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पुत्रों के नाम गंगा माँ का पत्र !

पाठक नामा -
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(मेरा कोई पुत्र इस पत्र को मेरे मानस दत्तक पुत्र नरेंद्र दामोदर दास मोदी तक पहुंचाने की कृपा करे ! उसे बहुत आशीर्वाद )

मेरे सवा करोड़ पुत्रो, सब को मेरा प्यार भरा आशीर्वाद ,
आज मैं एक याचक के रूप में अपने सवा करोड़ पुत्रों (हिन्दू , मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन, जैन , बौद्ध, दलित, पिछड़ा, अगड़ा ) से यह याचना करती हूँ, मैं हजारों वर्षों से अपने पुत्र, पुत्रियों को अपने आँचल में समेट कर सभी का पालन पोषण और जीवन को सरल और सफल बनाने में अविरल गति से प्रवाहित होकर सब के कल्याण का जो वृत्त लिया हुआ है उसको खंडित करने का पाप मुझसे न कराओ? क्योंकि भगीरथ ने जो तप किया था उसी के फलस्वरूप देवताओं के आशीर्वाद से मुझे इस धरती पर आने का अवसर मिला और अगर भगवान शिव शंकर ने अपने शीश पर मेरे प्रवाह को सिमित न किया होता तो न जाने क्या होता ? मैंने भगीरथ के 60 हजार हजारों पुत्रो पुत्रियों परिजन को मुक्ति देने के साथ अपने कार्य को आरम्भ किया था तब से लेकर आज तक मैं सभी के कल्याण के लिए अविरल धरा के रूप में बह रही हुँ।

मुझे दुःख होता है जब मेरे मानस पुत्र पुत्रियां मेरे ही उदर में अपना अपशिष्ट भर देते हैं। क्योंकि चाहकर भी मैं अपने पुत्रो और पुत्रियों का कोई अहित नहीं कर सकती इसलिए मेरी इतनी सी ही प्रार्थना है की मेरे उदर में अपना अपशिष्ट न भरे क्योंकि आप जो कुछ भी मुझे दोगे वह सब मैं आपको ही लौटा दूंगी और मेरे अंदर समाये उसअमृत रूपी पानी को जो तुम्हारे द्वारा दिए गए अपशिष्ट से जहर बन जाता है उस पानी से सींची गई फसल कैसी होगी और जब उस पानी का उपयोग मेरी भावी संतान करेगी तो क्या होगा ? कोई उसका अनुमान लगा सकता है? मेरी पहली संतान वेदव्रत था जो अपनी दृढ प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाया था ! लेकिन इस कलयुग में मेरा एक दत्तक पुत्र है जो स्वयं ही मेरा पुत्र बन बैठा न तो मैंने उसे बुलाया था न निमंत्रण भेजा था लेकिन एक दिन अचानक वर्ष २०१४ में वह काशी पधारा और जनता को शाक्षी मान कर अपने आप को मेरा स्वयंभू पुत्र बन बैठा। और इसी कारण से मेरे अनेक पुत्रो ने उसे मेरा ही पुत्र मान कर उसका कशी में राजतिलक भी कर दिया। लेकिन बड़े दुःख की बात है की मेरा यह दत्तक पुत्र अगर इतना अक्षम था तो उसने मेरी दशा सुधरने की प्रतिज्ञा ही क्यों कर डाली, केवल मेरे शरीर से जमा मैल गंदगी को हटा देने मात्र से मेरा उद्धार नहीं हो सकता। सवाल तो यह है की मेरे उदर में जो अपशिष्ट जमा है उसको कौन हटाएगा।

शायद मेरा यह दत्तक पुत्र इंतना सक्षम नहीं है। तभी तो मेरी जन्म स्थली और कर्म भूमि की सबसे बड़ी पंचायत( सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ) के मुखिया ने में भरी पंचायत में मेरे पुत्र के कारिंदों को लताड़ लगते गए यह पूछा है कि तुम हमें यह मत पढ़ाओ की अब तक पांच हजार करोड़ रुपया खर्च हो चूका हमें आप यह बताओं की सफाई किस प्रकार करोगे चूँकि जिस गति से आपका कार्य चल रहा है उस गति से तो हमारे जीवन काल में सफाई नहीं हो सकती ? अब तो केवल एक ही सवाल बचता है की क्या कभी ऐसा हो पायेगा कि जो कल कारखाने और नाले अपना अपशिष्ट मेरे उदर में डालते है वह कब और कैसे बंद हो पायेगा ? क्या मेरे दत्तक पुत्र में इतनी क्षमता है की वह ऐसा कर पायेगा ! क्योंकि एक नव् युवक पुत्र राजीव ने वर्ष 1986 मेरी दशा को देख कर मेरे उद्धार की एक योजना बनाई थी लेकिन उसकी असामायिक मृत्यु के कारण जो कुछ कार्य हुआ भी था उससे सफाई के स्थान पर और गंदगी बढ़ गई है? फिर मेरे एक और पुत्र अटल ने भी थोडा कुछ प्रयत्न किया था लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई ? बात कुछ। ऐसी ही है की एक वयोवृद्ध पुत्र मन मोहन ने भी केवल इतना यत्न किया की मेरे उद्धार के लिए कुछ रुपया का प्रावधान करके सो गया कभी उस कार्य योजना की समीक्षा ही नहीं की और 10 वर्ष ऐसे ही बिता दिए ?

लेकिन मुझे कहते हुए भी लाज आती है की मेरा भी हाल कुछ कुछ वैसा ही होता जा रहा है जैसे भौतिक शारीर लिए हुए किसी बेबस नारी का आजकल भारत भर में हो रहा है वह। जहां भी अकेली दिख जाती है पापी, जल्लाद किस्म के लोग उसको पकड़ कर उसका जो भी हाल करते है मैं उसका वर्णन नहीं कर सकती ! क्योंकि मेरे साथ भी वही व्यहार प्रत्येक गाँव प्रत्येक शहर यहां तक की तीर्थ नगरियों मेरे उद्गम स्थल ऋषिकेश, हरिद्वार में भी पुरे शहर का अपशिष्ठ मेरे ही उदर में फैंका जाता । इसके अतिरिक्त पुरे देश से ही लोग अपने अपने प्रियजनों की अस्थियों को लेकरमेरे द्वार तक आते है और मुक्ति की आस में मुझ में समाहित कर देते हैं ? मैं तो स्पर्श मात्र से अपने पुत्रो को पापो से मुक्त कर देती हूँ तो फिर फिर मेरे शारीर पर ही शव दाह क्योंकर करते हैं मेरे नासमझ पुत्र ?

पर अब इस कलयुग में मैं थक बहुत गई हूँ मेरे अंदर अब इतनी शक्ति नहीं बची है कि मैं अब इस भारत भूखंड के 5 प्रदेशों (उत्तरा खंड, उत्तर प्रदेश , बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल ) का भर उठा सकूँ ! इस लिए ही मैंने अपनी बहन सरस्वती की भांति ही अदृश्य होने का संकलप ले लिया है । और चेतावनी के रूप में अपने उद्गम स्थल गोमुख से विमुख हो चुकी हूँ और अगर मेरे पुत्रो ने अभी भी मेरा मर्दन करना नहीं छोड़ा तो में विलुप्त हो जाउंगी! और उसके बाद मेरी बहन यमुना अकेली कब तक जिन्दा रह पाएगी ?

क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मेरा मानस दत्तक पुत्र सक्षम होते हुए भी अपना कीमती समय का कुछ भाग मेरे उद्धार के लिए। बचा सकेगा क्योंकि उसने पहले ही 125 करोड़ भारत वासियों के विकास का संकल्प ले रखा है ? यही नहीं भारतियों की सुरक्षा और विकास की योजना के लिए बेचारा रात दिन एक किये हुए है निरंतर विदेश यात्रायें करके झोली फैला कर भीख मांगने में भी संकोच नहीं करता किसी भी प्रकार विदेशी धन डॉलर के रूप में भारत में आ जाय !फिर भी विदेश यात्रा और पार्टी प्रचार के बाद जो भी समय बचता है उसमे से दिन में 18 से 20 घंटे निरंतर कार्य करते हुए बीतता है अब मेरे लिए समय ही कहाँ बचता है उसके पास?

आशीर्वाद सहित

तुम्हारी माँ

गँगा

SPSingh, Meerut

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