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उग्र मुस्लिम विरोधी तेवरों के लिए र्चचा में चल रहे गिरिराज सिंह और प्रवीण तोगड़िया में एक बुनियादी फर्क है। भाजपा नेता गिरिराज सिंह बिहार की एक संसदीय सीट से प्रत्याशी हैं और खुद को अपनी पार्टी के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का अंधभक्त बताते हैं। दूसरी तरफ विश्व हिंदू परिषद के चर्चित नेता प्रवीण तोगड़िया इन दिनों गुमनामी का अंधेरा काट रहे हैं और घोषित रूप से मोदी के प्रचंड विरोधियों में गिने जाते हैं। इस फर्क के बावजूद उग्र असामाजिक तेवरों की राह पर जब दोनों मिलते दिखते हैं तो इसका खमियाजा भाजपा को छोड़ और कौन भरेगा, जो ऐसे मसलों पर विरोधाभासी मनोदशा की शिकार दिखती है। मोदी विरोधियों को पाकिस्तान धकेल देने की धमकी देने वाले गिरिराज सिंह पर पार्टी ने लगाम लगाने की क्या कोशिश की! एक तरफ खबर मिलती है कि भाजपा के दूत पाकिस्तान जाकर वहां सत्ता चला रही मुस्लिम लीग पार्टी के नेताओं से गुपचुप मुलाकात कर रहे हैं ताकि मोदी सरकार के बनते ही ‘मित्रता सेतु’ का धमाका किया जाए। एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार में सुर्खियों में आई इस खबर की पुष्टि खुद पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी के नेता कर रहे हैं, बेशक अपने देश में इसे नकारा जा रहा है। इन हालात में अगर भाजपा का ही एक संसदीय प्रत्याशी ऐसी जहर बुझी भाषा का बेखटके इस्तेमाल कर रहा है और पार्टी खामोश है, तो इसका संदेश क्या जाएगा! जहरीले तेवरों के लिए कुख्यात प्रवीण तोगड़िया पर भाजपा सफाई दे सकती है कि वह उसके संगठन से संबद्ध नहीं हैं। लेकिन अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तोगड़िया का बचाव करता दिखे तो इस लपेटे में भाजपा को आने से कौन बचा सकता है! खुद को राजनीति से अलग बताने वाला संघ इस बार जैसे खुलेआम चुनाव प्रचार में उतरा है, उससे क्या यह साबित नहीं हो जाता कि मोदी की पीठ पर हाथ किसका है। एक तरफ मोदी मुसलमानों का दिल जीतने की बातें कर रहे हैं और दूसरी तरफ तोगड़िया जैसे लोग हिंदू इलाकों में संपत्ति खरीदने वाले मुसलमानों को जबरन बेदखल करने की सलाह दे रहे हैं और इसके लिए बेहिचक कानून हाथ में लेने का मंत्र भी पढ़ा रहे हैं। क्या इसमें भी कोई संयोग है या साजिश कि तोगड़िया यह धृष्टता खुद मोदी शासित गुजरात में कर रहे हैं! मोदी के आगे आज जो सबसे बड़ा अवरोध उनके विपक्षी खड़ा कर रहे हैं वह बारह साल पहले के कुख्यात गुजरात दंगों के दर्द से ही उपजा है। ऐसी विरोधाभासी संगत भाजपा को इन चुनावों में कितनी मदद दे पाती है, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो चुनाव आयोग के रवैए पर उठता है। उसकी बार-बार चेतावनी के बावजूद भावनाएं भड़काने और दुश्मनी पैदा करने वाले भाषण और बयान रुक क्यों नहीं पा रहे हैं, इस पर उसे मंथन करना चाहिए। ऐसे मामलों में बेशक वह मामला दर्ज करने का निर्देश दे रहा है लेकिन इन कार्रवाइयों का नतीजा तो चुनाव बाद ही दिखेगा। चुनावों के दौरान ऐसे खलनायकों पर अंकुश लग सके, इसका रास्ता वह क्यों नहीं निकाल पा रहा है!
somansh surya
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