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स्वर्ग और नर्क

पाठक नामा -
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अरे यह क्या ! दो मुस्टंडे ( ताकतवर – अजीब से ) हमें दोनों ओर से पकड़ कर एक बहुत बड़े हाल नुमा दरबार जैसे स्थान पर लेकर पहुंचे और बोंले —” महाराज हम इसे ले आये है ” ” हुम”… … वह महाराज जी बोंले ——–
” महाराज. इनको लाने में हमें बहुत मेहनत करनी पड़ी है ”
“क्यों” — महाराज जी बोंले .
उनमे से एक मुस्टंडा बोला —” हमारे यमलोक के वारंट के हिसाब से इनके मृत्युलोक का दिया गया हुआ विवरण बिलकुल गलत है, न तो इसका नाम , न ही इनकी जन्म तिथि मिलती है, न हुलिया मिलता है, न भाषा मिलती है ”
तब हमारी समझ में आय की बेटा अब तुम यम राज के दरबार में हो और मृत्यु को प्राप्त कर चुके हो, और जिन्हें तुम मुस्टंडा समझ रहें हो यह यमराज के दूत है, यहां तो बहुत ही विचित्र रहस्यमई न तो यहाँ सांस चल रही थी और न कोई घबराहट हो रही थी हमारी दशा तो बहुत ही विचित्र सी हो गई |
“चित्रगुप्त” –” इस मनुष्य की पंजिका निकाल कर देखो और इनका असेसमेंट ( इनके कर्म-फल) करके इनके लिए स्थान नियत करो ” यमराज बोले ”
” जी महाराज जी ” —–चित्रगुप्त बोंले और अपने एक सहायक से कहा की —–” इस व्यक्ति द्वारा मृत्युलोक में किये गए कर्मो की लेखा बही ले कर आओ ”
उस सहायक ने तुरंत ही हमारी पोथी निकाल कर चित्रगुप्त जी के सामने रख दी | कुछ देर अध्यन करने के बाद चित्रगुप्त जी बोले——” हाँ तो सबसे पहले यह बताइए कि,तुम्हारा नाम क्या है , तुम्हारी जन्म तिथि वर्ष 1944 है, जब कि तुमने सरकारी रिकार्ड में 1945 लिखी है तुम्हारे सर के बाल इस समय सफ़ेद होने चाहिए काले क्यों है. , और तुम्हारी भाषा हिंदी होते हुए भी तुमने बोल चाल – लिखने पढ़ने में 90 प्रतिशत कार्य अंग्रेजी भाषा में किया है क्यों ? ”
मै बोला,” चित्रगुप्त जी इन सब में मेरी कोई गलती नहीं है, पहली बात यह की मेरा नाम तो माता पिता ने इतवारी लाल ही रखा था परन्तु जहा हम रहते थे वहाँ पढ़े लिखे लोग कम ही थे इस लिए वह लोग हमारे परिवार को ‘मुंशी’ का परिवार कहते थे इस लिए नाम के साथ “मुंशी” शब्द हमेशा के लिए जुड़ गया है , : जन्म तिथि जो माता-पिता ने एक बार स्कूल में लिखा दी वही हो गई, दूसरी बात यह कि वास्तव में मेरे सर के बाल सफ़ेद ही है परन्तु जब मित्रगण यह कहते है कि तुम अभी जवान हो तो मै भी जवान दिखने के लिए सर के बाल काले कर लेता हूँ ” —— “अब रही तीसरी बात, यह मेरी मजबूरी थी कि में आयकर विभाग में कार्यरत था वहाँ का सारा का सारा कार्य अंग्रेजी भाषा में ही होता था इस कारण से मै चाहकर भी अपनी मात्र भाषा कि सही ढंग से सेवा तो दूर मैं उसे बोल भी नहीं सका इसमें भी मेरा कोई दोष नहीं है ”
इतना सुनाने के बाद हमें लगा कि चित्रगुप्त जी कुछ-कुछ सहज से होगये और कुछ लिखने के बाद मुस्करा कर बोंले —
” वत्स ! तुमने बताया है कि तुमने 39 वर्ष 8 माह सरकारी नौकरी कि है, पर हमारे लेखे के अनुसार तुमने केवल 14476 दिवस का सरकारी वेतन लिया है कार्य तो केवल 8100 दिवस ही किया है, बाकी के 6376 दिवस क्या किया ” क्या तुमको इस बात कि ग्लानी नहीं होती कि तुमने बिना काम किये ही सरकारी खजाने से मुफ्त में वेतन लिया क्यों ?”
चित्रगुप्त जी कि सहजता को देख कर हमारा उत्साह कुछ – कुछ बढ़ सा गया और हम बोले —-” महाराज जी इसमे भी मेरी कोई गलती नहीं है क्योंकि सरकार द्वारा ही प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को एक वर्ष में 30 दिन का अर्जित अवकाश, पुरुष को,( महिलओं को तो और भी अधिक अवकास मिलते है ) प्रत्येक माह में शनिवार व् रविवार का अवकाश, वर्ष में 12 आकस्मिक अवकाश, 14 सामान्य, अवकाश ( होली, दिवाली, दशहरा, आदि )” इसके अतिरिक्त बीमारी की छुट्टी अलग से मिलती है इतना कहने के बाद मैंने देखा कि चित्रगुप्त जी कुछ सोचने लगे तो मै फिर बोला : ——-
” महाराज एक बात और जो आपके रिकार्ड में नहीं है सरकार अपने अराजपत्रित कर्मचारियों को वर्ष में एक माह का अतिरिक्त वेतन भी देती है बोनस के रूप में ” —-इसके बाद जब चित्रगुप्त कुछ नहीं बोले तो मैने उनसे कहा कि महाराज —-” मैंने तो आयकर विभाग में होते हुए भी कभी किसी से रिश्वत नहीं ली कभी किसी को सताया नहीं, मैंने हमेशा अपने कार्य को ही पूजा समझा ”
” हूँ ! पर हमारे लेखे में तो यह लिखा है कि तुम्हारे पास बहुत से स्वर्ण आभूषण, कीमती उपहार, तथा बहुत सी खाने पीने की वस्तुएं मुफ्त में ही तुम्हारे घर परिवार में है उपयोग की गई हैं ”
” महाराज . यह सब सही नहीं है मैंने कभी किसी से कुछ नहीं लिया, यह सब भी मेरी पत्नी का किया धरा है क्योंकि मेरी अनुपस्थिति में अगर कोई सज्जन कुछ उपहार आदि दे जाते थे तो पत्नी वह सब कुछ चुप-चाप घर में रख लेती थी, इसमें मेरा क्या दोष ?”
जब बहुत देर तक चित्रगुप्त अपना सर नीचे किये अध्यन करते रहें तो यमराज जी ने उनसे कहा — “चित्रगुप्त, क्या बात है ?”
“महाराज, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा की इस मृत्यु लोक के प्राणी का निर्धारण कैसे करूं” — “जो हमारे लेखे में लिखा है वह भी सही है और जो यह प्राणी कह रहा है वह भी सही है ” —-चित्रगुप्त बोले
यमराज बोले ——” चित्रगुप्त ऐसा करो इस प्राणी को इसकी इच्छानुसार किसी भी कक्ष में भेज दो स्वर्ग या नरक जहाँ यह जाना चाहे ”
अब बोलने की बारी हमारी थी हमने कहा ” महाराज,हमें तो आप अपनी सेवा में ही लगा लीजिये, हमें असेसमेंट करने का बहुत अनुभव है, यहाँ रहकर हम आपकी सेवा करते रहेंगे ”
“नहीं, बिलकुल नहीं,” चित्रगुप्त बोले ——–” यहाँ मृत्युलोक के तुच्छ प्राणी नहीं रह सकते, जाओ कक्ष एक या कक्ष दो में से जो भी तुम्हे पसंद हो वहाँ जा कर रहो ”
अब हम क्या करते अपना मुंह लटका कर वहाँ बैठने ही जा रहें थे की दो सुरक्षाकर्मियों ने हमें दोनों ओर से पकड़ कर कहा –” चलो, पहले कौन सा कक्ष देखोगे ”
हमने सोचा जब देखने की ही बात है तो पहले सवर्ग ही देखा जाय और उनसे कहा —” पहले हमें कक्ष नंबर एक अर्थात स्वर्ग ही दिखा दो ”
वह दोनो हमें ले कर चल दिए एक बहुत ही विशाल स्थान की ओर जहाँ चारो ओर अतिसुन्दर लताएँ, विशाल वृक्ष, फूलों -फलों के गुछे बहुत ही सुन्दर लग रहें थे —उसके बाद एक बहुत ही विशाल भवन दिखा जहाँ बहुत ही शांत मुद्रा लोग बैठे हुए दिखाई दिए कुछ ध्यान मुद्रा में थे तो कुछ भजन कर रहें थे लकिन यह क्या वहाँ कोई आवाज या शोर नहीं था, न ही वहाँ कोई वाहन आदि दिखा,
” चलो भाई अब कक्ष नंबर दो भी दिखा दो ” ——-हम बोले
वह बिना बोले ही चल दिए और क्षण भर में ही कक्ष दो पर थे — यह क्या यहाँ पर तो पृथ्वी से भी अधिक विलासिता के सारे सामान मौजूद थे चारो ओर वैभव बिखरा पड़ा था — बड़े-बड़े होटल जैसे भवन , आधुनिक बार – कसीनो वैगेरा —- आगे बढे तो देखा की यहाँ तो हमारे बहुत से दोस्त महफ़िल जमाये बैठे थे हमें देखते ही जोर जोर से चिल्लाने लगे —–” अरे ! मुंशी यहाँ आओ हम तो तुम्हारा इन्तजार बहुत देर से कर रहें है, अब मजा आएगा, यहाँ तो पूरा व्यापारी वर्ग मौजूद है, बड़े -बड़े नेता है, बड़े अधिकारी हैं ——- सब इंतजाम है तुम बिलकुल फिकर मत करो सब ठीक है ”
बस फिर क्या था हमने तुरंत ही कहा ‘” चलो भाई तुम लोग हमें यहीं रहने दो – और चित्रगुप्त जी कह देना हम नंबर दो में ही रहेंगे ”
उन दोनो कहा —“ठीक है चलो हम तुम्हारा पंजीकरण करा दें” – ऐसा कह कर वह हमें अगले कक्ष में ले कर चले — कक्ष पर करते ही हमारी आँखे खुली की खुली रह गई यह क्या वह सारा वैभव कहाँ फुर्र हो गया – चारो ओर अँधेरा , भयंकर दुर्गन्ध , विकृत -भयंकर आकृति वाले जीव, अपंग मनुष्य – हम बोले ” भैय्या हमें यहाँ नहीं रहन हमें तो आप नम्बर एक में छोड़ दो ”
“नहीं – बिलकुल नहीं, यहाँ सबकुछ एक बार में ही तय करना होता है, अब तो बन्धु तुम्हे यहीं रहना होगा, यह मृत्यु लोक नहीं है, जहाँ अपनी सुविधा के अनुसार दिन में तीन बार पार्टियाँ बदल कर सरकारों को बदलदेते हो यहाँ ऐसा कुछ नहीं चलेगा, समझे ”
इसी समय वह सारे लोग जो पहले वाले हाल में मस्ती कर रहें थे सब आ गए हमने उनसे कहा—” भाइयो हमने आप क्या नुक्सान किया था जो आपलोगों ने मेरे साथ छल किया मुझे सही बात नहीं बताई ”
उस भीड़ में से एक व्यक्ति बोला —” मुंशी जी हम सब भी इसी प्रकार यहाँ फसायें गए है, जब यम राज को किसी को नर्क में भेजना होता है तो इसी प्रकार का नाटक किया जाता है और यहाँ रहने वालों की एक दिन की दावत हो जाती है, तो बताओ इसमें हमारा क्या दोष ”
अबतो हमारे रोने चिल्लाने की बारी थी करते क्या अपना सिर पीट कर चिल्लाने लगे की– ” हमें तो नंबर एक में भेजो”
इसी बीच झटके से हमारी आँख खुली और हम क्या देखते हैं की हमारे बिस्तर के चारो ओर, घर के और पड़ोस के लोग खड़े है –
-हमारे डाक्टर साहब भी थे वे बोले —
“मुंशी जी क्या बात है कौन से नंबर एक की बात कह रहें थे – आप पिछले एक घंटे से बेहोशी की हालत कौन सी भाषा में बात कर रहें थे हम तो समझे नहीं ”
अब हम उन्हें क्या बताते की अभी अभी स्वर्ग और नर्क की यात्रा करके आ रहें है ?

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