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आज मैंने एक मासिक पत्रिका “अखंड ज्योति ” में एक लेख पढ़ा “मौन का ताप बनता है वाणी की शक्ति” यों तो मौन व्रत के विषय में बहुत से ग्रंथो में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई है ओर मौन व्रत का अपना जो महत्त्व है वह किसी से छुपा नहीं है. वाणी नहीं उर्जा क्रियाशील होती है, उर्जा विहिन वाणी का कोई अर्थ है ही नहीं फिर चाहे उसे कितने ही अलंकृत ढंग से क्यों न व्यक्त किया जाय वहीँ उर्जा के स्रोत से जुडी वाणी की क्रियाशीलता बहुत व्यापक, त्वरित होती है. इसी लिए तो कहा गया है की तपस्वी की वाणी आग्नेयास्त्र , ब्रहमास्त्र के सामान कार्य करती है तथा तपस्वी के सोचने मात्र से ही प्रकृति में परिवर्तन होने लागाते हैं . अधिक बोलने से उर्जा का ह्रास होने लगता है इसके प्रयोग से उर्जा का भण्डारण चुक जाता है . उर्जा के संग्रह का एक मात्र माध्यम केवल तपस्या ही है इसलिए उपनिषद में वाणी की क्रियाशीलता के लिए तपस्या की राह सुझाई गई है . इसमें कहा गया है की अगर कोई व्यक्ति बारह वर्ष तक कभी कोई मिथ्या वचन न बोला हो, केवल सच का आचरण किया हो तो उसकी वाणी सिद्ध हो जाती है | इसी कड़ी में श्री अरविन्द आश्रम की श्रीमां तो यहां तक कहती हैं कि पाँच मिनट सार्थक बोलने के लिए छ: घंटे तक मौन रहना चाहिए तथा एक घंटे सार्थक बोलने के लिए कम-से-कम २४ घंटे का मौन अनिवार्य है |
भारत के महान दानवीर श्री दधिची ऋषि को कौन नहीं जानता, ऋषि द्वारा देहदान के पश्चात उनके पुत्र अनाथ हो गए वह आश्रम में ही एक पीपल के वृक्ष के नीचे बिलकुल मौन अवस्था में पड़े रहते थे तथा पीपल के फलो से अपना पेट भर लेते थे परन्तु संस्कार वश वह भगवान का स्मरण भी करते रहते थे उनका जीवन बहुत ही कष्ट पूर्वक गुजर रहा था इसी कारण से उनका नाम पिप्पलाद पड़ गया , उसी समय में एक दिन देव-ऋषि नारद जी उनके पास आये तो उन्होंने नारद जी से पूछा कि देव-ऋषि आप यह तो बताओ कि हमारी इस दुर्दशा के लिए कौन उत्तरदायी है | नारद जी ने कहा कि आप कि इस दुर्दशा के लिए शनि देव ही उत्तरदायी है |तभी पिप्पलाद ने कहा कि हे शनी देव आप जहाँ भी हो इसी क्षण “भूलुंठित ” हो जायं चूँकि पिप्पलाद बारह वर्षों से मौन धारण किये हुए थे इस कारण उनके द्वारा कहे वचना-नुसार शनिदेव भूमि पर आ गए परन्तु विष्णु आदि देवताओ के हस्तक्षेप के कारण उन्हें ग्रह मंडल में स्थापित किया गया / तभी से शनिदेव कि पूजा पीपल वृक्ष की पूजा के साथ ही होती है |
अब जब मै इस कथानक को आधुनिक परिवेश में देखने कि कोशिस करता हूँ तो पता हूँ कि केवल दो व्यक्ति ही इस श्रेणी में खरे उतरते हैं एक तो श्री लालबहादुर शास्त्री जी तथा दुसरे श्री अटल बिहारी बाजपाई , शास्त्री जी का कार्यकाल तो बहुत ही थोडा था परन्तु उनकी वाणी में बहुत ओज था मैं यहां यह बताना चाहूँगा कि जब दुनिया में यह कहा गया कि (६० के दशक में) भारत में गेहुं कि पैदावार बहुत कम हो जायगी तथा अकाल जैसी स्तिथि हो जायगी उस समय शास्त्री जी ने एक आह्वान किया था भारतीय जानता से कि व सप्ताह में केवल एक बार सोमवार को केवल गेहूं से बने पदार्थ न खायं उसका इतना व्यापक असर हुआ था कि किसी भी होटल में भी गेहूं से बनी रोटी या अन्य वस्तु नहीं मिलती थी यह उनकी वाणी का ही ओज था जिसे सभी ने मन से स्वीकार किया था और इस विषय में इतिहास गवाह है कि गेहूं के विषय हम आत्म-निर्भर हो गए हैं | इसी प्रकार से उनकी वाणी का ही असर था कि १९६५ में हमारे सैनिकों ने पाकिस्तान को कैसा सबक सिखाया था | इसी प्रकार से श्री बाजपाई जी भी बहुत ही कम शब्दों में अपनी बात कहते है | आप देख लीजिये उनके पुराने भाषण कि वह अगर आधे घंटे का भाषण देते थे तो भाषण के बिच में आधा समय मौन रहकर शब्दों का चयन करते थे यही कारण है कि उन्होंने ने २४ पार्टियों के सहयोग से इस देश का ६ वर्ष तक सफलता पूर्वक नेतृत्व किया शायद यह उनकी आत्मशक्ति एवं वाणी कि शक्ति का ही चमत्कार था |
अब मैं इस कड़ी में जब श्रद्धेय स्वामी राम देव जी को रखता हूँ तो पता हूँ कि उन्होंने आरम्भ तो किया था भारतीय जानता को योग के माध्यम से निरोग करने का तो उस समय में उनकी वाणी देव वाणी जैसी लगाती थी तथा हजारो लोग ( धनवान ) उनके बताये मार्ग पर अग्रसर हो गए, उन्होंने एक सफल व्यसाई के मानिंद हजारो करोड़ रुपये का आयुर्वैदिक दवाइयों का कारोबार खड़ा कर लिया है और एक सफल मार्किटिंग मैनेजर कि तरह दवाइयों का प्रचार भी करते दिखाई देते है यहीं अंत नहीं हुआ उनकी प्रतिभा को देखिये कि वह भारत कि सभी समस्याओं के विषय में बेबाक विचार रखते हैं, और योग पर प्रवचन के साथ साथ वह जानता को राजनीती का पाठ भी सिखाते हैं | आज काल वह सबसे अधिक जोर आने वाले लोक सभा के २०१४ के निर्वाचन में अपने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट कि ओर पूरे देश से प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारेने के लिए देश भर में भ्रमण करके जनजागरण कर रहें है| वहीँ विदेशो में भारतीयों द्वारा जमा काले धन को भारत में वापस लाने का अथक प्रयास कर रहें हैं तथा प्रधान मंत्री जी से कई बार मिलकर अनुरोध भी कर चुके हैं | (यह बात और है कि स्कॉट्लैंड में जो द्वीप ( टापू ) स्वामी जी के ट्रस्ट द्वारा ख़रीदा गया है उसका भुगतान भी विदेशी पैसे से ही हुआ है अब यह पैसा कला है या सफ़ेद इसका असली राज तो स्वामी जी स्वयं ही जानते होंगे ) हम तो बस यह चाहते है कि स्वामीजी अपने प्रयास में सफल हो और अपनी वाणी को इतना शसक्त बनाये कि वह जो चाहते हैं वह सब बिना कहे ही केवल उनके सोचने भर से ही पूरा हो जाय| और हम स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर हों |
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