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लोकतंत्र !!!!

पाठक नामा -
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क्या है लोकतंत्र ! मोटो मोटी भाषा में कहें तो लोकतंत्र शासन व्यवस्था का वो मापदंड जिसमे जनता अपने शासन चलाने वाले एक समूह को चुनती है और वह समूह अपने एक मुखिया को चुनता है । यहां तक तो सब ठीक है इसके लिए लिखित में एक संविधान है जसके अंतर्गत अनेकों क़ानून हैं ? एक लोक सभा है और प्रत्येक पांच वर्ष के बाद चुनाव होते हैं तथा बिना किसी हिंसा और वैमनस्य के सुगमता पूर्वक सत्ता का परिवर्तन हो जाता है ! जिस बात पर प्रत्येक भारत वासी को गर्व है की पुरे विश्व में संख्या की दृष्टि से भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है ! लेकिन वर्ष 2014 में संपन्न हुए लोकसभा के चुनाव अभूतपूर्वे कहे जायंगे जिसमे 10 साल से अधिक समय से सत्ता का बनवास झेल रही दक्षिणपंथी पार्टी ने अपने प्रधान मंत्री पद के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री के नाम की घोषणा पहले कर दी थी ? और पार्टी को देश की जनता ने भी सर आँखों पर बैठाया ही नहीं अपितु पूर्ण बहुमत से जिताया और लोकसभा की कुल 545 सीटो में से 303 सीटों पर विजय दिलाई यानि कुल मतों का 31 प्रतिशत देकर । 27 मई 2014 को श्री नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री पद की धूमधाम से सपथ ली जिसमे हमारे कई पडोसी देशो के प्रधानमंत्री और राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया था !

यह सरकार किसी पार्टी की न होकर केवल मोदी सरकार के नाम से जानी जाती है तथा पूर्ण बहुमत की ताकत होने से सरकार के काम काज और मंत्रियों के चाल चलन में अहंकार का बोलबाला है यहाँ तक कि मोदी की पार्टी के प्रवक्ताओं का अहंकार टी वी मीडिया के लाइव टेलीकास्ट में साफ साफ़ झलकता है ?

14 माह के शासनकाल का आलम यह है केवल भूमि अधिग्रहण कानून को सरकार अपनी मनमर्जी के प्रावधानों के साथ आज तक पास नहीं करा सकी है क्योंकि उसके प्रावधान किसान विरोधी अधिक थे इस कारण से अपने अहंकार के कारण सरकार ने कानून को लागू करने के लिए चार बार अध्यादेश का सहारा लिया ऐसा भी नहीं है की कोई और काम नहीं हुआ है बहुत काम हुए है ! जनधन योजना में 0 बैलेंस पर बैंक कहते खोलना ! स्वच्छ भारत अभियान । जनता बीमा योजना । स्किल डेवलपमेंट ! मेक इन इंडिया ! योग को विश्व स्तर पर मान्यता । आदि आदि कितने ही प्रोग्राम है ! लेकिन अगर कुछ कम नहीं हुआ है तो वह है भ्रष्टाचार ! महंगाई !

न तो हम विदेश निति की बसत करेंगे न रक्षा सेवाओं की बात करेंगे न ही महंगाई की बात करेंगे ! हम बात करेंगे लोकतंत्र की लोकतंत्र ईमानदारी यानि विश्वास और। परम्पराओं मान्यताओं पर आधारित होता है जिसके पालन के लिए े संसद का प्रत्येक सदस्य एक सपथ लेता है मंत्री के रूप में दो और अतिरिक्त शपथ लेनी होती ! अब अगर संसद में विपक्ष को यह लगता है की कीसी मंत्री या मुख्य मंत्री ने अपने आचरण से अपने पद का दुरपयोग किया है तो और विपक्ष उस मंत्री का त्याग पत्र मांगता है तो इसमें बुराई क्या है इसके अतिरिक्त और क्या मांग सकता है ? क्योंकि विपक्ष जनता की आवाज है जहां जनता किसी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बहुमत देती है वहीँ विपक्ष को भी अपना प्रतिनिधि चुनती है ! लेकिन मोदी ने अपनी शैली से यहां भी पीछे नहीं हटने की कसम खा ली है जिस प्रकार गुजरात सरकार चलाई उसी अंदाज में संसद को भी चलना चाहते है ? वैसे भी विपक्ष केवल नाम मात्र का ही है ?

इसलिए संसद पर जो करोडो रुपये रोज का खर्च हो रहा है और काम कोई नहीं हो रहा है ! लेकिन सरकार है की मस्त है क्योंकि लोग यह भी आरोप लगा रहे है की सरकार स्वयं भी चाहती है की गतिरोध ख़त्म ही न हो ! यही गुजरात माडल का शासंन करने का ट्रिक्स है ? इसलिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नजारा जैसा टी वी चैनल पर दीखता है उसमे अध्यक्ष का झुकाव भी सरकारी पक्ष। की ओर अधिक दीखता है और यह उनके 3 अगस्त 2015 के एक आदेश से भी परिलक्षित हुआ है ? क्योंकि जिस आरोप में विपक्ष के 25 सांसदों को 5 दिन के लिए निलंबित किया है उनके आचरण को टी वी पर नहीं दिखाया गया लेकिन बिना किसी प्रस्ताव केअध्यक्ष ने उन 25 सदस्यों को केवल नाम से संबोधित करके निलंबित कर दिया ? शायद लोकतंत्र के लिए 25 जून 1975 के बाद देश में दूसरा काला दिन था जब लोक तंत्र का गला घोटा गया है ? क्योंकि यह मोदी सरकार का फेल्योर है की वह अपने भ्रष्ठ आचरण वाले मंत्रियों से पीछा छुडाने में असफल हो गए इस लिए सिखंडी धर्म को अपनाते हुए एक महिला (संसद की अध्यक्ष ) की आड़ में लोकतंत्र के मंदिर में 25 विपक्षी सदस्यों के लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या करके उनका निलंबन करा दिया ? यह नरेंद्र मोदी के अहंकार की पहली राजनितिक पराजय है ? उन्हें याद रखना चाहिए की दिल्ली सरकार में उनके दाल की संख्या एक मारुती आल्टो कार की सवारियों से भी कम है केवल 3 लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने अपना दिल बड़ा करके फिर भी उनके दल को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता दी है ? दूसरी ओर मोदी स्वयं प्रतिपक्ष को नेता की मान्यता देना तो दूर प्रतिपक्ष को ही सम्मान देना नहीं जानते ? उन्हें याद रखना चाहिए की कुल मतदाताओं की संख्या में से उनके दल को केवल 31 प्रतिशत मत ही प्राप्त हुए थे जिसके हिसाब से तृतीय श्रेणी में भी कामयाबी नहीं मिलती ? लेकिन ये लोकतंत्र है यहां सब चस्लत है ! ऐसा ?मानने से आत्मसंतुष्ठि तो मिल सकती है जो सच्चाई से कोसों दूर है ?
एस पी सिंह । मेरठ

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