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“सरकारी पेंसन और मुंशी इतवारी लाल “

पाठक नामा -
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अपने स्वभाव के अनुसार मुंशी इतवारी लाल हमेशा की तरह रविवार को ही इस कडकडाती ठण्ड में पधारे और बोले ——- ” अबे !! ठाकुर ये कैसे ठण्ड करवा रखी है तुमने”

हम बोले—-” यह तो ठीक ही है ठण्ड के मौसम में ठण्ड नहीं होगी तो कब होगी ?

अब तो मुंशी जी का चेहरा देखने लायक था बहुत ही गुस्से में बोले —–” यार तुम्हारे वैज्ञानिक तो कह रहें थे की ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस बार पहाड़ों से सारी बर्फ पिघल जायंगी और संसार की सारी नदियाँ में बाढ़ आ जायगी दुनिया के कुछ हिस्से समुन्द्र में समां जायंगे — यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है ठण्ड है की कम होने का नाम ही नहीं लेती क्या तुम्हारे वैज्ञानिकों की अकल मारी गयी थी या वह पागल हो गए थे जो ऐसे भविष्य वाणी कर बैठे ? ——अब देखो ऐसी ठण्ड में बेचारे भिखारी कहाँ जाय कोई भीख भी देने को
तैयार नहीं सब और सन्नाटा पसरा हुआ है ”

हम बोले —-” मुंशी जी बात तो आप भी ठीक कह रहें हो मै भी आज सुबह मंदिर गया था वहाँ से निकलते ही भिखारियों ने घेर लिया था जब मैंने उनसे यह कहा कि भाई अभी तो मैं पेंसन लेने जा रहा हूँ वहाँ से लौट कर ही आपलोगों को कुछ दे सकूँगा — इस पर एक भिकारी चिल्ला कर बोला साथियों इन बाबू जी को जाने दो यह तो अपने स्टाफ के ही आदमी निकले इनसे क्या भीख लेनी जाने दो बाबूजी को !!!!!!!!!!!”

मुंशी जी बहुत ही चहक कर बोले —-” यार इसमें परेशानी कि क्या बात है ! बात तो ठीक ही लगती है क्योंकि पेंसनर भी तो पहली तारीख के इन्तजार में रहते है और पहली तारीख होते ही बैंको कि ओर भागते है पेंसन लेने के लिए \ इसमें गलत क्या है ?
हम बोले —-” अबे मुंशी तेरा दिमाग तो ठीक है मैं तुम्हे भिखारी लगता हूँ ”

मुंशी जी बोले —“अरे यार तुम तो बुरा मान गए भिखारी ही नहीं तुम तो गुलाम भी हो ? तुम ही क्या मैं भी हूँ — तुम तो जानते हो कि मैं भी सेवा निवृत हूँ सरकारी कर्मचारी हूँ और पेंसन तथा ब्याज कि आय से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा हूँ दो बच्चे है वह अपने पैरों पर खड़े हैं आर्थिक रूप से कोई संकट नहीं है लाइफ मजे में चल रही है कोई चिंता नहीं है | पर जब मैं और लोगों को देखता हूँ जो केवल पेंसन पर निर्भर है/ नहीं भी हैं तो मन में एक सवाल हमेशा गूंजता रहता है कि क्यासेवा निवृत व्यक्ति के लिए पेंसन आवश्यक है तो सवाल यह भी निकल कर सामने खड़ा होता है कि जो व्यक्ति कहीं सरकारी सेवा में या ऐसे संसथान में कार्यरत नहीं है जहाँ सेवा निवृत्ति पर कोई पेंसन नहीं मिलती है तो वे बेचारे क्या करें ? —-

इतना कह कर मुंशी जी चुप हो गए तो हमने उनसे कहा कि —-
” भाई मुंशी यह तो सब ठीक है अब लगे हाथ यह भी बता दो कि ३५-४० वर्ष कि सेवा के बाद अगर सरकार पेंसन देती है तो कौन सा एहसान करती है अगर हम व्यापार या अपना व्यसाय करते तो शायद इससे भी अधिक बचा सकते थे ”

मुंशी जी बोले—— “देखो में तुम्हारी जानकारी के लिए कुछ उदहारण देता हूँ फिर तुम उन पर विचार करो और बताओ ” :—

१- एक व्यक्ति जो एक प्राइवेट लिमिटिड कंपनी में कार्य रत था आयु ५५ वर्ष — किसी कारण वश फैक्ट्री बंद होने पर — एक-मुस्त जो पैसा मिला उसे पोस्ट ऑफिस में जमा करा दिया (MIS – scheme) जहाँ से उसे चार हजार रूपये मासिक ब्याज के मिलते है ५ व्यक्तियों के परिवार का खर्च चलाने में उसके आंसू निकल आते है– यह व्यक्ति न तो बच्चों को पढ़ा पाया और न ही स्वयं ही कोई कार्य सका इस उम्र में कोई काम देने को तैयार नहीं होता !

२- एक व्यक्ति जो केंद्रीय सरकार में ग्रुप बी से ६० वर्ष कि आयु में सेवा निवृत —- पेंसन व् ब्याज के आय लगभग ३ लाख वार्षिक – दो बेटे अपने पैरों पर खड़े हैं अपना मकान सभी ओर से
संपन्न फिर भी अगर पेंसन या उस पर समय समय पर मिलने वाला महंगाई भत्ता अगर लेट भी हो जाय तो परेशान हो जाना !
३- एक माननीय न्यायाधीश जहाँ कोर्ट में बैठकर न्याय करता है – — माननीय न्यायाधीश सेवा निवृत्त होने पर जहाँ पेंसन पाते है और शान से जीवन यापन करते है वहीँ दूसरी ओर उसी कोर्ट वकील भी पूरी लगन सत्य निष्ठा से अपने मुवक्किल को बचाने कि कोसिश में पूरा जीवन बिता देता है ? वकील बेचारा क्या करे न कोई पेंसन और न ही कोई आमदनी का साधन केवल लाइसेंस वापस करने पर ही कुछ लाभ मिल जाता है ?
४- एक व्यापारी दिन दूनी रात चौगनी उन्नति करता है और उसे न तो सेवा निवृत्ति का डर और न ही पेंसन का लालच उसे केवल व्यापार से मतलब रहता है और अपने जीवन में इतना कमा लेता है के पेंसन किस चिढिया का नाम होता है उसे मालूम ही नहीं? ”

“अब तुम ही बताओ कि क्या सभी बुजुर्ग /असक्त /दुर्बल /बेरोजगार व्यक्तियों को पेंसन मिलती है नहीं न केवल जो लोग सरकारी नौकरियों या फिर ऐसे संसथान जहाँ पेंसन का प्राविधान हो सेवा निवृत्ति पर पेंसन का हकदार होता है — यह सब अंग्रेजों के द्वारा हम( गुलामो ) को दिया गया एक प्रलोभन था कि तुम लोग (भारतीय ) हमारे प्रति (अंग्रेजों के प्रति ) स्वामिभक्त रहो हम तुम्हे सेवा निवृत्ति के बाद भी पेंसन के रुप में सुरक्षा देंगें| अगर ऐसा नहीं होता तो क्या मुट्ठी भर अंग्रेज ( तीस लाख अंग्रेज ३५ करोड़ भारतियों पर राज्य कर सकते थे ) यहाँ अपना राज्य कायम कर सकते थे बिलकुल नहीं ”
इतना कह कर जब मुंशी जी चुप हुए तो हमने कहा —-
” भाई मुंशी यह सब तो अपनी जगह ठीक है और बीते समय कि बात हो चुकी है अब तो देश आजाद है और अगर पेंसन नहीं मिले तो अब इस बुढ़ापे में हम किसके घर मांगने जायंगे? ”
मुंशी जी बोले——-” देखो भाई मैं भी पेंसन भोगी हूँ और पेंसन पर ही गुजरा करता हूँ पर कुरूप आदमी का नाम सुन्दर होने पर वह न तो सुन्दर दिखेगा और न ही लोग उसे सुन्दर समझेंगे ?—— अगर मैं ये कहता हूँ कि पेंसन गुलामी कि निशानी है तो उसके तथ्य भी हैं यह कानून अंग्रेजों का बनाया हुआ था और उन्ही के साथ ख़तम भी हो जाना चाहिए था ! पर उस समय दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका परन्तु भारत के गैर कांग्रेसी सरकार के सबसे लोकप्रिय प्रधान-मंत्री ने गुलामी के पेंसन कानून को समाप्त करने का साहसिक कदम उठा ही लिया और १.४.२००४ से पेंसन ख़तम कर दी गई है और इसके स्थान पर जो प्राविधान नए कानून में हैं वह स्वेच्छिक है अगर आप अंश दान करोगे तो भविष्य में सेवानिवृत्ति के बाद आपको पेंसन मिलेगी अन्यथा नहीं?”
हमें बोलने का मौका दिए बैगेर ही थोडा रुक कर मुंशी जी फिर बोले :——–” ठाकुर तुम इतने भावुक क्यों होते हो मै तुम्हारी पेंसन छिनने से तो रहा मेरा कहने का मतलब यह है कि आज सरकार को कर्मचारियों के खर्च के मद में वेतन से अधिक पेंसन का भुगतान करना पड़ता है इससे तो अच्छा यह होता कि सरकार कोई ऐसा कानून या नियम बनाये कि देश के सभी सेवा निवृत कर्मचारी या गैर कर्मचारी सीनियर सिटी जन और गरीगी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत गुजरा भत्ता या ओल्ड ऐज पेंसन जैसी किसी स्कीम को जारी करे ”
मुंशी जी के चुप होने पर जब हम कुछ कहना चाहते थे तो मुंशी जी उठे और यह कहते हुए चल दिए ” भाई मैं जल्दी में हूँ अगले सप्ताह आकर तुम्हारी बात तसल्ली से सुनुगा ”
एस०पी० सिंह -मेरठ

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