत विरासत नहीं है लेकिन अपने नेताओं की एक विशाल फ़ौज है जो अभी जीवित है जैसे श्री अटल बिहारी, श्री आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी तो फिर उधार के आदर्श की क्या जरूरत आन पड़ी क्या यह भी चुनाव प्रचार और चुनाव जितने का हथकंडा है। क्या यह राजनीती का आधुनिक स्वरुप है जो उसी देहाती प्रचलित कहावत की तरह है (महिलाओं से क्षमा सहित) “त्रिया चरित्र जाने न कोय खसम मरे सती होया। ” वैसे इस पोस्ट को लिखते समय विभिन्न टी वी चैनलों पर सफाई अभियान के विषय में जो दिखाया जा रहा है उससे यह साफ़ झलकता है की अभी मोदी की अपील का कोई असर जनता पर नहीं हुआ है। एस पी सिंह – मेरठ

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