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पब्लिक स्कूलों की चकाचौंध

पाठक नामा -
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शानदार बिल्डिंग , बढ़िया पोशाक और लोकल टी.वी. द्वारा शहर भर में प्रसारण। जी हाँ, पब्लिक स्कूलों की चकाचौंध की हर ओर चर्चा है ।
जिस तरह एक दाना चावल उठा कर पूरी हांडी का हाल पता कर लिया जाता है, उसी तरह यह छोटी सी घटना 21वीं शताब्दी में शिक्षा के क्षेत्र में आए क्रांतिकारी परिवर्तन की झलक देती है। वह परिवर्तन, जिसमें स्कूल ‘ब्रांड’ बन चुके हैं और एनुअल फंक्शन ‘ब्रांड इवेंट’। ब्रांड मैनेजमेंट की इस कवायद में प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों के एनुअल फंक्शन भव्य से भव्यतम होते जा रहे हैं। इनमें शानदार बैकग्राउंड्स/सेट्स, चमकदार पोशाकों, महीनों की मेहनत से तैयार प्रस्तुतियों, कंप्यूटर/वीडियो प्रजेंटेशन्स, सेलेब्रिटी गेस्ट्स से लेकर लोकल केबल टी.वी. नेटवर्क पर व्यापक कवरेज की आश्वस्ति तक शामिल होती है।
इसी के साथ एक भयावह पहलू और है जिस ओर अभिभावक या माता पिता ध्यान नहीं देते या मजबूरी के चलते उन्हें ऐसा करने को विवश होना पड़ता है —- व्यवसायिक प्रतिबद्धता या नौकरी की मजबूरी आदि को होते हुए सभी वर्ग के लोग अपने बच्चों को किसी वाहन के द्वारा (रिक्शा, टेम्पू , मिनी बस , या बसों) स्कूल भेज कर वह निशचित हो जाते है की चलो बच्चे स्कूल चले गये , वह यह नहीं जानते के छोटे – छोटे बच्चों. का शोषण किस प्रकार से होता है ( एक पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार ) स्कूल और घर के बीच में भारत में हर दूसरा बच्चा किसी न किसी बदसलूकी का शिकार होता है | इस सम्बंध में एक निजी संगठन ने १८०० बच्चों से बातचीत के आधार पर निष्कर्ष निकाला की आधे से अधिक बच्चों ने अपने आप को यौन शोषण का शिकार बताया \ सभी छोटे-बढ़े शहरो. एवं कस्बो में हुए सर्वे के अनुसार २५ प्रतिशत बच्चे शारीरिक यौन शोषण का शिकार हुए जबकि अज्ञात भय के कारण अपने साथ हुए किसी भी शोषण को बच्चे अपने अभिभावकों नहीं बताते |
यह तो हुई सर्वे और रिपोर्टो की बात मैं जो अब बताने जा रहा हूँ वह मेरे रोज़ के अनुभव की बात है – मेरी भी पोती एक इंग्लिश मीडियम के स्कूल में अपर के० जी० में पढ़ती है और पिछले ढाई वर्षों से मैं ही उसे लाने ले जाने का कार्य कर रहा हूँ — सबसे पहले तो यह की छोटी क्लास के जो बच्चे रिक्शा, टेम्पो , मिनी बस या बस से स्कूल जाते है उन्हें एक से दो घंटे पहले ही घर से निकलना होता है तथा एक से दो घंटे बाद में घर पहुँचते हैं कारण यह की प्रात: में बड़े बच्चों का समय पहले होता तथा छोटी क्लास का समय बाद में जैसे कक्षा १-५ तक ७.३० अपर के.जी ७.४० लोवर क.जी. ७.५० तथा नर्सरी ८ बजे इसी प्रकार से छुट्टी का समय है १२ बजे नर्सरी , १२.३० पर लोवर के.जी तथा १२.४५ पर अपर के.जी इसके बाद में १२.५० पर १-५ तक के बच्चे छुट्टी पते है अब आप ही देखिये की ८ बजे स्कूल का समय होने पर भी वह बच्चा ७.३० पर स्कूल पहुँच जाता है तथा १२ बजे छुट्टी होने पर भी वह बच्चा १२.५० तक वाहन चलने का इन्तजार करता —- आप जानते ही है की सबसे छोटे बच्चे जब घर में होते हैं क्या वह एक स्थान पर खाली बैठे रह सकते है निश्चित ही नहीं तो फिर रिक्शा या टेम्पो या बस में कैसे बैठे रह सकते है —– मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा है की रिक्शा चालक या ड्राइवर किस प्रकार से इन छोटे-छोटे बच्चों को किस प्रकार से प्रताड़ित करते है और मारते हैं वहां क्रूरता की हद हो जाती है — अब यह तो सामाजिक समस्या है क्योंकि जब से संयुक्त परिवार का विघटन होना शुरू हुआ है तभी से यह समस्या आरम्भ हुई है न तो बच्चा अपने परिवार के संस्कार को जान पता है और न ही उसका पालन पोषण ही ढंग से हो पता है — माता-पिता अगर दोनों ही नौकरी करते हैं तो उनके बच्चों का तो और भी बुरा हाल हो जाता है — जैसा की जाग जाहिर है किसी भी देश के बच्चे उस देश का भविष्य होते हैं अत; उन माता पिताओं से अनुरोध है जिनके बच्चे नर्सरी से अपर के.जी तक की क्लास में पढ़ते है वह अपने बच्चों को वाहन चालकों की दया का पात्र न बनाये बल्कि अपने ऐसे कोमल वच्चों को स्कूल लाने लेजाने की व्यस्था स्वयं करे या सुरक्षित हाथों में दे. पिछले दिनों अखबार व् दूरदर्शन पर एक समाचार विस्तार से था की दिल्ली जैसे जगह में कैसे एक कैब चालक ने एक ही घर के तीन लडके लड़कियों को अपने दोस्तों के साथ मिल कर किस प्रकार से यौन शोषण का शिकार बनाया था —- इसलिए देर होने से पहले ही अभिभावकों को होशियार हो जाना चाहिए !!!!!!!!!!!

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