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हॉस्टल की दीवार फांदकर
लड़की जब
लड़कों के कमरे में लेट
बाप के पैसों का
सिगरेट पीती है
उस भटकते हुए धुंए में
थोड़ी धुंधली
थोड़ी और शर्मसार
दीवार पर चिपकी हुई
‘चे’ की हैरान आँखें
क्या तुम्हे विचलित नहीं करतीं ?
वियतनाम के आख़िरी
फटेहाल दर्ज़ी से सिलवाकर
अमरीकी साम्राज्यवाद का ठप्पा लगवाकर
दाढ़ी बढ़ाकर
जब लड़के ‘चे’ की टी-शर्ट पहन
कोका-कोला पीते हुए डकारते हैं –
‘क्रांति’
तो क्या
उस चुल्लू भर कोक के चक्रवात में
तुम्हे डूबता हुआ ‘चे’
डूबती हुई क्रांति
दिखलाई नहीं देती ?
अंग्रेज़ी में गलियाते बच्चे जब
कोलंबिया के किसानों का
सारा ख़ून
‘चे’ छपी कॉफ़ी मग में समेटकर
बात करते हैं
दुनिया बदलने की
(उनकी बातों में दुनिया कम
गाली ज़्यादा होती है)
ऐसे में क्या तुम्हे
उस मग पर छपी तस्वीर के
चकनाचूर होने की प्रतिध्वनि
सुनाई नहीं पड़ती ?
‘चे’ के नाम पर छपी
बिकाऊ युवा ही
पूँजीवाद की क्रांति है ।
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