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मुंशी इतवारी लाल का दर्द

पाठक नामा -
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अभी हमने सुबह की सैर से लौट कर अपने गेट के अन्दर कदम रखा ही था की बहुत जोर से एक आवाज आई–
” अरे ! ठाकुर सु…. न ……औ”
हमने पलट के देखा तो पीछे मुंशी इतवारी लाल खड़े है
हम बोले– ” आओ मुंशी जी, सुबह -सुबह कैसे आना हुआ, और ये हाथ में चप्पल क्यों हमें मारोगे क्या ?”
मुंशी जी बोले ” अरे ! यार ये बात नहीं है – चप्पल टूट गई थी तुम्हारे पीछे भागते हुए, चलो अन्दर बैठेंगे कुछ काम है ”
और मुंशी जी हमें धकियाते हुए अन्दर आ गए | और बोले– ” चलो कागज कलम उठाओ कुछ लिखवाना है ”
“अरे मुंशी तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया – “अबे लिखना पढ़ना तो तेरा खानदानी काम है ? हैं” —
हमसे क्या लिखवाएगा भाई ”
मुंशी जी बोले — ” देख भाई अब इस कम्पुटर के ज़माने में तो हम जैसे पुराने आदमी अनपढ़ जैसे ही
—–” चल जल्दी कर नहीं तो भूल जाऊंगा ”
हमने राईटिंग पेड़ और कलम उठाया और कहा –” बोल मुंशी क्या लिखना है ”
मुंशी जी बोले लिख ——-
” अरे ! जालिम रत्तन टाटा………. जब तुमने मुझे स्कूटर पर मेरे बीबी बच्चों के साथ बारिश में भीगते हुए देख कर एक सपना देखा था की मेरे जैसे लोवर मिडिल क्लास लोगों के लिए एक छोटी सी कार होनी चाहिए और उसके लिए तुमने एलान भी कर दिया की कम-से-कम एक लाख रूपये की लख टकिया कार ‘ नैनो ‘ मेरे जैसे लोंगों के लिए बनायेगे | तुम्हारे द्वारा एक नहीं तीन प्रदेशो में जमीन का अधिग्रहण किया गया – यह बात और है की साम्यवादी बंगालियों को तुम्हारी चाल कुछ जल्दी समझ में आ गई और उन्होंने तुम्हे वहाँ जमने पहले ही उखाड़ दिया | परन्तु सीधे सादे पहाड़ी लोग और सम्प्पन गुजराती तुम्हारी चाल में फंस गए और उन्होंने तुम्हे अपनी कीमती जमीन दे दी | परन्तु तुम्हे न तो मेरे जैसे लोगों पर दया आई और न ही अपने आप पर शर्म आई क्यों – कार की कीमत डेढ़ से दो लाख़ रूपये के बीच रखी—- क्या केवल मुफ्त में जमीन हड़पने का नाटक ही करना था | तुमने यहीं हद नहीं की सपने तो हिन्दुस्तानियों को दिखाते हो और सहायता अंग्रेजो की करते हो | ‘ हार्वर्ड स्कूल आफ बिजनैस मनेजमेंट ‘ को ढाई अरब रूपये की आर्थिक सहायता केवल इस लिए दी की तुमने १९७५ में वहाँ पढाई की थी| वाह! खूब गुरु दक्षिणा अदा की – भारत के लिए भी तुम्हारा कोई फर्ज बनता है इसे भी याद रखना ? क्या तुम्हे भारत में एक भी स्कूल कालेज ऐसा नहीं दिखाई दिया जिसको आर्थिक सहायता की जरूरत हो ?”
इतना लिखने के बाद हम बोले —

“मुंशी जी बस या कुछ और ”
“लिखो “—— मुंशी जी बोले
“वैसे तो गुजरात प्रदेश भारत में सबसे संपन्न राज्य है परन्तु एक विशेष राजनितिक पार्टी ( पार्टी विद द डिफरन्स) की सरकार होने के नाते वहाँ विभिन्न प्रयोग होते रहते है एक तजा प्रयोग महानगर पालिकाओं के चुनाव में किया गया चौतिसं करोड़ रूपये खर्च करके केवल १८२ लोगो को इ- वोटिंग प्रयोग किया जिसका खर्च एक व्यक्ति के लिए करीब बीस लाख रुपये हुआ – पत्रकारों द्वारा पूछने पर राजकीय निर्वाचन सचिव से कहा इ-वोटिंग के प्रयोग के लिए खर्च किये गए ३४ करोड़ रूपये कोई महत्त्व नहीं रखते सवाल आगे के कार्यक्रम का है अगर यह सफल रहा तो पूरे प्रदेश को फायदा होगा | जबकि दूसरी ओर इस पार्टी के एक उपाध्यक्ष ने अभी हाल में ही संपन्न लोकसभा के चुनाव में इ वी एम् की विस्वश्नियता को ही नकार दिया था ”
थोडा रुक कार मुंशी जी फिर बोले :——–
“ठीक ही है गुजरात को पार्टी एक प्रयोग शाला जो समझती है ”
लिखने के बाद हम बोले —–“लो मुंशी जी पता बोलो कहाँ भेजना है ”
इतना सुनते ही मुंशी जी तो भड़क गये और बोले ——–” य ….आ….र …..कै……से …..मित्र हो. इतनी जल्दी थक गए — अभी तो बहुत बाकी है लिखो “—–
“हमने कहा बोलो” —

” .क्या तुम टी० वी० चैनल देखते हो ” मुंशी जी बोले
हमने कहा ” हाँ देखते हैं ”
फिर तो मुंशी जी धारा प्रवाह जो बोले हम देखते ही रह गए, आप भी पढ़िए –
” अरे ! ये टी वी क्या, टी बी जैसी बीमारी हो गई है हमारे देश में न जाने कितने प्रकार के चैनलों को मान्यता दे रक्खी है सरकार ने ? क्या इन टी. वी. चैनल वालो का कोई ईमान धर्म है या नहीं है, अभी जब जब पूरे देश में सामान्य से अधिक बारिश हुई और चारो ओर पानी से खेत खलियान भर गए तो तो टी.वी. चैनल जैसे बौरिया गए इनको पानी के अतिरिक्त कुछ दिखता ही नहीं था | अरे ! हद्द तो तब हो है जब हरियाणा की ओर से यमुना के बांध से अतिरिक्त पानी छोड़ा गया, परन्तु इन चैनलों ने ऐसा माहोल बनाया की जैसे दिल्ली अब बाड़ से डूब जाएगी दिल्ली में कुछ बचेगा ही नहीं? इन्होने ऐसा भयानक दृश्य पेश किया जो किसी हार्रार फिल्म में भी नहीं होता ?”
हम बोले —“मुंशी जी बस”
“यार आज हमें दिल भर के बोल लेने दो बीच में मत टोको “‘—- मुंशी गुस्से में भी हँस कार बोले ”
” देखो इन्होने ने कितना विदेशी मुद्रा का नुकसान किया है ? यह लोग राष्ट्र-मंडल खेलों में हो रहें भ्रष्ट्राचार को उजागर करने के फेर में नित नए ड्रामे करते नजर आये बिलकुल ऐसा व्यहार कार रहें थे जैसे कोई ब्लेकमेलर करता है जबकि प्रधान मंत्री जी ने स्वयं कहा था कि खेल समाप्त हो जाने दीजिये भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध पूरी जाँच कराइ जाएगी \ पर यह कहाँ मानाने वाले थे –कहीं खेल गावं की तैयारी को ऐसा दिखाया की अभी कुछ काम हुआ ही नहीं है — कभी किसी गड्ढे के पानी में मच्छर के लार्वा दिखा दिए , कभी कुत्तों को घुमाता हुआ दिखा दिया- किसी पुल को टूटता हुआ – कहीं पान के पीक को दिखाया – सड़कें टूटी हुई — यहाँ तक की उन विशाल स्टेडियमों को भी अधुरा ही बताया जहाँ खेल होने थे – जब यह सब कुछ दिखा रहें थे तो इसे खेल में शामिल होने वाले खिलाडी और उनके देश के अधिकारी भी सब देख रहें थे इसी कारण से बहुत से देश और कुछ देशों के नामी खिलाडियों ने दिल्ली में आने से इनकार कार दिया \ पर्यटक तो आये ही नहीं जिससे देश को कितना नुक्सान हुआ है क्या यह छिछोरे लोग अनुमान लगा कर बता सकते है या केवल लोकतंत्र के चौथे खम्बे की आजादी के नाम पर यही सब कुछ करते रहेंगे | जिस प्रकार से पूर्ण शांति, सुरक्षा पूर्वक सफलता के साथ भव्य रूप में खेल संपन्न हुए तथा विदेशी मेहमानों ने और विदेशी मीडिया ने जिस प्रकार विश्वस्तरीय श्रेष्ट्र व्यस्था का गुणगान किया है क्या इन लोंगो के लिए डूब मरने जैसा नहीं है – यही नहीं जिस प्रकार संपन्न हुए खेलों की प्रशंसा मेहमान और देश के खिलाडी कर रहें हैं वह सफलता की कहानी अपने आप बयाँ हो रही है — रही बात भ्रष्ट्राचार की तो इस देश में कानून का राज है और कानून अपना काम ठीक से कर रहा है और उसका रिजल्ट जानता को दिख रहा है | अगर इन मीडिया वालों का बस चले तो यह टी.वी. पर ही दो चार रिटायर्ड जजों और वकीलों को अपने प्रोग्राम में बुला कर मीडिया ट्रायल करके लोंगों को सजा भी सुना सकते हैं ”
हम बोले –“मुंशी जी आगे बोलो”
“बेटा हमें बुद्धू समझते हो, चलो इसको पहले अपने कम्पूटर पर चिपकाओ, हम तो अपने दिल की भड़ास निकाल चुके अब चाहे इसको कोई पढ़े या ना पढ़े” —— ” अब अगले हफ्ते मिलेंगे ” ऐसा कह कर मुंशी जी ने चाय का कप खाली किया और उठ कर चाल दिए \\\\\\\\\\\\\\\\\\

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