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तलाक तलाक तलाक !!! (ताला लॉक )

पाठक नामा -
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बचपन में हमने एक कविता सुनी थी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
!! (संभवतय यह कविता कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखी थी ). यह कविता उस घटना की याद में रची गई जिसमे अंग्रेजों से लोहा लेते लेते झाँसी की रानी “लक्षी बाई” शहीद हो गई थी यह बात और है की जब देश में क्रांति की लहर हिलोरे मार रही थी और लाखों देश भक्त अंग्रेजो की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए संघर्षशील थे अपने पति की मृत्यु के बाद उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड झाँसी की रानी अपने अबोध बालक को पीठ से बाँध कर घोड़े पर सवार होकर अंग्रेजों की फ़ौज से लोहा लेने निकल पड़ी थी और वीरता पूर्वक युद्ध करते हुए शहीद हुयीं .
atal and advanimodi
images (6).jpg R N
अभी ऐसा लगा था कि देश में उजागर हो रहे नित नये भ्रष्टाचार के खुलासे के कारण वर्तमान कांग्रेस सरकार के विरुद्ध एक जबरदस्त माहोल बन रहा है और संभवत; अगले आम चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो ही जाय लेकिन शायद वर्तमान राजनितिक परिस्थितियों के कारण ऐसा संभव ही नहीं है.

अभी एक कविता नहीं पटकथा दिल्ली से दूर नागपुर में लिखी गई पर उसका प्रकाशन और विमोचन गोवा के समुद्री तट के किनारे बैठ कर किया गया इसमें सबकुछ विपरीत ही है पहले पटकथा लिखी गई घटनाएं उसके बाद घटित हो रही है यानि कि यह इक्कसवी सदी का ज़माना है जहाँ परिणाम पहले ही जान लिया जाता (जैसे गर्भ में लिंग परीक्षण कराया जाता है ) परिणाम स्वरूप जो घटनाएं घट रही है वह इस प्रकार हैं
जहां एक ओर देश केंद्र की कांग्रेसी सरकार की विफलताओं के विरुद्ध एक माहोल बना हुआ दिख रहा था उसी कांग्रेस ने जब कर्णाटक की भाजपा सरकार को विधान सभा में उखाड़ फेंका ही नहीं ठसक के साथ अपनी सरकार भी बना ली तो ऐसा लगता है कि देश के सामने भ्रष्टाचार कोई मुद्दा है ही नहीं ? परन्तु देश की सत्ता को शीघ्रता से शीघ्र कब्जाने की मुहीम में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कुछ भ्रमित सी हो गई है और उसी भ्रम की स्तिथि में उसने अपना चिर परिचित दांव चल भी दिय उसी कड़ी में नरेन्द्र भाई मोदी को चुनाव समिति की कमान सौंप कर अभी निश्चित भी नहीं हो पाई थी कि पार्टी के वरिष्ठतम वयोवृद्ध नेता ने दुखी होकर पार्टी के विभिन्न पदों से त्याग पात्र दे दिया . / बहुत मान मनव्वल के बाद स्तिथि अभी कुछ सुधरी भी नहीं थी कि पार्टी के सबसे बड़े सहयोगी जदयू ने आखिरकार मोदी के मुद्दे पर NDA के 17 साल पुराने साथी जनता दल यूनाइटेड ने उसी छतरी को उखड फैंका जिस के नीचे वह 17 वर्षो से सत्ता का सिंहासन लगा कर राज्य कर रहे थे वे यहीं तक नहीं रुके उन्होंने इस छतरी को थामे हुए 11 सेवकों को भी बर्खास्त कर दिया और अब साम्प्रदायिकता के नाम पर उसका साथ छोड़ ही दिया। वैसे तो पहले से ही इस बात का अंदेशा था कि नरेंद्र मोदी को मिलने वाली प्राथमिकताओं के कारण नीतीश भाजपा से खफा थे, वह किसी भी हाल में मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नहीं देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने भाजपा को नरेंद्र मोदी पर उसका स्टैंड स्पष्ट करने को कहा था।
images (6).jpg NITISH
बुद्धिजीवियों का एक वर्ग नीतीश कुमार के इस कदम को सीधे-सीधे उनके लिए फायदे का सौदा मान रहा है। इनका कहना है कि नीतीश कुमार ने सही समय पर खुद को एनडीए से अलग कर लिया क्योंकि अगर कहीं लोकसभा चुनावों के समय भाजपा नरेंद्र मोदी, जिन्हें एक कट्टर और सांप्रदायिक नेता के तौर पर जाना जाता है, को अपना प्रत्याशी घोषित करती तो इसका नुकसान नीतीश को अपने परंपरागत वोटबैंक जो कि मुसलमान हैं, को खोकर उठाना पड़ता। जाहिर है नीतीश और जदयू के लिए यह एक घाटे का सौदा होता और यह जानने के बावजूद की एनडीए के साथ रहने से उनकी हार निश्चित है वह खुद को एनडीए से अलग कर पाने की हालत में नहीं होते। उस धर्म संकट की घड़ी से खुद को बचाए रखने के लिए जदयू का यह निर्णय सही ही है। कम से कम अब उनके पास कांग्रेस के साथ गठबंधन कर या फिर अपने वोटबैंक का विश्वास जीतने जैसे कुछ विकल्प मौजूद हैं जिसके अनुसार यह संभावना कम ही है कि उन्हें बिहार में कोई नुकसान उठाना पड़े।
ऐसा लगता है कि अब बिहारी बाबू अपने उद्देश्य से भटकती जा रही भाजपा को अपने प्रदेश की और प्राण वायु देने की जोखिम नहीं उठाना चाहते थे क्योंकि जब हम यह देखते है कि पार्टी अपने जनसंघ के खोल से निकल कर जब भारतीय जनता पार्टी के रूप में अवतरित हुयी तो उसके पास क्या था लेकिन कुछ स्थापित नेताओं के अथक प्रयास और कुछ अदृश्य हाथों के सहारे उसने देश कि सरकार का नेतृत्त्व किया भले ही उसे अपने चिर-परिचित अजेंडे को छोड़कर 24 विभिन्न मतों वाली पार्टियों को जोड़ना पड़ा था और उसने एक समय लगभग 27 प्रतिशत मत हासिल किये थे इसके लिए उसने आन्ध्र प्रदेश में चन्द्र बाबू नायडू, तामिल नाडू में जे. जय ललिता, ओड़िसा में नविन पटनायक पंजाब में आकालियों से, बंगाल में ममता से महाराष्ट्र में शिव सैनिकों से तो बिहार में जदयू से नाता ही नहीं जोड़ा बल्कि बिहार में साथ रहकर पिछले 9 वर्षो से सरकार भी चला रहे है, उत्तर प्रदेश में माया से बहन भाई तक न रिश्ता जोड़ना पड़ा था परन्तु 2009 के बाद केवल 4 पार्टियों सिमट कर ही रह गया NDA का कुनबा और मत प्रतिशत भी लगभग 18 प्रतिशत ही रह गया, हमें तो यही लगता है कि अखिल भारतीय स्वरुप खोती जा रही भाजपा को अब खोने के लिए कुछ और बचा ही नहीं है इस लिए वह अपने पुराने स्वरुप में ही लौटना चाहती है और शायद इसी लिए
उसने एक कहावत के अनुसार तांगे की सवारी में एक बिगडैल घोड़े को जोत दिया है और हल्ला मचाते हुए सफ़र भी आरम्भ कर दिया है कि या तो रस्ते से हट जाओ या फिर रौंद दिए जाओगे समझदार लोगों के लिए इशारा और जो नहीं समझ उसके लिए चेतावनी ?
यह सब कुछ भाजपा की अपनी सोंच नहीं है क्योंकि अगर एक राजनितिक पार्टी के रूप में भाजपा की अपनी सोंच होती तो ऐसा कदम कभी भी नहीं लेती क्योंकि वरिष्ठतम नेता आज भी इन कदमों का विरोध कर रहे है यह कदम भाजपा के माई बाप कहे जाने वाले संघठन के द्वारा ही लिए गए हैं? क्योंकि भाजपा के पास केवल दक्षिण पंथी पूंजी के बाद सुशासन का शंख बजाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है चूँकि देश से कांग्रेस को जिस भ्रष्टाचार रूपी तलवार के बल पर अपदस्त करने योजना उसके पास थी वह कर्णाटक हाथ से निकल जाने के कारण वह धार भोथरी हो गई है /
images (6).jpg CHIEF AND DUPTY
अब अगर बात करे नितीश कुमार कि तो वह एक क्षेत्रीय पार्टी के नेता है और उनका आधार भी वही वोट बैंक है जो कभी कांग्रेस का या लालू प्रसाद का था इस लिए युद्ध से पहले अपने किले को दुरुस्त करना सब का कर्तव्य है यह तो पार्टनर शिप का मौलिक सिद्धांत है पार्टनर शिप टूटने पर देनदारी और लेनदारी का बटवारा भी होता है तथा चालित पूंजी और स्थाई पूंजी का भी बटवारा होता है अब यह दोनों पर निर्भर है कि वह अपने ग्राहकों ( मतदाताओं ) को अपनी ओर किस प्रकार आकर्षित करते है और अपना व्यापार किस प्रकार चलते है : अभी अभी लेख पोस्ट करते समय बिहार में जदयू और भाजपा में सड़कों पर संघर्ष शुरू हो गया है.

एस. पी सिंह मेरठ

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