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एक और सामान्यीकरण

souravroy
souravroy
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क्या हम सिक्कें हैं ?
क्या हमारा वज़न
हमारी औकात बताती है ?
दूध का रंग तो सफ़ेद ही होता है
आँसू और ख़ून का रंग भी तो नहीं बदलता
फिर मैं क्यों रिक्शे पर बैठा हूँ
और चरखू पैडिल की ठोकरों में
घुटने सुजा रहा है ?
क्यों मैं इंग्लिश मीडियम का प्रोडक्ट हूँ
और नथुआ
नुक्कड़ के होटल में
घिस रहा है चाय के गिलास में
अपने किस्मत को समेटकर
क्यों मैं कवि हूँ
और वो कुम्हार ?

सच है
समस्या का समाधान
मिले न मिले
एक व्यर्थ
दार्शनिक उत्तर अवश्य मिल जाता है |

-Sourav Roy “Bhagirath”

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