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क्या देश की प्रगति में कांग्रेस बाधक है ?

पाठक नामा -
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संसद में (दोनोंसदनों में ) मानसून सत्र में जो कुछ भी हुआ हम उससे संतुष्ठ नहीं है क्योंकि न तो विपक्ष अपनी मांग से पीछे हठ रहा था और न ही सत्तापक्ष विपक्ष की किसी बात को मानने को तैयार था ! कोई भी पक्ष अपने इरादों से एक कदम भी पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा था ,हमारी यह धारणा सिमित दायरे में दिखाई जाने वाली संसद की कार्यवाही अथवा अखबारों में छपे हुए समाचारों की सूचनाओं के आधार पर ही है !हमें तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी गाँव के दो नामी पहलवान एक दुसरे के सामने खड़े हो कर एक दूसरे को चैलेंग कर रहे हो ! कमजोर 44 किलो वजन का पहलवान बिना लड़े हार मानने को तैयार नहीं उधर 280 किलो का पहलवान ताकत के बल पर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं ?

आरोप प्रत्यारोप के दौर दोनों पक्ष केवल अपनी अपनी घमंडी तस्वीर ही प्रस्तुत कर रहे थे ? सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या एक मंत्री , मंत्री पद पर स्थापित होने के समय जो सपथ लेता है उसका कोई संवैधानिक या कानूनी या नैतिक औचित्य है और मंत्री उसी सपथ के। अनुसार अपना कार्य करता हैै तो कांग्रेस को संसद में। बाधा डालने का कोई अधिकार नहीं है और कांग्रेस के सभी सदस्यों की सदस्यता संमाप्त कर देनी चाहिए जिसका अधिकार संसद और सत्तारूढ़ दाल के पास है ? अगर कोई मंत्री मंत्री पद की सपथके अनुसार कार्य नहीं करता तो उसको एक क्षण भी मंत्री बने रहने का अधिकार नहीं है । बल्कि अगर कोई ऐसा मंत्री स्वयं पद नहीं त्यागता तो उसे धक्के मार कर बहार निकाल देना चाहिए ? क्योंकि इसके लिए कोई कानून तो है नहीं ! लोकतंत्र में बहुत से कार्य धारणा से चलते है इसलिए जब किसी मंत्री पर अनैतिक कार्य करने का आरोप लगता है और प्रमाणित हो जाता है तो उसे तत्काल ही पद त्यागना चाहिए ! यही लोकतंत्र का गहना है क्योंकि इस लिए अपने पापो को नकारने के लिए अंग्रेजो के बने कानूनों का सहारा लेना अनुचित ही नहीं घोर अपराध है क्योंकि अंग्रेजों के क़ानून राजशाही को सुरक्षित रखने के सभी उपायों को समेटे हुए हैं! इस लिए जब एक मंत्री स्वयं ही संसद में यह ब्यान देता है की उसने एक भारतीय कानूनों से बच कर भागे हुए व्यक्ति लिए विदेशी सरकार को सन्देश दिया की अगर आप अपने कानूनों के अंतर्गत उसको यात्रा पत्र देते हो तो हमारे संबंधो पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होग ? हमारी माननीय मंत्री को इतनी जानकारी तो अवश्य ही होगी की सभी स्वतंत्र देश अपने यहाँ प्रचलित कानूनों के सहारे ही अपने अपने देश का शासन चालते है ?

परंतु वर्तमान सरकार की विदेश मंत्री पर जब यह आरोप लगता है कि उन्होंने एक अपराधी की सहायता की तो जवाब तो हास्यस्पद ही नहीं बच्चों जैसा था कि मैंने केवल मानवीय आधार पर ही सन्देश दिया था अगर ऐसा करना गलत है तो मैं अपराधी हूँ और संसद जो सजा दे मैं तैयार हूँ? अगर माननीय मंत्री को अपनी आत्मा की आवाज ही नहीं सुनाई देती तो संदद ही क्या कर लेगी ?

लेकिन यह उससे भी अधिक। हादयास्पद है कि जब विपक्ष मंत्रियों का त्यागपत्र मांग रहा है तो सरकार कहती है पहले संसद में बैठ कस्र बहस कर लो ! जसबकि संसद में पहले दिनप्रवेश करने पर प्रधान मंत्री संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा था और संसद की सीढ़ियों पर अपना माथा रगड़ा था ! लेकिन संसद के पुरे सत्र में विपक्ष मांग करता रहा की प्रधान मंत्री सदन में आये और अपनी पार्टी के मंत्रियों पर लगे आरोप की सफाई दे ! लेकिन प्रधानमन्त्री टस से मस नहीं हुए !और संसद को लकतंत्र का मंदिर बताना भी एक ढोंग ही डेबिट हुआ !

चूँकि सरकार और पार्टी कांग्रेस को प्रगति और विकास विरोधी बता कर पुरे देश में प्रचार करना चाहती ? इसलिए हमारा कहना की भारतीय जनता पार्टी अपने शैशव काल से ही केवल प्रचार के बाल पर ही अपना प्रसार करके आज देश में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफसल हुई है इसलिए हमारा कहना है की आपकी प्रचार की भूख छूटेगी तो नहीं फिर भी एक बार चिंतन करे की भारत जैसे विशाल देश में बहुत कुछ करने को है एक प्रचार के अतिरिक्त ?

वैसे भी कांग्रेस को विकास विरोधी कहने भर से कांग्रेस बदनाम होने से रही क्योंकि देश की जनता जानती है की देश में जो भी उपलब्धि आज उनके सामने है वह उसी कांग्रेस की देंन है ? इसलिए विपक्ष को विकास विरोधी कहना बंद करो ? इतना और समझ लो की या तो विकास विरोधी विपक्ष को संसद से बहार का रास्ता दिखाओ या फिर देश हित में उसका साथ लो वह भी सम्मान पूर्वक अपने कार्यक्रमों को आगे बढ़ाये ? अन्यथा 3 वर्ष और 9 माह बाद क्या होगा कौन जनता है? हमें तो ऐसा लगता है की जैसे एक सूंदर से खेत में एक सांड (बैल)चर रहा था एक दूसरा कमजोर सा सांड भी कभीकभी इधर उधर मुंह मार देता था । परंतु जब कमजोर सा सांड कुछ् ताकतवर हुआ तो खेत के अंदर घुस ही गया अब स्थिति यह है की पुराना सांड खेत छोड़ने को तैयार नहीं और नया उसे खेत के अंदर सहन करने को तैयार हि नहि ? अब सबसे बड़ा सवालयः है की भाई एक दूसरे के साथ मिल कर खेत को चरते रहो उसे उजाड़ो या नष्ट मत करो ?

आज का बच्चा जब इतिहास पढ़ता है तो उसे यह ज्ञान होता है की जिस आजादी पाने में अनेकों भारतियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी उसमे वर्तमान पार्टी की सबकुछ यानि पितृ संघठन का कोई योग दान नहीं था उलटे एक शीर्ष नेता ने १९४२ के आंदोलन में पकड़े जाने पर अंग्रेज पुलिस अधिकारीयों को लिख कर माफ़ी नामा दिया था की उनका स्वतंत्रता आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था ? इसलिये भारतीय जनता पार्टी को किसी भी देश भक्त को देश की प्रगति में बाधक बताने से पहले अपने गरेबां में झाँक कर देखना चाहिए उसका या उसके पूर्वजो का कितना योगदान स्वतंत्रता की आहुति में दिया था ? केवल देशभक्त और शहीदों को अपने नाम से जोड़ लेने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता?

,SPSingh Meerut

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