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भीड़ तंत्र की जय हो …. हिंदुत्व की जय हो…. लोकतंत्र जाय भाड़ में !!!!!

पाठक नामा -
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ऐसा कहते है की मनुष्यों में धर्म का बहुत बड़ा स्थान है हिंदुओं मे तो पूरा जीवन दर्शन ही धर्म के पालन में बीतता है ? यहाँ तक कि इस संसार में आने से पहले ही जब कोई बच्चा माँ के गर्भ में होता है तभीसे धार्मिकअनुष्ठान आरम्भ होकर मृत्यु पर्यन्त निर्बाध रूप से संपन्न कराये जाते है ? और इसी कारण से हिन्दू धर्म में हिंसा का कोई स्थान नहीं है? दूसरे धर्मो में भी अपने अपने धर्म के पालन के तरीके है ! और सभी धर्मो के अनुयायी देश दुनिया ,शहर कस्बों , गाँवो, गली मुहल्लों में साथ साथ रहकर जीवन जीवन यापन अपनेअपने धर्मो के रीती रिवाज के अनुसार करते हैं लेकिन बहुत दुःख होता है जब इस भारत भूखंड जो भगवान् बुध, भगवान् महावीर, भगवन राम, कृष्ण , गुरु नानक, महात्मा गांधी की जन्म भूमि और कर्म भूमि पर समाज के कुछ वर्ग और जाति के सिर फिरे लोग अपने अपने धर्म के बर्च्चश्व के लिए एक दूसरे के खून के प्यासे ही नहीं नरभक्षी तक बन जाते हैं ?? और धार्मिक उन्माद में मानवत के धर्म के मूल को ही भूल जाते है ।pranab_mukherjee

लेकिन इस धर्म से भी बड़ा एक धर्म और है वह है देश धर्म जो हमारे फौजी जवान निभाते है देश की रक्षा में तैनात फ़ौजी धर्म केवल देश रक्षा ही होता है और फौजी जवान रात दिन सीमाओं की रक्षा और आक्रांता से सुरक्षा में अपना सर्वत्र न्योछावर कर देता है ! इस लिए हम लोग जो देश में चैन की सांस लेते हुए सुख पूर्वक जीवन बिताते है । यह सब तभी संभव हो पाता है जब फ़ौज का। जवान सीमा पर मुस्तैद रहता है ! अब क्या इस सभ्य समाज के सभ्य स्त्री और पुरुषो का यह कर्तव्य नहीं है की जो फौजी अपनी ड्यूटी पर है उसके परिवार की रक्षा हम देशवासियों का दायित्व कैसे नहीं है अगर उनके परिवार की रक्षा करना हमारा दायित्व है तो वह हमें निभाना भी चाहिए।

लेकिन हाल की कुछ घटनाओं ने एक ऐसा विकराल रूप लेलिया है जो देश की स्वतंत्रता के बाद से ही पिछले सैकड़े वर्षो से सौहार्द पूर्वक रह रहे हिन्दू मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के दुसमन बन जाते है। लेकिन हम बात कर रहे है उत्तर प्रदेश के ताजा घटना की जो नोएडा के एक गाँव बिसहँड़ा की जहां कुछ दक्षिण पंथी पार्टी विचार धारा के लोगों ने एयर फ़ोर्स में तैनात एक फौजी के परिवार पर सुनियोजित तरीके से रात के अँधेरे में एक गाय के बच्चे को चोरी करने और उसको मार कर खा जाने के आरोप में हमला किया। यानिकि गौ हत्या के आरोप में एक पचास वर्षिय मुसलमान की हत्या करदी तथा घर मेंमैजूद सभी स्त्री पुरुषो को बुरी तरह से मारा। क्या हमारा यह आक्रोश उस फौजी के लिए लिए एक कटु और घृणित कर्म नहीं है जो जान की बाजी लगा कर हमारी रक्षा करते है।

अब जिस प्रकार से देश में सियासत चल रही है उसमे सारा जोर सत्ता प्राप्त करना और उसको अपने फायदे के लिए किस प्रकार से शासन करना है राजनितिक पार्टियों और उनकी सरकार का सारा फोकस इन्ही बातों पर रहता है। कानून और व्यस्था की स्थिति में इसी ढर्रे पर चलती है की एक्शन लेने में राजनितिक फायदा है या एक्शन नहीं लेने में फायदा है। उसका कारन भी है देश में पुरे वर्ष ही किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते है। इसलिए बेलगाम तेनाओं के जुबान कैसे बंद की जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल की आज एक सांस्कृतिक संघटन जिसकी देख रेख में आज केंद्र में सरकार चल रही है उसके अंतर्गत सैंकड़ों संघठन ऐसे हैंजो केवल हिंदुत्व की बात करते ही नहीं बल्कि हिन्दू हितों के अकेले ठेकेदार भी हैं। जब और जहां चाहे माहोल को खराब करने की ताकत रखते है।

अब यह खुलासा भी होने लगा है की लोगों को मांस न खाने की सलाह देने वाला यह संघटन अपने संचालकों और स्वयंसेवकों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता उसके लोग तो यह भी आरोप लगा रहे है की वर्त मान संचालक पदभार संभालने से पहले तक चिकन चाव से खाते थे। अपने भूतपूर्व भारत रत्न प्रधान मंत्री भी जो एक स्वयं सेवक थे सी फ़ूड चाव से खाते थे जो की एक निरामिष भोजन की श्रेणी में आता है। इस लिए कौन क्या खाए यह नितांत व्यक्तिगत प्रशन है और इसे जनता पर ही छोड़ देना श्रेयकर होगा। पार्टियों और समुदाय को इससे दूर रहना चाहिए। शायद महामहिम राष्ट्रपति जी को भी मर्माहत होकर कहना ही पड़ा की आपस में सौहार्द पूर्वक रहने में ही भलाई है। क्योकि अपराध कैसा भी हो और कोई भी करे लोकतंत्र का तकाजा है की उसको क़ानून देखेगा और कानून का पालन कराने के लिए एक पूरा और सक्षम तंत्र है। जहां अपराधी सिद्ध होने पर सजा भी मिलती है। लेकिन यह किसी भी सभ्य समाज और लोकतंत्र में किसी भी भीड़ और टुच्चे नेता का अधिकार नहीं है की वह किसी भी व्यक्ति को अपराधी ठहराए बिना सजा दे दे। इस भीड़ तंत्र का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। सरकारें भी पीड़ित के परिवार को मुआवजे का जुन्झुना थमा कर निश्चित हो जाती है और फिर आरम्भ होती मुआवजे की रकम को लेकर की पहले कितना मिला था हिन्दू को कितना मिला मुसलमान को कितना मिल रहा है। मुआवजा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता अगर फिर भी दिया जाता है तो सबके लिए एक निश्चित मापदंड और निर्धारित राशि का होना चाहिए। एस पी सिंह , मेरठ

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