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मुझे इंडियन होने का गर्व है और आपको ——?

पाठक नामा -
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श्रधेय श्री श्री बाबा रामदेव जी सदर प्रणाम, मैंने कल ही किसी पुरानी पुस्तक से सनातम धर्म में मनु द्वारा प्रतिपादित भारतीय जीवन पद्धिति के चार आश्रमों के विषय में पढ़ा था जो किसी भी मनुष्य के लिए इस प्रकार से है १- पच्चीस वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य जिसमे विद्या ग्रहण से लेकर कारीगरी कुशलता तक का कार्य , २- पच्चीस से पचास वर्ष तक गृहस्थ जिसमे परिवार का पालन पोषण आदी , ३- पचास से पिचहत्तर वर्ष की आयु तक वानप्रस्थ- जिसमे प्रभु स्मरण- चिंतन एवं His alms and charity, the way it is distributed, develops in him a heart and soul, not an organised machine. But whether little or much, he does all for the ideal which ultimately helps him to enter into the next stage of Banaprastha, or meditation. एवं ४- पिचहत्तर वर्ष की आयु के बाद संन्यास To a Sanyasi God is everything. By thus losing, he finds his real self. He becomes a great individualistic force. But this individualism of the Hindu is directly opposed to the individualism of Europe. In Europe there is conceit of individualism. This was not the Individualism of Christ. By losing Himself, Jesus became the greatest Individual. But the modern spirit of the West is the accentuation of personality. In the West people say they are free, but they are far from freedom. Their individual liberty is actuated by selfish motives. True freedom is the liberation of the soul. The Sanyasi is free because he is above all the limitations of his own personality. He has no interests of his own. His chief object is to carry his ideal, the ideal of Renunciation. This ideal the Hindu has developed through these 5000 years by the Ashrama system of life, culminating in the Sanyasi, who is one with God and one with Humanity. तो इस विषय में श्रधेय बाबा जी से यह निवेदन है की जब उन्होंने अल्प आयु में ही संन्यास को चुना था और सन्यासी होकर योग द्वारा प्रभु इच्छा से लाखों करोडो लोगों का बिमारियों से छुटकारा दिला रहे है जो की प्रभु की राह में एक अति सुन्दर कार्य है चूँकि सन्यासी केवल इश्वर और मनुष्यता के लिए ही समर्पित हो सकता है —- एक सन्यासी राग द्वेष क्रोध मोह लोभ धन पिपासा सत्ता सब से दूर चला जाता — पर आपके साथ यह सब उल्टा हो रहा है आपतो संन्यास से वानप्रस्थ और वानप्रस्थ से कहीं और भी चले जाना चाहते हो क्योंकि कल जब एक तुच्छ से व्यक्ति ने आपको ब्लडी इन्डियन कहा तो आपकी दशा भी देखने वाली थी क्रोध से आप आग बबूला हो रहे थे तथा जोर जोर से चिल्ला रहे थे भारत माता की जय भारत माता की जय — क्या आपको इंडियन कहना अच्छा नहीं लगता आपका आचरण एक सन्यासी जैसा तो कदापि नहीं था किसी सत्ता धरी जैसा ही था ? श्रधेय स्वामी जी भारत विभिन्नता में एकता का ऐसा संगम है जो दुनिया में और कही नहीं मिल सकता जनता यहाँ की बहुत भावुक है —- आप योग की खुराक के साथ राजनैतिक पाठ लोगों के गले में बिना मतलब ठूसना चाहते हो तो यह सब तो होगा ही —- अगर आपको राजनीती ही करनी है तो यह भगवा चोला उतार कर खद्दर धारण करके फिर जनता के बीच जाओ तो पता चलेगा की राजनीती में क्या क्या है —- क्या आपने कभी सोचां है की आपके भक्त जो दान आपको देते है उसमे कितना कला और कितना सफ़ेद धन है
या आपने जो अपनी ट्रस्टों के द्वारा और आयुर्वैदिक दवाओं की बिक्री से जो धन एकत्र किया है उसमे कितना टेक्स आपने आज तक सरकारी खजाने में जमा किया है — भारत वर्ष में जितनी भी चैरिटेबल ट्रस्ट है वह सब काले धन को सफ़ेद करने का माध्यम है – जिस प्रकार लोग राजनीती को व्यसाय कहते है उसी प्रकार चैरिटेबल ट्रस्ट /धर्मार्थ संस्थाए भी व्यापर का एक मुख्या स्रोत बन गए है (यह बात मैं दावे और प्रमाण के साथ इस लिए कह सकता हूँ की इस विषय पर मैंने आयकर विभाग में रहते हुए बहुत शोध किया है ) —- आपको कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह के सवाल का भी जवाब देना ही होगा ?
आपतो वैसे भी ज्ञानी है पर गाँधी जी के जीवन की एक घटना आपको बताना चाहूँगा जब गाँधी जी रेल में सफ़र कर रहे थे तो कुछ अंग्रेज भी उसमे सफ़र कर रहे थे गाँधी जी को देख कर वह लोग उन्हें गालियाँ देने लगे इस पर जब गाँधी जी ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो वह और उत्तेजित हो गए और उन्होंने ने बहुत से कागज पर कुछ भी अनाप सनाप लिख कर एक पिन द्वारा नत्थी करके दे दिया गाँधी जी ने उन सब को लेकर अपने पास रक् लिया तथा उनमें से आलपिन निकल कर अपनी डिबिया में रख ली बाकी कागज भी अपने झोले में ही रख लिए — साथियों द्वारा पूछने पर गाँधी जी कहा की भाई उन्हें जो देना था उन्होंने दे दिया पर मैंने तो उसी वास्तु को संभाल कर रख लिया जो मेंरे काम की हो सकती है आलपिन भी मेरे काम की है और कागज भी एक और से साफ है जिस पर मैं लिख सकता हूँ? और ये लोग मुझे ब्लडी इंडियन कह रहे थे तो इंडियन तो मैं हूँ ही इसमें क्या गलत है बाकी रही बात ब्लडी की तो उसे मैंने ग्रहण ही नहीं किया ?

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