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लौह पुरुष: – : पार्टी विद डिफरेंस ?

पाठक नामा -
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बात न तो पुरानी है और न ही बहुत नई, लेकिन बात है बहुत पते की – एक वट वृक्ष पर बहुत से पक्षी बसेरा कर रहे थे और उसके नीचे भी बहुत से बूढ़े आशक्त और संत किस्म के पक्षी भी इधर उधर बसेरा करते थे ? ऊपर की डाल पर बैठे एक समूह ने दूसरी डाल पर बैठे समूह से कहा कि अगर तुम्हारी ओर एक पक्षी हमारी ओर आ जाये तो हम संख्या में तुम्हारी संख्या से दो गुने हो जायंगे ? इस पर दूसरे समूह ने पहले समूह से कहा कि अगर तुम्हारी ओर से एक पक्षी हमारी ओर आ जाय तो हम तुम्हारे बराबर हो जायंगे ? (अब यह इतनी बड़ी पहेली नहीं है हम ही बताये देते है एक डाल पर 5 पक्षी थे और दूसरी पर 7 पक्षी थे !) आजकल यही खेल देस की राजधानी दिल्ली में चल रहा है. जहां देश के प्रधान मंत्री जो जन सभाओं में तो बहुत चहकते है चमकते है और बड़ी बड़ी बातों के साथ साथ बड़ी बड़ी घोषनाये भी करते है ! भले ही उनका असर कुछ समय बाद होगा या नहीं भी होगा कौन जाने लेकिन घोषनाये तो करते ही है ? क्योंकि उन्होंने पूरी पार्टी के साथ साथ देश का बोझ भी अपने कन्धों पर उठा रखा है जहां एक ओर पुरे चुनावी परिदृश्य में केवल एक ही चेहरा चमकता था अब साथ माह के शासन के बाद ऐसा लगता है की उस चेहरे की चमक कुछ धूमिल सी होती जा रही है शायद इसी लिए दिल्ली की राजनीती के लिए एक नए चेहरे की जरूरत आन पड़ी है वो भी शायद इस लिए कि एक पूर्वे नौकर शाह जो मेग्सेसे पुरूस्कार से सम्मनित भी है उसकी काट के कुछ वैसा ही चेहरा जनता को परोस दिया गया है कि दिल्ली का चुनाव पार्टी विद डिफरेंस अगर हार भी जाती है तो उस हार का ठीकरा उसी के सर फोड़ा जाय जिसकी प्रबल संभावना है ही ? क्योंकि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले खुद भी अभी अपने पुराने चोले यानी कि हिन्दुत्त्व के खोल से अभी तक बहार नहीं निकल सके है और निकल भी नहीं सकते क्योंकि केवल विरोध की राजनीती करते करते लोग बुढ़िया गए है इस विरोध के अतिरिक्त कुछ जानते ही नहीं इस विरोध करना अपना धर्म समझते है फिर चाहे सरकार अपनी ही पार्टी कि क्यों न हो ? अब देखते है यह पुराना नया चेहरा क्या गुल खिलाता था १० फरवरी २०१५ का इन्तजार करिये :? es

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