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Minimum government maximum governance ????

पाठक नामा -
पाठक नामा -
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आखिर क्या कारण है कि सरकार को अपने दो वर्ष के कार्य कलापों को देश की जनता को बताने , दिखाने और समझाने के लिए एक महीने तक चलने वाले विभिन्न कार्यकर्मो की जरूरत आन पड़ी है ? ऐसा लगता है कि जुमलों की तरह ही “minimum government maximum governance ” की अवधारणा भी एक जुमला ही बनकर रह गया है ? क्योंकि अख़बार टी वी और पत्रिकाएं देखने में लगता है की चारो ओर सरकार ही सरकार का बोलबाला है ? जिसमे सरकारी विज्ञापनों पर करोडो रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा है ?क्या सरकार एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है जिसे अपने उत्पाद बेचने के लिए विज्ञापनों की आवश्यकता है ।

उधर देश के 8 राज्य भयंकर सूखे की चपेट में हैं ! सरकार के वरिष्ठ मंत्री गण कहते है हम राज्यों को पैसा दे रहे है राज्य सरकारें फण्ड का रोना रोने लगते हैं ? वैसे भी मिनिमम गवर्नमेंट की अवधारणा अगर वास्तविक रूप में होती तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को सरकार के आदेशो को पलटने और सरकार को निर्देश देने की कभी जरूरत ही नहीं होती ? सरकारी दखल और सरकारी सख्ती कितनी अधिक है उसकी एक झलक अभी हाल में ही संपन्न हुए राज्यों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्य मंत्रियों के सम्मलेन के दौरान दिखी जब भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर की आँखों से बेबसी के आंसू निकल ही आये थे !

भले ही केंद्र की सरकार के स्तर पर किया जाने वाला आर्थिक भ्रष्टाचार इन दो वर्षो में नहीं दिखाई देता है क्योंकि अभी तक कोई खरीद और आवंटन ही नहीं हुआ है ? और न ही लोकपाल की स्थापना हुई है जो भ्रष्ठाचार को उजागर कर सके । देश संभाल रही सरकार से यह अपेक्षा जो जनता को है वह यह की राज्यों में होने वाला भ्रष्टाचार कम हो जिसमे जनता को प्रत्येक दिन दो चार होना पड़ता है राज्य स्तर पर ऐसा कोई सा प्रदेश नहीं है जहाँ भ्रष्टाचार में कोई कमी जनता को नजर आती हो सबकुछ पूर्व की भांति चालू है ? पुलिस द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार, न्यायालयों की दशा जहां दशकों तक केवल तारीख पे तारीख के अतिरिक्त कुछ नहीं होता ?

जहाँ एक और सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है गतिमान ट्रेन को सफलता पूर्वक चलकर वहीँ यह भी सच है कि उसके सञ्चालन में घाटा हो रहा है ? तो दूसरी और जन साधारण की रेल जिसकी औसत गति 35 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे है उसमे साधारण यात्री अंनआरक्षित डब्बों में कीसी जानवर की तरह भरे होते है ? ऐसे नज़ारे दिल्ली से लेकर अमृसर और पटना से लेकर तमिलनाडु तक देखे जा सकते है ?उस पर भी डब्बे में घुसने से पहले पुलिस को भेंट चढ़ानी पड़ती हऐ ? लेकिन हम गतिमान पर ही गर्व करने को मजबूर हैं ? इतना होते हुए भी हम सरकार को दो वर्ष के कार्यकाल को पूरा होने पर हार्दिक बधाई देते हैं ?

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