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जंगल में दंगल !!!!!

पाठक नामा -
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जंगल में दंगल

भौत चिंतित है जंगल के जानवर, सब में खलबली मची हई है क्योंकि शहर के सारे के सारे पालतू जानवर जंगल की ओर आ रहे है ? जंगल के राजा शेर ने एक मीटिंग बुलाई लेकिन कोई जानवर नहीं आया हार कर शेर ने सैफई से आये एक पहलवान नुमा सांड से कहा की भाई तुम तो अभी अभी शहर से आये हो कुछ तरकीब बताओ सब जानवरों को कैसे बुलाया जाय ? भैंसे ने कहा सर आप। कोई एक रंगा रंग कार्यक्रम रखो सब आ जायेंगे ! ऐसा ही हुआ निमंत्रण भेजा गया सब लोगआये ? शेर ने अध्यक्षता कि लोमड़ी ने मंच संचालन किया ! सबसे पहले नम्बर आया कुत्ते का ।

मंच से स्वान जी बोले , ” भैया मैं तो शहर से भाग आया हूँ हमेशा के लिए क्योंकि मैं जिस व्यक्ति के यहाँ रहता था वह मुझे भर पेट खाना देता था रहने की सूंदर व्यस्था थी मैं अपने मालिक के साथ कर में घूमता था , मेरी तो मौज ही मौज थी , परंतु मेरा मालिक बहुत जालिम है किसी बिरादरी वाले से मिलने ही नहीं देता था ? मैंने जब भी उसके तलवे चाटने की कोशिस की तो वह कभी मेरे हाथ ही नहीं आया ? ”
तभी सब ओर से आवाजे आईं ” क्यों ”

स्वान जी बोले “भाइयों मेरा मालिक मुझसे बड़ा स्वामिभक्त है हर समय अपने मालिक नुमा नेता के तलवे चाटता रहता है ” अब आप ही बताओ ऐसे गुलाम के घर मेरी क्या जरूरत , क्या करता मैं तो भाग आया ”

इसके बाद नम्बर सांप का आया, तब शेर ने कहा की “तुम तो पालतू हो नहीं फिर क्यों भाग आये? ” इस पर सांपजी बोले “महाराज जी आपको तो पता ही हमतो अपना गुजरा चूहों पर ही करते है जो खेतो और खलिहानों में रहते है , और अब इंसानो ने अपने खेत या तो बेच दिए हैं या सरकार ने छीन लिए है वैसे भी अति बारिस और सूखे ने किसानो को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया है लाखों कीसान आत्महत्या कर चुके है , वैसे भी शहरों में हमारा क्या काम वहां तो इंसान ही इंसान को काट रहा है और हमें बदनाम कर रहा है ? एक शेयर जो एक आदमी कह रहा था ! ‘ दोस्त नहीं ये नाग काले है (काले कोट वाले) इनके डसने का क्या गम करे खुद ही समाज ने पाले हैं ! महाराज आप ही बताओ हम वहां क्या करते ?”

“ठीक है तुम भी जंगल में रह सकते हो ” शेर ने कहा और फिर सांड की तरफ देख कर बोला ” बताओ भाई तुम्हे क्या तकलीफ है तुम क्यों शहर से भाग आये ? तुम शिवजी महाराज के वाहन हो , घर घर पूजने वाले बलशाली ”

सांड भी रुहांसा होकर बोला ” महाराज क्या बताऊँ , हम तो मजे से जीवन जी रहे थे ,जबसे किसानो ने मशीनों से खेती करनी आरम्भ की है हमारी दुर्दशा तभी से शुरू हुयी है, यहाँ तक कि दुधारू गाय भैंस भी अब कोई नहीं पालना चाहता कारण जो भी हो, लेकिन विदेशो में हमारे कुटुम्बियों के मॉस की बहुत मांग है । सरकार भी हमारे मांस के निर्यात को प्रोत्साहन देती है कारण देश को विदेशी मुद्रा और पार्टी को मोटा चंदा । महाराज! अब शहरों में जो कुछ भाई बंधू बचे है जंगल की ओर पलायन कर चुके हैं ? ”

” हुम्……..!!!!!!! ” राजा जी बोले :- ” भाई बन्दर जी, आप भी बोलो आपतो साक्षात् हनुमान जी के अवतार हो आप तो घर घर पूजे जाते हो , फिर आप को क्यों भागने पर मजबूर होना पड़ा ”

बंदरों के नेताजी बोले :- ” महाराज , हमें कोई तकलीफ नहीं थी जिंदगी मजे से कट रही थी, हमें कोई दुःख भी नहीं था लोग आज भी हमें भरपूर खाना दिए जा रहे थे , और न तो हम यहाँ अपनी मर्जी से आये है न हमें किसी ने भेजा और न ही किसी ने बुलाया है ? वैसे हम इतने महान भी नहीं है कि गंगा माँ की तरह जंगल की देवी हमें बुला कर हमारा राज तिलक कर दे ? महाराज ! हमारी दुर्दशा तो उसी दिन से आरम्भ हुई है जबसे हमारी जैसी शक्ल सुरत के कुछ लोगों देश की राजधानी में राज काज संभाला है ?

“क्यों भाई क्यों राजा को तुम लोगों को क्या दुश्मनी हो गई है ? ” जंगल का राजा शेर बोला !

बंदर जी बोले :- ” महाराज! ये तो हमें मालूम नहीं की राजा को हमसे क्या दुश्मनी हो गई थी , परंतु इतना हमें मालूम है की जो लोग हमको शहर से पकड़कर जंगल में छोड़ कर गए हैं वे लोग आपस में बात कर रहे थे कि नए राजा को राजकाज संभाले हुये दो वर्ष हो गए है और जनता और विपक्ष कह रहा है की राजा बंदरों की तरह उछल कूद तो बहुत कुछ कर रहे है परंतु नतीजा कुछ नहीं निकल रहा है शायद इसीलिए सरकार ने उन्हें आदेश दिया है शहर में रहने वाले सभी बंदरों को पकड़कर जंगल मो छोड़ा जाय और सरकार की ओर से प्रत्येक बंदर पकड़ने के 200 रूपये उनको मिलेंगे । बताओ महाराज इसमें हमारी क्या गलती है। हमें तो सरकारी आदेश पर बलपूर्वक यतना देकर जंगल में छोड़ा जा रहा है ?”

” ठीक है , तुम लोग भी आराम से जंगल में रह सकते हो , लेकिन याद रखना तुम सब लोग इंसानो के साथ रहकर उनकी कुछ बुरी आदतों को भी सीख ही गए होंगे इसलिए जंगल में कोई राजनीती नहीं करना, उन आदतों से दूर रहना वर्ना तुम लोगो का जंगल में रहना मुश्किल होगा ”
जंगल के राजा ने कहा और सभा बर्खास्त कस्र दी ।

एस पी सिंह, मेरठ ।

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