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लोकतंत्र, सत्ता और सरकार ? छात्र लाचार ????

पाठक नामा -
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जिस जनतांत्रिक देश में नकली सामान , सिंथेटिक दूध , मिलावटी मशाले , मिलावटी तेल घी खाद्द सामग्री धड़ल्ले से बनता हो और बिकता हो , हद तो तब हो जाती है जब मरीज दवा खरीदने बाजार जाता है और जैनरिक दवाओं के स्थान पर उसे महंगी दवाई खरीदनी पड़ती है ? इतना ही नहीं देश भर में मेरठ, गाजियाबाद, दिल्ली, में बनी नकली दवाओं की बिक्री होती है, जबकि संविधान के अनुसार यह दायित्व केंद्र और राज्य सरकारों का है कि वह अपने नागरिकों के स्वास्थ की रक्षा करे । राज्यों के पास बहुत साधन है इन बुराइयों को रोकने के लिए वह सब दिखावे के लिए , सब अपना अपना हिस्सा लेकर चैन की बांसुरी बजाते रहते है ?

6 से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी.निजी स्कूलों को 6 से 14 साल तक के 25 प्रतिशत गरीब बच्चे मुफ्त पढ़ाने होंगे। इन बच्चों से फीस वसूलने पर दस गुना जुर्माना होगा। शर्त नहीं मानने पर मान्यता रद्द हो सकती है। मान्यता निरस्त होने पर स्कूल चलाया तो एक लाख और इसके बाद रोजाना 10 हजार जुर्माना लगाया जायेगा।विकलांग बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा के लिए उम्र बढ़ाकर 18 साल रखी गई है।बच्चों को मुफ़्त शिक्षा मुहैया कराना राज्य और केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी होगी.इस विधेयक में दस अहम लक्ष्यों को पूरा करने की बात कही गई है। इसमें मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने, शिक्षा मुहैया कराने का दायित्व राज्य सरकार पर होने, स्कूल पाठ्यक्रम देश के संविधान की दिशानिर्देशों के अनुरूप और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर केंद्रित होने और एडमिशन प्रक्रिया में लालफ़ीताशाही कम करना शामिल है।प्रवेश के समय कई स्कूल केपिटेशन फ़ीस की मांग करते हैं और बच्चों और माता-पिता को इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। एडमिशन की इस प्रक्रिया को बदलने का वादा भी इस विधेयक में किया गया है। बच्चों की स्क्रीनिंग और अभिभावकों की परीक्षा लेने पर 25 हजार का जुर्माना। दोहराने पर जुर्माना 50 हजार।

यह माना जाता है कि भारत में 14 साल के बच्चों की आबादी पूरी अमेरिकी आबादी से भी ज़्यादा है. भारत में कुल श्रम शक्ति का लगभग 3.6 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है. हमारे देश में हर दस बच्चों में से 9 काम करते हैं. ये बच्चे लगभग 85 फीसदी पारंपरिक कृषि गतिविधियों में कार्यरत हैं, जबकि 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती कार्यों में लगे हैं. स़िर्फ 0.8 फीसदी कारखानों में काम करते हैं. आमतौर पर बाल मज़दूरी अविकसित देशों में व्याप्त विविध समस्याओं का नतीजा है !

इतनी भयावह स्थिति और घोर संकट तथा विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जब कोई युवा क्षात्र जब अपने ज्ञान और क़ाबलियत के बल पर सरकारी मानदंडो की अपरिहार्य चुनौतियों को पार करके जब कोई पिछड़ा , गरीब, दलित, आदिवासी इन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा या शोध के लिए आता है तो उसको अपनी पढाई के अतिरिक्त और भी कई परीक्षाओं को पास करना पड़ता , और ऐसा भी नहीं है कि यह सब वर्तमान सरकार के समय में हो रहा है यह हमेशा से ही रहा है ? क्योंकि मैकाले की शिक्षा पद्धति से मनुवादी काले अंग्रेजो ने भी कोई गुरेज नहीं किया है जो यह समझते है कि शिक्षा पर केवल उच्च वर्ग और पैसेवालों का ही अधिकार है ! अब जो आज के ये क्षात्र और देश के कल के भावी अधिकारी, नेता , व्यापारी बनने से पहले ही अपनी अभिव्यक्ति की आजादी, भूख से आजादी, भेदभाव से आजादी, किसी पार्टी संस्था के अतिवाद से आजादी, मनुवाद से आजादी की बात करते है तो वे देशद्रोही करार दिए जाते है ?

जैसाकि चेनई, हैदराबाद और अब दिल्ली के JNU की घटनाओं से साफ़ है की सरकार अपने छात्र संघठन को बढ़ावा देने के लिए दूसरी राजनितिक पार्टियों समर्थित छात्र संघठनो के छात्रों पर दमनकारी कार्यवाही करवाती है ? और अंग्रेजो के द्वारा बनाये गए उस कानून का सहारा ले रही है जो उस समय के स्वतंत्रता सैनानियों के विरुद्ध अंग्रेज सरकार प्रयोग करती थी ।

यह बहुत अजीब सत्य है की जो सरकार 20 माह पहले केवल सबका साथ सबका विकास के नाम पर सत्ता में आई थी इस अवधि में केवल बड़े व्यापारियों और अपने संघठनो का ही विकास करती दिख रही है ? बड़े बड़े व्यापारियों द्वारा बैंक से लिया गया कर्ज न चुकाने वालों को राहत के नाम पर
1 लाख 14 हजार करोड़ रूपये NPA बैंको की दश खराब कर चूका है सरकार पूंजीपतियों का पाप धोने के लिए बैंको को पॅकेज देने जा रही है जब की उन्ही बैंको के द्वारा सताए जाने और फसल खराब होने पर किसान आत्महत्या कर रहे है ?

जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है कि सरकार कोई भी हो कांग्रेस नीत upa या बीजेपी नीत nda एक सेक्युलरिजम के राग के साथ “

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