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मुंशी इतवारी लाल महंगाई के आईने में !

पाठक नामा -
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अहा आप तो जानते ही हैं कि हमारे मित्र मुंशी जी यानि मुंशी इतवारी लाल ! अपने नाम के अनुरूप हमेशा ही इतवार को ही हमसे मिलने आते है और यह सिलसिला यूँही नौकरी के समय से ही चला आ रहा है । जो अब भी जारी है जारी क्या है घिसट रहा है क्योंकि बेचारे पैदल ही घसीट रहे है स्कूटर कभी खरीद नहीं पाये साइकल चलाते थे जो अब उनके बस की भी नहीं है और घर के लोग चलाने भी नहीं देते! । लेकिंन गजब के मौजी है 80 पार गए है पर हमारे घर का रास्ता तो पैदल ही नाप देते है ! जैसे ही उन्होंने घंटी बजाई हमने भी लपक के दरवाजा खोला और बोले

“आओ मुंशी जी प्रणाम! कैसे हो , सब कुशल मंगल ,”
मुंशी जी बोले :” जय श्री राम, रामराम , जय श्री कृष्ण , हाँ भाई कुशल तो है पर मंगल नहीं है दंगल है , सब्जियां तो है पर प्याज नहीं है, आटा तो है पर दाल नहीं है! ”

हमने कहा “यार मुंशी, अब तुम्हे इन बातो से क्या लेना देना, रिटायर्ड हो मौज करो ।बच्चे हैं न सब करने के लिए । क्या आटा दाल का रोग अभी तक तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रहा है ? आओ नास्ता कर लो, गुस्से को थूक दो, इस बुढ़ापे में गुस्सा ठीक नहीं होता ? ”

तभी बच्चा नास्ता ले आया । नास्ते में आलू प्याज के पकोड़े, सैंड विच, और चाय आई! नास्ते में प्याज के पकौड़े देख कर मुंशी जी बहुत खुस हुए , और खाने से पहले ही बोले :

“अबे ठाकुर , ये तो बता की तेरे पास प्याज आई कहाँ से , क्या कहीं से चोरी का माल मिल गया है , या अभी तक गिफ्ट। मिल रही है ? ”

हमने कहा : ” अबे मुंशी, तुम्हे आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं ? वह सब तो बता दूंगा, पहले कुछ् खा तो लो गरमागरम प्याज के पकौडे ”

“चलो तुम कहते हो तो पहले खा ही लेते है । वैसे हमे तो प्याज तड़का लगाने के लिए भी 80 रूपये किलो में खरीदनी पड़ती है ! चलो और बनवाओ आज तो पेट भर के खाऊंगा ” और मुंशी जी वास्तव में ही प्याज के पकौड़ों पर टूट पड़े !

अभी पकौडे समाप्त भी नहीं हुए थे । गर्मागर्म प्याज के और पकौडे आ गए ! मुंशी जी बोले :

“यार मेरा तो मन भर गया ऐसा करो ये सब पैक करा दो तुम्हारी भाभी खा लेगी ”

हम क्या कहते हम भी यही सोंच रहे थे पर मुंशी जी ने पहले ही बोल दिया हमने भी देर नहीं लगाईं कुछ पकौड़े पैक करने के लिए पत्नी से कह कर हमने मुंशी जी से कहा ?

” यार मुंशी जी सरकार तो कह रही है कि थोक महंगाई दर शुन्य से भी निचे है, तो फिर ये खाने पीने की वस्तुओं के दाम आसमान पर क्यों पहुँच गए है ? एक प्याज तो सबसे आखिरी व्यक्ति का सुखी रोटी को किसी तरह उदार ठूसने का एक मात्र साधन होता था वह प्याज अब उस गरीब व्यक्ति की पहुँच से दूर हो गया है। माध्यम वर्ग की दाल रोटी माध्यम दाल उसकी भी थाली से गायब हो गई है कारण दाल की बढ़ती कीमतें, जो तीन चार महीने के अंतराल के बाद बाजार में दुगनी कीमतों पर बिक रही है ?”

इतना सुनते ही मुंशी जी तो उखड गए और बोले : ” स.… स… ले… ठाकुर मैंने तो पहले ही कहा था कि ये देश भक्त हाफ पेंट वाले जब सरकार में आएंगे तो ये मत समझना की देश में राम राज्य आ जाएगा या मंहगाई काम हो जायेगी। अबे ये सब भी चोट्टे है, ये व्यापारियों की सरकार इस लिए व्यापरी जी भर के लूट रहे हैं, और सरकार विदेश में मौज मना रही है. और मौज मनाये भी क्यों नहीं बिल्ली के भाग्य से छीका जो टूट गया है,” ……… “अबे ठाकुर तुम्हे पता है , एक शहर में दो सरकार जिसका नाम है दिल्ली, वहां केंद्र की सरकार ने दिल्ली की सरकार को १९.रुपये ८० पैसे में प्याज बेचीं दिल्ली सरकार ने वोही प्याज ४० रूपये में जनता को उपलब्ध कराई जिसमे सरकार द्वारा १० रूपये की सब्सिडी भी शामिल है यानि की सरकार ने २० रूपये किलो की प्याज ४० रूपये में बेच कर १० रूपये का घटा उठाया। क्या ये गोरख धंधा तुम्हारी समझ में आया या नहीं आया ” ……… . ” क्या देश की जनता केवल दिल्ली में ही बसतीहै. साले हम खाएं ८० रूपये किलो की प्याज और दिल्ली वाले खाए ४० रूपये किलो ये कहाँ का इन्साफ है। ”

हम बोले : ” अबे मुंशी ये जो प्याज के पकौड़े तुम खा रहे हो ये प्याज भी दिल्ली से ही आये थे। पर ये सब्सिडी का गोरख धंधा तो हमारी समझ में कभी आया ही नही, सब्सिडी चाहे गैस की हो उर्वरक की किसानो को दी जाने वाली सब्सिडी हो या किसी भी प्रकार की सब्सिडी हो अपनी तो समझ से बाहर ही है। हमें तो यह भी समझ में नहीं आता कि ये सरकार व्यापारियों की है या व्यापारी इस सरकार को चला रहे है। यह उसी भ्रान्ति अलंकार की तरह है जिसका उल्लेख हिंदी साहित्य में किया गया ‘सारी बीच नारी है कि, नारी बीच सारी है कि नारी है की नारी ही की सारी है ‘ आया कुछ समझ में। ”

मुंशी जी बोले : ” यार समझ में कुछ कुछ आ रहा है। मेक इन इंडिया आर रहा है स्टार्ट अप आ रहा, डिजिटल इंडिया आ रहा है , वाई फाई आ रहा है। ईस्ट इंडिया कम्पनी के भाई भतीजे आ रहे है। ऍफ़ डी आई आ रहा। जा रहा है तो विदेशी मुद्रा जा रही है जो सोना खरीदने में खर्च हो रही है ? अब ये तो तुम जानते हो कि सोना कौन खरीदता है और किसके लिए खरीदा जा रहा है ? बस आज के लिए इतना ही। लाओ मेरे प्याज के पकौड़े जल्दी लाओ, अब मैं और नहीं रुक सकता प्याज के पकौड़ों का मजा ख़राब हो जायेगा। ”

एस पी सिंह , मेरठ

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