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1947 की स्वतंत्रता के बाद हमारे देश की जो दशा या दिशा थी उससे नहीं लगता था की भारत अक्षुण और सार्वभौम राष्ट्र के रूप में विकसित हो पायेगा ? क्योंकि 600 वर्षों की मुस्लिम दासता और 200 वर्षों की अंग्रेजी दासता से मुक्ति के रूप में देशी राजे रजवाड़ों को अपने स्वरुप में स्वतंत्र करने की अंग्रेजी कुटिलता किसी से छिपी नहीं है । लेकिन उस समय के कुशल राजनितिक नेतृत्व की कुशल प्रशासकनिक क्षमता और दृढ इच्छाशक्ति के कारण 565 से अधिक देशी राजाओं के राजवाड़े को एक भारत के रूप में संघटित करके नेहरू और सरदार पटेल ने अपनी क्षमता का परिचय दिया था?
फिरबारी आई संविधान की संविधान सभा के सदस्यों ने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की अगुआई में संविधान का निर्माण किया जो 26 जनवरी 1950 को लागू भी कर दिया गया जिसके अनुसार देश काशासन लोकतान्त्रिक पद्धति के अनुसार पिछले 69 वर्ष से प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर है ! जिसकी अवधारणा है जनता का राज जनता के लिए , लेकिन पिछले कुछ वर्षो में में ऐसा क्या हुआ की सरकार अपनी संप्रभुता बनाये रखने के लिए जनतांत्रिक मूल्यो को ं रौंदने के लिए देश की रक्षा में सीमाओं पर तैनात फौजों को विशेष अधिकार से लैस कर देती है ? अलगाववाद असहमति और विशुद्ध जनतांत्रिक अधिकार की मांग को राजनितिक रूप में हल न करके फ़ौज और सुरक्षा बालों को विशेष अधिकार दिए जाने की प्रवृति बढ़ी है ? और इस प्रकार किसी भी क्षेत्र को अशांत घोषित करके सरकार अपने आप को सुरक्षित समझ लेती है? राजनीती में फेल नेता फ़ौज के और सुरक्षा बालों की पीठ पर चढ़ कर जनतंत्र को चलाना चाहते है , लगता तो ऐसा ही है कि भारत में इस दौर की राजनीतिक सोंच के लोग जनतांत्रिक शासन व्यवस्था के स्थान पर केवल शासक बनकर देश में शासन करना चाहते है ?
यही गलती स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी की जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके चुनाव को रद्द कर दिया था तो त्याग पत्र देने के स्थान पर उन्होंने अपने विरुद्ध हो रहे आंदोलन को दबाने के लिए 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी और विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंस दिया ? चूँकि भारतीय लोकतंत्र एक जीवंत लोकतंत्र है अंतोगत्वा लोकतंत्र की जीत हुयी , और 1977 में हुए चुनावो में जेल में बंद नेताओं ने एक अलग दल जनता पार्टी बनाई और विजयी हुए ? लेकिन देखने में ऐसा लगता है जिस लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए जो लोग 18 महीने जेलों में रहे आज सत्ता उन्ही लोगो के हाथ में होते हुए भी जनतांत्रिक मूल्यों की अवेहलना हो रही है जब सुरक्षा बालो के द्वारा की गई कार्यवाही में नागरिक मरते हैं ?
माननीय उच्चतम न्यायलय का मणिपुर राज्य में सुरक्षा बालो द्वारा की गई मौतों के विषय में गंभीर आदेश आया है।
अभी सर्वोच्च न्यायालय का ताजा आदेश है कि मणिपुर और कश्मीर समेत आफस्पा इलाकों में सैन्यबल कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई न करें। बल प्रयोग न करें। सर्वोच्च न्यायलय ने पिछले दो दशक में मणिपुर में सभी डेढ़ हजार से ज्यादा फर्जी मुठभेड़ों की जांच का आदेश भी दिया है।
कोर्ट का फैसला सेना के लिए बुरी खबर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मणिपुर में सेना द्वारा फर्जी एनकाउंटर के आरोप वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है। कोर्ट का यह फैसला सेना के लिए बुरी खबर है।
कोर्ट ने कहा कि अगर AFSPA लगा है और इलाका भी डिस्टर्ब एरिया के तहत क्लासीफाइड भी है तो भी सेना या पुलिस ज्यादा फोर्स का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि क्रिमिनल कोर्ट को एनकाउंटर मामलों के ट्रायल का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सेना और पुलिस के ज्यादा फोर्स और एनकाउंटरों की स्वततंत्र जांच होनी चाहिए। कौन सी एजेंसी ये जांच करेगी, ये न्यायालय बाद में तय करेगा।
सुरेश सिंह ने दाखिल की थी याचिका
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सेना और अर्धसैनिक बल मणिपुर में ‘अत्यधिक और जवाबी ताकत’ का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि इस तरह की घटनाओं की निश्चित रूप से जांच होनी चाहिए।
जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने एमिकस क्यूरी को मणिपुर में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों का ब्योरा सौंपने को कहा है।
पीठ ने कहा कि मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ के आरोपों की अपने स्तर पर जांच के लिए सेना जवाबदेह है।
बेंच ने कहा कि मणिपुर में कथित फर्जी एनकाउंटर्स के आरोपों की जांच सेना चाहे तो, खुद भी कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि वह नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन के इस दावे की जांच करेगी कि वह शक्ति विहीन है और उसे कुछ और पावर्स की जरूरत है।
सर्वोच्च न्यायालय जिस पिटिशन पर सुनवाई कर रहा था वह सुरेश सिंह ने दाखिल की है। सुरेश सिंह ने अशांत इलाकों में इंडियन आर्म्ड फोर्सेज को स्पेशल पावर्स देने वाले आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट को निरस्त करने की मांग की है।
टिप्पणी- अकेले छत्तीसगढ़ में हजारों आदिवासी सीधे सुरक्षाबलों के निशाने पर
रंगभेद और जाति के समीकरण के मातहत राजकरण और आर्थिक नरसंहार के गहराते जाने के खतरे, रंगभेदी राष्ट्रवाद के विश्वव्यापी हो जाने की वजह से उसकी वैश्विक प्रतिक्रिया तेज होते जाने से अमेरिका ही नहीं, भारत समेत बाकी दुनिया को अपने शिकंजे में कसकर दुनियाभर में युद्ध और गृहयुद्ध के माहौल बना रहे हैं। भारत में हिंदुत्व अब अमेरिकी है। यह बेहद गौरतलब मसला है।
इस फैसले का स्वागत करते हुए कहना होगा कि मध्यभारत और देश के आदिवासी भूगोल में नस्ली गृहयुद्ध दावानल है और अकेले छत्तीसगढ़ में हजारों आदिवासी सीधे सुरक्षाबलों के निशाने पर हैं, क्योंकि मध्य भारत के अकूत खनिज समृद्ध इलाकों में कारपोरेट हितों के लिए सलवा जुड़ुम का मतलब नरसंहार है। इसे हम भारतीय नागरिक सन 1947 से लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं कि भारत में विकास का मतलब विस्थापन और बेदखली है तो आदिवासियों और दलितों के नरसंहार का सिलसिला भी है यह।इस लिए यह सवाल उठना जरुरी है की एक भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े और विशाल देस में क्या आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट की जरूरत है ?
एस. पी सिंह, मेरठ ।
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