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“जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन”

पाठक नामा -
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लोकतंत्र
लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ “लोगों का शासन”, संस्कृत लोक, “जनता” ,तंत्र ,”शासन”, ) एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है । यह शब्द लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक संदर्भ में किया जाता है, किंतु लोकतंत्र का सिद्धांत दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। सामांयतः लोकतंत्र विभिन्न सिद्धांतों के मिश्रण से बनते हैं, पर मतदान को लोकतंत्र के अधिकांश प्रकारों का चरित्रगत लक्षण माना जाता है।

लोकतंत्र के प्रकार

लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है”। लेकिन अलग-अलग देशकाल और परिस्थितियों में अलग-अलग धारणाओं के प्रयोग से इसकी अवधारणा कुछ जटिल हो गयी है। प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संदर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये हैं, पर इनमें से कई कभी क्रियान्वित नहीं हुए।

यह तो एक युनिवर्सल सत्य है कि हम भारतीय विश्व के अकेले सबसे बड़े लोकतान्त्रिक गणराज्य में निवास करते है जिसका हमें गर्व भी है परन्तु वास्तव में सत्य क्या है यह एक चिंतन का विषय हो सकता है क्योंकि इस गणराज्य को चलाने के लिए जिन राजनितिक दलों के द्वारा शासन तंत्र/सरकार को चलाया जाता क्या उन राजनितिक दलों में आन्तरिक लोकतंत्र है क्या इन सभी दलों में पदाधिकारियों का चयन लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत होता है ? शायद उत्तर नहीं में होगा — क्योंकि जब हम देखते हैं तो पते हैं कि प्रदेश में किसी भी मुख्य मंत्री का चयन चुने हुए विधायकों द्वारा न कराके पार्टी के अध्यक्ष द्वारा प्रस्तावित कर दिया जाता है और वही नेता मुख्यमंत्री बन जाता है — जिसके बाद आप सभी देखते है कि राज्य /प्रदेश में कैसा असंतोष पैदा हो जाता है — यहाँ तक कि भारत के प्रधान मंत्री को भी पार्टी-अध्यक्ष द्वारा ही मानो-नीत कर दिया जाता है पार्टी फिर चाहे कोई सी भी हो

क्या यह लोकतंत्र के नाम पर मजाक नहीं है तो और क्या है — चूँकि जब किसी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया द्वारा नेताओं का चयन नहीं होता तो उसका नतीजा सबके सामने है कि पिचले 17 दिनों से देश कि सर्वोच्च पंचायत (लोकसभा ) का कोई कार्य नहीं हो रहा है जहाँ करोडो रुपये का नुक्सान अब तक हो चुका है पर कोई भी दल मानने को तैयार नहीं है सत्ता और विपक्ष ने अपनी नाक का प्रश्न बना लिया है — यह दोनों दल इस लिए मनमानी पर अड़े हुए है कि किसी भी दल में लोकतंत्र नहीं है — क्योंकि जानता से इन दलों को केवल चुनाव के समय ही वास्ता पड़ता है और अपनी पार्टी के सदस्यों का तो इन्हें कोई डर ही नहीं होता क्योंकि सदस्य ( एम् पी या एम् एल ऐ) तो इन दलों के गुलाम ही होते है जो व्हिप से बंधे हुए होते हैं

यही बात सत्ता पक्ष के मंत्रियों के विषय में भी सटीक बैठती है कि किसी भी मंत्री कि नकेल प्रधान मंत्री के हाथ में नहीं है अगर ऐसा नहीं होता तो देश कि सबसे बड़ी दलाल राडिया का उदय भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में संभव ही नहीं होता और न ही भूमि घोटाले और 2 -जी स्पेक्ट्रम या कमान वेल्थ गेम्स का घोटाला भी नहीं हो सकता था —- दूसरी बात यह कि न्यायपालिका पर सरकार या संसद का कोई अंकुश नहीं है किसी भी अयोग्य एवं भ्रष्ठ न्यायमूर्ति को केवल महाभियोग की जटिल प्रक्रिया के द्वारा ही हटाया जा सकता है यही हमारे लोकतंत्र की मजबूरी है/*////

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अब अगर बात की जाय भारत की राजनितिक पार्टियों के आन्तरिक लोकतंत्र की तो कम ज्यादा सभी पार्टियों का एक जैसा इतिहास है : —–सबसे बड़ी बात यह है की निम्निलिखित पार्टियों में अध्यक्ष चुने नहीं जाते ऊपर से थोपे जाते हैं

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) : देश की सबसे बड़ी और पुरानी यह पार्टी अपने १२५ वर्ष के गौरवशाली इतिहास में कितनी ही बार विभाजन और टूट-फुट के बाद आज अपने जिस स्वरूप में है किसी से क्या छुपा है वर्तमान पार्टी अध्यक्ष को 1998 में कार्यकारिणी के द्वारा पुराने अध्यक्ष को जबरन हटा कर बनाया गया था जबसे अब तक केवल ओपचारिकता के नाते पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होता है जहाँ कोई दूसरा मुकाबले में नहीं होता यह ओपचारिकता केवल चुनाव आयोग के डर के कारण ही निभानी पड़ती है ? इसको लोकतंत्र कहते हैं क्या ?

भारतीय जानता पार्टी : देश की दूसरी बड़ी पार्टी जो की 1951 भारतीय जन संघ के रूप में अस्तित्व में आई और आपात काल के बाद बनी और समाप्त हुई जानता पार्टी के बाद (1977 -1980 ) के बाद वर्तमान रूप में जन्म हुआ जिसके अध्यक्ष पद जहाँ बहुत ही प्रतिभाशाली और उच्च कोटि के व्यक्तियों के हाथों में रहा वहीँ एक अध्यक्ष को कैमरा के सामने रिश्वत लेने पर अपने पद को छोड़ना पड़ा था — परन्तु जहाँ तक अध्यक्ष पद के चुनाव की बात है अध्यक्ष पहले बनाया जाता है बाद में चुनाव की ओपचारिकता ;पूरी की जाती है चाहे वह श्री अटल बिहारी बाजपाई जी हो या श्री लालकृषण अडवानी जी हो या फिर राजनाथ सिंह जी हो या वर्तमान श्री गडकरी जी हों —- जिस प्रकार से श्री अडवानी को जिन्ना प्रकरण के बाद हटा कर श्री राजनाथ को अध्यक्ष बनाया गया था उसी प्रकार से श्री गडकरी को पहले अध्यक्ष बनाया गया उसके बाद चुनाव की प्रक्रिया पूरी की गई क्या यह लोकतान्त्रिक तारीका है ?

भारत की कमुनिस्ट पार्टियाँ : { CPI (M) } {CPI (I) } चूँकि की कमुनिस्ट पार्टिया केडर बेस पार्टियाँ है इस लिए इनमे पोलित ब्यूरो के द्वारा चेयर मैं एवं महा-सचिव का चुनाव होता है इस लिए कहीं तक हम कह सकते हैं की इनमे कुछ लोंक्तान्त्रिक प्रक्रिया द्वारा चुनाव होता है

तेलगु-देशम पार्टी : आंध्र में एन टी रामाराव को उनके ही दामाद चन्द्र बाबु नायडू द्वारा पद-च्युत करके सत्ता हथियाने के बाद जब से पार्टी बनी है तभी से चन्द्र बाबू नायडू ही इसके अध्यक्ष बने हुए है ?

उत्तर प्रदेश — यहाँ दो ही प्रमुख क्षेत्रिय पार्टिया है – समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी : समाजवादी पार्टी जबसे बनी है श्री मुलायम सिंह ही इसके अध्यक्ष है उसी प्रकार से बहु जन समाज पार्टी से स्व. श्री काशीं राम के बाद केवल कुमारी मायावती ही इसकी अध्यक्ष के पद पर है तीसरी पार्टी है राष्ट्रीय लोक दल जिसके अध्यक्ष है श्री अजीत सिंह पार्टी केवल पिता पुत्र पर ही आधारित है ?

तमिल नाडू : अब अगर दक्षिण के इस राज्य की बात करे तो हम पाएंगे की दो ही प्रमुख पार्टिया है DMK और AIDMK क्रमश डाक्टर करुणा निधि व् कुमारी जे जाय ललिता ही बहुत दिनों से इसके अध्यक्ष बने हुए है ?

पंजाब : पंजाब में तो सभी दल अकाली है केवल अध्यक्ष के नाम से जाने जाते है शक्ति-शाली केवल अकाली दल (बदाल) के नाम से ही जाना जाता है जिसका अध्यक्ष पद बाप और बेटों में बंट कर रह गया है ?

बिहार : बिहार के विषय में तो कहना ही क्या कभी 70 के दसक में बिहार विचार क्रांति का स्रोत हुआ करता था जब बाबू जाय प्रकाश नारायण ने आपात काल के बाद सत्ता परिवर्तन में एक महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाई थी परन्तु उनके शागिर्दों ने बिहार में जो किया वह किसी से छुपा नहीं है – जानता दल जिसके अध्यक्ष विश्व ख्याति प्राप्त श्री लालू प्रसाद यादव जी है जिनके परिवार के द्वारा कैसा शासन किया गया सबको विदित है ? लोक जन शक्ति पार्टी जिसके अध्यक्ष श्री राम बिलास पासवान है पार्टी का क्या हाल है सब को पता है एवं जानता दल (यु ) जिसके अध्यक्ष शरद यादव जी है — जो हमेशा अध्यक्ष ही रहना चाहते हैं —

महाराष्ट्र : वैसे तो यहाँ क्षेत्रिय पार्टी के रूप में शिव सेना एवं राष्ट्र वादी कांग्रेस का जोर है पर जिस प्रकार से शिव सेना पर पिता पुत्र और भतीजे का कंट्रोल है उसी प्रकार राष्ट्र वादी कांग्रेस पर उसके जन्म से ही अकेले श्री शरद पवार जी का अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा है

ओड़िसा : यहाँ अकेले ही बीजू जानता दल के अध्यक्ष श्री नवीन पटनायक का अधिकार बना हुआ है इसको कोई चुनौती नहीं दे सकता ?

अब अगर बात करे 1977 में सभी दलों को मिला कर जो एक मात्र जानता पार्टी का गठन हुआ था उसका क्या हुआ तो उसके अध्यक्ष से लेकर सभी पदों पर एकमेव व्यक्ति है डाक्टर सुब्रमण्यम स्वामी जो आज भी जन हित याचिकाओं के द्वारा तहलका मचाते रहते है

वैसे तो सैकड़ों की संख्या क्षेत्रिय पार्टिया अस्तित्व में है पर उनका महत्त्व केवल वोट-कटवा पार्टी से अधिक नहीं है

इन सभी तथ्यों से इतना तो अवश्य ही पता चलता है की चाहे वह राष्ट्रीय पार्टियाँ हो या प्रादेशिक स्तर की क्षेत्रिय पार्टियाँ हो किसी में भी लोकतंत्र का चलन नहीं है या तो अध्यक्ष स्वयं ही पद पर आशीन हो जाते हैं या ऊपर से थोप दिए जातें हैं लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के द्वारा जानता (मेंबर ) के द्वारा चुनाव किसी भी पार्टी में नहीं होता है —क्या यह लोकतंत्र की अवधारणा “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन” का निरादर/अपमान नहीं है — इसलिए जब राष्ट्र पर शासन करने वाली पार्टियों में ही लोकतंत्र नहीं है तो देश को कहाँ से लोकतान्त्रिक सरकार देंगे यह एक विचार और मंथन का विषय हो सकता है ?
—एस.पी.सिंह,मेरठ

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