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मदर्स डे‌ जैसे विशेष दिनों का महत्व

som21
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काफी ‌‌‌‌‌सोचने और विचार करने केे बाद मुझे समझ आया कि ये विशेष दिन भी कितने सोच समझकर बनाये गये थे न! चाहे वह ईश्वर ने बनाए‌ हों,या अल्लाह ‌ने,ईसा ने बनाये हों या गुरु ने । सबका एक ही उद्देश्य था-इंसानों‌ को खुश होने और तनावमुक्त रहने के कुछ पल प्रदान करना।अब तक तो आप विशेष दिन का मतलब समझ ही गए होंगे। वे विशेष दिन हैं -होली,ईद, क्रिसमस, और लोहड़ी। जब सभी इंसान सारी‌ बुराइयां और भेदभाव भूलकर एक-दूसरे के जश्न में शामिल हो जाते हैं,वहां अमीरी-गरीबी की कोई सीमा नहीं होती है।वाकई!‌कितने अच्छे ‌दिन होते हैं वे!

 

 

लेकिन ,आज मानव उत्पत्ति और विकास के सातवें युग अर्थात कलियुग में मानव ने उत्सव मनाने के लिए कई विशेष दिन निर्धारित कर लिए हैं ।शायद उसके नज़रिए से ये विशेष दिन अपनी भावनाएं व्यक्त करने और प्रेम प्रदर्शित करने के दिन हैं।खास बात तो यह है कि ये दिन पूरे साल आते हैं । प्रिय को प्रसन्न करने से शुरू होकर ,मां की ममता पाने ,पिता का पुचकार पाने जैसे और भी कई विशेष दिन मनाते हुए वर्ष बीत जाता है।
यहां तक तो बात सही थी पर मुझे‌ तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब मुझे‌ मेरे मातृभक्त देश में ‌मदर्स डे जिसे‌ हिन्दी ‌में मां‌ दिवस लिखना,पढ़ना‌,बोलना‌ या‌ सुनना शुद्ध ‌नहीं‌ लगता है ,की‌ सच्चाई का‌ अनुभव हुआ।‌ यह मदर्स डे का‌ दिन वैसे‌ तो बहुत अच्छा है और इसे मनाया भी जाना‌ चाहिए ।पर इसे मनाने की जरूरत क्यों पड़‌ रही है?‌
क्यों इस दिन को केवल शहर में रहने वाले या अमीर‌ लोग ही मनाते हैं!‌क्यों यह केवल उन मांओं तक ही सीमित है जिन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी,अच्छा ‌जीवन दिया! क्यों यह मदर्स ‌डे उन मांओं को नसीब नहीं है जो हर दिन मजदूरी‌ करके अपने बच्चे ‌की भूख मिटाती हैं!क्यों वह मां इस मदर्स डे से अन्जान हैं ‌जिसने सिर्फ़ रसोई और घर संभालने में‌ अपनी जिंदगी बितायी है? क्या वो मांएं‌ इस उत्सव की‌ हकदार नहीं‌ हैं‌ जिसने‌ अपने‌ बच्चों ‌के लिए‌ अपना सब‌ कुछ त्याग ‌दिया? इन सब सवालों‌ से गुजरते ‌हुए मैंने एक जवाब‌ पाया और वह है “पैसा” । जिनके‌ भी ‌पास आज पैसा है वो मदर्स डे बखूबी‌ मनाएंगे ।वे अपनी मां के लिए अॅानलाइन उपहार भेजेंगे ,केक काटेंगे और इस तरह बीत जाएगा उनका‌ मदर्स डे सेलेब्रशन। वहीं ,दूसरी ओर भारत की लाखों‌ मांएं‌ इस मदर्स डे पर अपनी रसोई ‌सम्भालेंगीं।

मेरी पूरी बात का‌ सारांश यह है कि हमने पाश्चात्य ‌संस्कृति अपना तो लिया पर उसके पीछे‌ की वजह‌ न समझ पाए और चल पड़े आधुनिक बनने की होड़‌ में‌ ,अपनी मां की अंतरात्मा को महसूस किए बिना उसे दो पल के लिए मां होने का एहसास दिलाने । जिसका यह एहसास‌ उस मां को‌ तब‌ से होगा जब उसने अपने सपनों‌ को दरकिनार कर उस बेटी‌ या‌ बेटे को जन्म देने का निर्णय लिया होगा। हम बच्चों ‌के‌ लिए मां‌ हमेशा‌ विशेष ‌होनी‌ चाहिए‌ और हमारे मन में उसके प्रति‌ प्रेम ‌और सम्मान हर क्षण रहना ही ‌उसका मदर्स डे है ।
अब शायद मेरी बातें‌ उबाऊ हो‌ रही हैं , अगर नहीं ‌तो मदर्स डे‌ का‌ इतिहास भी जरुर बता देती ।

शुक्रिया
“शिक्षार्थी”

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